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'विक्रमादित्य' के जयघोष में कराह भी

देश को लंबे इंतजार के बाद मिले नौसैनिक विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य की आमद पर खुशियों के बीच नौसेना की प्रहार क्षमता को लेकर चिंता के कई सवाल अब भी बरकरार हैं। भारत फिलहाल एशिया में दो विमानवाहक पोत की ताकत रखने वाला अकेला मुल्क भले ही नजर आ रहा हो, लेकिन यह स्थिति केवल कुछ वक्त के

By Edited By: Published: Tue, 17 Jun 2014 08:25 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jun 2014 01:50 PM (IST)
'विक्रमादित्य' के जयघोष में कराह भी

नई दिल्ली, [प्रणय उपाध्याय]। देश को लंबे इंतजार के बाद मिले नौसैनिक विमानवाहक युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य की आमद पर खुशियों के बीच नौसेना की प्रहार क्षमता को लेकर चिंता के कई सवाल अब भी बरकरार हैं। भारत फिलहाल एशिया में दो विमानवाहक पोत की ताकत रखने वाला अकेला मुल्क भले ही नजर आ रहा हो, लेकिन यह स्थिति केवल कुछ वक्त के लिए है। बूढ़े हो चले विमानवाहक पोत विराट और उसका जर्जर सी-हैरियर लड़ाकू विमान बेड़ा रिटायरमेंट के दिन गिन रहा है। नए स्वदेशी विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत के लिए नौसेना का इंतजार अभी चार साल लंबा है, तो देश में बने हल्के नौसैनिक लड़ाकू विमान के शामिल होने में भी देर है।

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सूत्रों के मुताबिक, अगले कुछ महीनों में आइएनएस विराट को नौसेना से सेवानिवृत्त किए जाने की कवायद शुरू हो जाएगी। वर्ष 1989 में भारत को मिले ब्रिटिश मूल के इस विमानवाहक पोत को वैसे तो 2008 में ही रिटायर हो जाना था, लेकिन आइएनएस विक्रमादित्य के आने में हुई देरी के कारण इसकी उम्र बढ़ाई जाती रही। बीते साल कोच्चि में हुई मरम्मत के बाद विराट को 2016 तक नौसेना में रखने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक विराट को इससे पहले ही सेवानिवृत्ति देनी होगी। विराट की खरीद के साथ अस्सी के दशक में मिले सी-हैरियर लड़ाकू विमानों का रखरखाव काफी समय से नौसेना के लिए सिरदर्द बना है। बीते तीन दशक में इन लड़ाकू विमानों के कलपुर्जे बनाने वाली अधिकतर कंपनियां इनका उत्पादन बंद कर चुकी हैं। ऐसे में दिन-ब-दिन इनका रखरखाव नौसेना के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। नौसेना की वैमानिक क्षमता पर 2011 में आई कैग रिपोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताई थी। फिर भी खस्ताहाल विमान बेड़े की सेहत सुधारने के उपाय अब तक मुकम्मल नहीं हो पाए हैं। नौसेना की योजनाओं की कड़ियां बीते चार दशक में ऐसे लड़खड़ाई कि 2012-2013 के दौरान विराट की मरम्मत के चलते भारत के पास कई महीनों तक एक भी विमानवाहक पोत उपलब्ध नहीं था, जबकि रूस को विक्रमादित्य के सौदे की बड़ी रकम भारत दे चुका था। वहीं, कोच्चि में बन रहे स्वदेशी विमानवाहक पोत में भी करोड़ों रुपये लगा चुका था।

चंद महीने पहले कार्यकाल खत्म करती संप्रग सरकार ने अगस्त, 2013 में स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत की लांचिंग भले ही कर दी हो, लेकिन नौसेना में इसे शामिल करने की मौजूदा समयसीमा 2018 मानी जा रही है। ऐसे में संभव है कि भारत को कुछ साल विक्रमादित्य से ही काम चलाना पड़े। वहीं, चीन तेजी से अपनी नौसेना की ताकत बढ़ा रहा है। चीन बीते साल लियोनिंग विमानवाहक पोत को अपने नौसैनिक बेड़े में शामिल कर चुका है। साथ ही दूसरे विमानवाहक पोत का निर्माण भी तेजी से जारी है। एशिया में सिर्फ भारत और चीन के पास विमानवाहक पोत हैं। जापान द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अपने विमानवाहक युद्धपोतों को रिटायर कर चुका है।

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