लायलपुर से खाली हाथ आया था तनेजा परिवार, आज शहर में है बड़ा कारोबार
विभाजन की त्रासदी ने घर और देश को तो छुड़ा दिया लेकिन पुरुषार्थ की जो लकीरें विधाता ने हाथों में खींची थी उसने खाली पेट आए तनेजा परिवार को इस काबिल बना दिया है कि वह 300 से ज्यादा परिवारों की रोजी रोटी का माध्यम बनें हुए हैं। वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान के लायलपुर से चलकर किसी तरह से ठाकुर दास तनेजा और उनके छोटे भाई नंदलाल तनेजा का परिवार पहले अमृतसर और उसके बाद रेवाड़ी पहुंचा था।
अमित सैनी, रेवाड़ी
विभाजन की त्रासदी ने घर और देश को तो छुड़ा दिया लेकिन पुरुषार्थ की जो लकीरें विधाता ने हाथों में खींची थी, उसने खाली पेट आए तनेजा परिवार को इस काबिल बना दिया है कि वह 300 से ज्यादा परिवारों की रोजी रोटी का माध्यम बनें हुए हैं। वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान के लायलपुर से चलकर किसी तरह से ठाकुर दास तनेजा और उनके छोटे भाई नंदलाल तनेजा का परिवार पहले अमृतसर और उसके बाद रेवाड़ी पहुंचा था। यहां पर एक छोटी सी किराना की दुकान से अपने कारोबार की शुरुआत की थी। आज इनके बच्चे शहर में गाड़ियों से लेकर दोपहिया वाहनों तक के बिक्री केंद्रों को चला रहे हैं। मेहनत से हासिल किया मुकाम शहर निवासी दिलीप तनेजा और उनके छोटे भाई प्रदीप तनेजा जब विभाजन के दौरान हुई घटनाओं को याद करते हैं तो उनकी आंखों से आंसू छलक जाते हैं। दिलीप तनेजा बताते हैं कि लायलपुर में उनका किराने का काम था। भरा पूरा परिवार सुख शांति से जीवन व्यतीत कर रहा था। 1947 में जब विभाजन की चिगारी जली तो पाकिस्तान में रह रहे हिदू परिवारों पर तो जैसे आफत टूट पड़ी थी। पिताजी बताते थे कि उस समय घर की महिलाओं को पाकिस्तान से बचाकर हिदुस्तान लाना सबसे मुश्किल था। ट्रेन में किसी तरह से छिपते छिपाते पूरा परिवार पहले अमृतसर पहुंचा था तथा वहां से सरकार ने रेवाड़ी भेज दिया। रेवाड़ी में एक कमरे का मकान उनको दिया गया था। पूरा परिवार उसी में गुजारा करता था। ताऊजी ठाकुर दास तनेजा ओर पिताजी नंदलाल तनेजा ने रेलवे रोड पर किराने की दुकान से ही कारोबार की शुरुआत की थी। धीरे-धीरे काम आगे बढ़ा और परिवार के लोगों ने कारोबार को भी बढ़ाना आरंभ किया। वर्ष 1991 में सबसे पहले स्कूटर की डीलरशिप लेकर आए। 2007 में एक नामी कार कंपनी की भी डीलरशिप उनके पास आ गई। एक अन्य दोपहिया वाहन कंपनी की भी डीलरशिप उनके ही पास है। दिलीप तनेजा बताते हैं कि 300 से ज्यादा कर्मचारियों को उनके पास रोजगार मिला हुआ है।
----------------
75 साल हो गए हमारे परिवार को भारत आए हुए। हाथ और पेट दोनों खाली थे लेकिन हमारे ताऊजी और पिताजी ने हार नहीं मानी। ताऊजी और पिताजी अंतिम समय तक कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। हम लोगों ने भी उनकी परंपरा को कायम रखा। अब हमारे बच्चे भी उसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं। प्रयास यही है कि हम राष्ट्र की उन्नति में ज्यादा से ज्यादा योगदान दे सकें। विभाजन के कष्ट आज भी हमारे जख्मों को हरा कर देते हैं लेकिन हमने जीवन में आगे बढ़ना सीख लिया है।
-दिलीप तनेजा