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UP Politics: सियासत की राहें भी कितनी अजीब, अब 'बुआ' उलझन में हैं कि इधर चलें या उधर?

UP Political News सत्ता के गलियारे वालों ने उड़ती चिरैया के पंख गिन लिए। भनक लगते ही बुआ परेशान। अगले ही दिन भतीजे के लिए कड़वे बोल वाली चिड़िया उड़ा दी। चर्चा छेड़ गई कि अब यह भगवा टीले पर बैठेगी। बुआ उलझन में हैं कि इधर चलें या उधर?

By Jitendra SharmaEdited By: Umesh TiwariPublished: Mon, 26 Sep 2022 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2022 06:00 AM (IST)
UP Politics: सियासत की राहें भी कितनी अजीब, अब 'बुआ' उलझन में हैं कि इधर चलें या उधर?
UP Political News: कालम : सत्ता के गलियारे से।

UP News: लखनऊ। हाथी चंचल नहीं होता। सीधे चलने का स्वभाव होता है। मगर, सियासत की राहें भी कितनी अजीब हैं। कब किसकी चाल बदल दें, कुछ कह नहीं सकते, क्योंकि राह में कांटे बहुत हैं। उस पर भी जब 'महावत' खुद किसी के अंकुश में फंसा हो तो हालात समझे जा सकते हैं। अपने 'हाथी' की भी ऐसी ही हालत है। एक दिन न जाने क्या सूझा कि साइकिल वालों की राह में बैरीकेडिंग लगाने पर 'बुआ' को गुस्सा आ गया।

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इंटरनेट मीडिया पर नाराजगी का पैगाम लिए चिड़िया उड़ा दी। सत्ता के गलियारे वालों ने उड़ती चिरैया के न सिर्फ पंख गिन लिए, बल्कि ताड़ लिया कि यह विक्रमादित्य मार्ग की तरफ जाएगी। भनक लगते ही 'बुआ' परेशान। अगले ही दिन 'भतीजे' के लिए कड़वे बोल वाली चिड़िया उड़ा दी। फुरसतिया लोगों ने चर्चा छेड़ दी कि अब यह भगवा टीले पर बैठेगी। 'बुआ' उलझन में हैं कि इधर चलें या उधर?

घर का भेदी...

'घर का भेदी लंका ढहाए।' बड़े-बुजुर्ग यह सीख यूं ही नहीं देते रहे। उनके सामने कई तजुर्बे रहे होंगे। ऐसा जरूरी नहीं कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में ही आकर ही इस तरह के उदाहरण सामने आएंगे। सदन में पहुंचने के लिए नेताजी ने भले ही जीवनभर संघर्ष किया हो, लेकिन अब क्या करें। चूंकि सत्ता पक्ष से हैं तो वेल में आना नहीं, बर्हिगमन करना नहीं। खाली बैठे-बैठे मोबाइल में कोई गेम खेलकर ही टाइम पास किया जाए।

वही कर रहे थे। उन्हीं की तरह दूसरे माननीय जब ऊंचने लगे तो सोचा होगा कि तंबाकू से सुस्ती मिटाई जाए। अब ये किसे पता था कि सामने लाल टोपी में बैठने वालों के एजेंट भगवा गमछा डाले दायें-बायें बैठे हैं। दोनों माननीयों के वीडियो माेबाइल से बनाकर विपक्ष वाले भैया को भेज दिए। भैया को मिल गया मौका और उन्होंने ले ली जबर्दस्त चुटकी। अब सफाई कुछ दें, किरकिरी करा दी।

अब तो 'भगवान' भी न कर पाएंगे माफ

मानिए तो पत्थर में भी भगवान हैं, किसी इंसान में दिख जाएं तो कौन सी बड़ी बात है। जिस धरती पर खुद भगवान ही मानव रूप में जन्मे हों, वहां के एक महाशय को अपने 'महाराज' में भगवान नजर आ गए। आस्था पर किसी का नियंत्रण नहीं है। बनवा दिया अपने 'भगवान' का मंदिर। चर्चा धीरे-धीरे फैलना शुरू हुई सुर्खियों में आ गई।

लोगों ने समझा कि महाराज सिर्फ राजनीतिक व्यक्ति नहीं, बल्कि महंत भी हैं, इसलिए आस्था के वशीभूत बनवा दिया होगा। मगर, अब खबर उड़ी है कि महाशय तो भगवान के 'आशीर्वाद' से अपने लिए लाभ-फल की व्यवस्था करने जा रहे थे। बंजर जमीन कब्जाने के लिए यह तरीका अपनाया। शिकायत की चिट्ठी 'ऊपर वाले' तक पहुंच गई है। विपक्ष ने भी मामले में मिर्च-मसाला अपने हिसाब से भरना शुरू कर दिया है। अब माना यही जा रहा है कि इस भक्त को 'भगवान' कतई माफ न करेंगे।

अपना भला तो सब भला

गले में गमछा पीला ही रहेगा, बाकी नेताजी के मिजाज का रंग मौसम के हिसाब से बदलता है। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें सियासी मौसम में लालिमा छाती हुई नजर आई तो साइकिल से सुनहरे सफर का प्लान बना लिया। उस खेमे में खड़े होकर भगवा रंग आंखों में इतना चुभने लगा कि इन्हें पानी पी-पीकर कोसा। हर मंच से चिल्लाते थे कि पिछड़ों के विरोधी हैं ये, इसीलिए साथ छोड़ा। खैर, मौसम दगा दे गया और साइकिल खड़ी की खड़ी रह गई। अब फिर मिजाज का रंग बदल गया है।

'राज भरी' बात यह है कि सत्ता की छांव के बिना नेताजी के पैर जलते हैं। अब प्लान बनाया है कि फिर पुरानी छतरी की छांव में ही चला जाए। भांप गए हैं कि उसकी मियाद अभी काफी है। पते की बात यह है कि दिन बदलने के लिए सिर्फ अपनी जुबां बदलनी है, क्योंकि अपना भला तो सब भला।


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