लखनऊ, दिल्ली, मुंबई में फैल रही डबका के फूलों की खुशबू
बड़े संस्थानों में माली की नौकरी छोड़कर दस बिस्वा जमीन ठेके पर लेकर फूलों की खेती शुरू की। फूलों की खेती से बीस बीघा जमीन अर्जित की। दूसरे किसानों ने भी फूलों की खेती अपनाई।
वहीद अब्बास नकवी, जायस, (अमेठी)
एक छोटे से गांव डबका के 70 वर्षीय भूमि विहीन किसान रामनरेश मौर्य को खेती के जरिए कुछ नया कर गुजरने का जज्बा ऐसा पैदा हुआ कि वह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पंजाब, मुम्बई और सऊदी अरब में फूलों पौधों के बागीचे में काम करने के बाद 1984 में गांव लौटे तो यहां भी उन्हें इंदिरा गांधी उड़ान एकाडमी फुरसतगंज में मालीगीरी की सरकारी नौकरी मिल गई। लेकिन, तीन महीने में ही सरकारी नौकरी छोड़ रामनरेश अपने मिशन फूलों की खेती में जुट गए। पहले राम नरेश ने गांव में ही बीस हजार रुपये खर्च कर दस बिस्वा जमीन ठेके पर ली। फिर उसी भूमि पर गोबर की खाद से जमीन तैयार की, फिर गांव में पहली बार फूलों की खेती शुरू कर दी। तीन महीने में ही फूल की फसल तैयार हो गई, जिसे वह लखनऊ ले जा कर सड़क के किनारे खड़े हो कर बेच देते थे। आज उनकी मेहनत से डबका गांव को ही फूलों के गांव के रूप में पहचाना जाता है।
जिला उद्यान अधिकारी बलदेव प्रसाद ने बताया कि डबका गांव में किसान बड़े पैमाने पर फूलों की खेती कर रहे हैं। उद्यान विभाग भी किसानों को फूलों की खेती की नई पद्धति के साथ अनुदान देकर उन्हें आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।
पहली फसल से 20 हजार का मुनाफा :
पहली ही फसल से बीस हजार रुपये का मुनाफा हुआ। दूसरे सीजन में उसे छह महीने में 65 हजार का मुनाफा हुआ और फिर राम नरेश फूलों की फसल से धन अर्जित करते करते आज बीस बीघा भूमि के काश्तकार बन गए हैं।
दूसरे किसानों ने भी शुरू की फूल की खेती :
बहादुरपुर की ग्राम सभा उदारी के एक छोटे से गांव डबका के रहने वाले किसान रामनरेश मौर्य अब गांव के किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं। गांव में करीब दो दर्जन किसान अपनी पुश्तैनी सब्जी की खेती छोड़ ,फूलों की खेती करने लगे हैं। जिससे डबका गांव अब फूलों के गांव के नाम से मशहूर हो गया है।
जमीन के साथ मिला सम्मान :
फूलों की खेती से प्रभावित होकर तहसील प्रशासन ने राम नरेश को पांच बीघा भूमि का पट्टा आवंटन किया। जिला जज व रायबरेली के डीएम फूलों की खेती के लिए राम नरेश को सम्मानित भी कर चुके हैं।
अब बेटों ने संभाली जिम्मेदारी :
राम नरेश बताते हैं कि वह अपने फूलों को लखनऊ, दिल्ली, पंजाब और मुंबई की मंडियों में भी भेजते है। अच्छी बात यह है कि अब उनके बेटे फूलचंद उर्फ नन्हें मौर्य व भतीजा विजय मौर्या ने फूलों की खेती की विरासत बखूबी संभाल ली है।
गोबर की खाद है सबसे उपयोगी :
किसान रामनरेश मौर्य ने बताया कि फूलों की खेती के लिए गोबर की खाद सबसे अधिक उपयोगी है। वह कहते हैं कि गिलेंडस सितंबर, नवंबर में बोया जाता है, जो कि 70-90 दिनों में और रजनीगंधा मार्च, अप्रैल में लगाया जाता है, जो कि 60-75 दिनों में तैयार होता है। गुलाब फरवरी में बोते हैं, जो कि दो महीने में ही तैयार हो जाता है। वहीं, गेंदा पूरे साल बोया जा सकता है।