पंजाब के 'फुल्लां वाले दार जी' ने खेती से बदली किस्मत, बदली फसल और उगाए फूल तो मिला सुफल
Progressive farmer पंजाब के किसान कृषि सुधार कानून के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं लेकिन कुछ प्रगतिशील किसान दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। ऐसे ही किसानों में शामिल हैं पटियाला के फुल्लां वाले दार जी यानि बहादुर सिंह।
पटियाला, [दीपक मौदगिल]। ये 'फुल्लां वाले दार जी' हैं। यानी फूलों वाले सरदार जी। वैसे नाम है बहादुर सिंह। रहने वाले हैं पटियाला जिले के गांव खेड़ी मुसलमाना। खेतों में बहाए पसीने, बदलाव के लिए खुले दिमाग की सकारात्मक सोच और कुछ करने के लिए तत्परता ने इन्हें आज पहले से तीन गुणा आमदनी वाला प्रगतिशील किसान बना दिया है। गेहूं व धान के फसलीचक्र और एमएसपी के मोह में उलझे किसानों के लिए यह एक नजीर हैं। उन्होंने खेती बदली तो किस्मत बदल गई। बहादुर सिंह ने खेती बदली और फूल उगाए, फेर मेहनत का सुफल मिला।
तोड़ा फसली चक्र, छोड़ा परंपरागत फसल का मोह, पांच गुणा बढ़ी आय
पहले बहादुर सिंह गेहूं की खेती से प्रति किला 30 से 40 हजार रुपए कमा पाते थे। अब फूलों की खेती से डेढ़ से दो लाख रुपये तक की कमाई हो रही है। वह बताते हैं कि शुरू में फूलों की खेती को लेकर मन में भय था कि यह सफल भी होगी या नहीं। काफी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन फल भी वैसा ही मिला। बहादुर सिंह दस साल से भी ज्यादा समय से फूलों की खेती कर रहे हैं। अभी 17 किला जमीन में फूलों की खेती कर रहे हैं। अब गेहूं की बिजाई सिर्फ अपने घरेलू इस्तेमाल लायक ही करते हैं।
अपने फूलों के खेत में कृषि विज्ञानी के साथ बहादुर सिंह। (बहादुर सिंह द्वारा उपलब्ध कराई तस्वीर)
कांट्रैक्ट फार्मिग कर मुनाफा कमा रहे 150 किसान, फूलों के बीज किए जा रहे निर्यात
फसली चक्र से बाहर से निकल बहादुर सिंह की ही तरह लुधियाना के लोहटबद्दी के जगदेव सिंह भी 1996 से फूलों की खेती कर रहे हैं। वह कहते हैं कि अगर मौसम या किसी अन्य कारण से फूलों की फसल ठीक न भी हो, तो भी एक किला जमीन से एक लाख रुपये का मुनाफा हो ही जाता है। इसी तरह 1997 से काम कर रहे संगरूर के गिद्दड़ानी गांव के अमरीक सिंह कहते हैं कि गेहूं के मुकाबले फूलों की खेती में मशीन की जरूरत कम पड़ती है। ज्यादा काम हाथ से ही होता है। मुनाफा कहीं ज्यादा है।
पंजाब ही नहीं, हरियाणा व राजस्थान के लगभग 150 किसानों की जिंदगी में फूलों की खेती से किसानों की जिंदगी में खुशहाली के ये रंग भरे हैं पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवíसटी (पीएयू) लुधियाना में प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स विभाग के प्रमुख रहे डा. अल्लाह रंग ने। 1993 में रिटायर होने के बाद वह इसी काम में जुटे। उन्होंने किसानों के साथ करार किया है। ये सभी गेहूं की खेती छोड़ फूल उगा रहे हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के किसानों को कांट्रैक्ट फाìमग से जोड़ा पूर्व कृषि विज्ञानी ने
पटियाला के रहने वाले डा. रंग कहते हैं, 'मेरे साथ पटियाला, लुधियाना, संगरूर के अलावा हरियाणा और श्री गंगानगर (राजस्थान) के किसान जुड़े हैं।' डा. रंग की प्रेरणा से यह किसान फसल कांट्रैक्ट फाìमग अपना चुके हैं। डा. रंग ने बायोकार्व सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अपनी कंपनी बनाई है। वह किसानों से फूल खरीदते हैं और 90 फीसद हिस्सा अमेरिका, हालैंड, पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, यूके की विभिन्न कंपनियों को निर्यात करते हैं।
दुबई और इंडोनेशिया में भी बीज का निर्यात किया जा रहा है। डा. रंग किसानों को फूलों की पनीरी मुफ्त देते हैं। सीधे किसानों से फूल खरीदते हैं। नाभा रोड पर स्थित गांव धबलान में उनके प्लांट में इन फूलों के बीज निकाले जाते हैं। ग्रेडिंग करके किसान को उसकी फसल का तत्काल भुगतान किया जाता है।
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