मोदी के प्रचार का जवाब जनसंपर्क से देगी कांग्रेस
विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक चुनावी प्रचार ने राज्यों में सरकार बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक दिन में तीन से चार रैलियां कर रहे मोदी के मुकाबले में कांग्रेस पहले ही दौर में पिछड़ती नजर आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जहां एक
नई दिल्ली, [सीतेश द्विवेदी]। विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक चुनावी प्रचार ने राज्यों में सरकार बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक दिन में तीन से चार रैलियां कर रहे मोदी के मुकाबले में कांग्रेस पहले ही दौर में पिछड़ती नजर आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जहां एक दिन में दो रैलियों तक सीमिति हैं वहीं उनकी रैलियों में अपेक्षाकृत कम आ रही भीड़ से भी कांग्रेसी नेताओं के माथे पर बल हैं। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल की रैलियों को लेकर पार्टी प्रत्याशियों में ही उत्साह की कमी नजर आ रही है।
मोदी के आक्रामक चुनावी अभियान के मुकाबले कांग्रेस अपेक्षाकृत खामोशी से लेकिन चौंकाने वाली रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए कांग्रेस जमीन पर मोर्चाबंदी कर रही है। इसकी जिम्मेदारी कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों पर डाली है। पार्टी की तरफ से युवा कांग्रेस, एनएसयूआइ, सेवादल व महिला कांग्रेस को जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए महौल बनाने खासकर कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं तक पहुंचने व मतदान के दिन उन्हें मतदान स्थल तक लाने की जिम्मेदारी सौपी गई है।
हरियाणा व महाराष्ट्र में इन संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ता खामोशी से इस रणनीति पर अमल के लिए काम कर रहे हैं। इन राज्यों में भाजपा के 'वन बूथ ट्वेंटी यूथ' के कामयाब बूथ मैनेजमेंट के मुकाबले कांग्रेस ने भी इसी तरह के अभियान को कामयाब करने के लिए अपने फ्रंटल संगठनों पर दांव लगाया है।
पार्टी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर का कहना है,'हमने इस बार बेहतर तैयारी की है। जमीन पर हमारे लोग काम कर रहे हैं और इस बार हवा हवाई प्रचार से फर्क नही पड़ेगा। जनता को वादों की सरकार नहीं बल्कि काम करने वाले की दरकार है। हम वही कर रहे हैं।' उन्होंने कहा कि राज्य में 'भाजपा उधार के कार्यकताओं के भरोसे चुनावी लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में मोदी के चुनाव प्रचार से कांग्रेस की संभावनाओं को कोई फर्क नहीं पड़ता।' कांग्रेस को भरोसा है कि वह भाजपा की इस कमी से नेतृत्व के स्तर पर मुकाबले में पिछड़ने से पार पा लेगी।
महाराष्ट्र में भी शिवसेना से अलग होकर भाजपा पहली बार अकेले चुनावी मैदान में है जबकि कांग्रेस राज्य में दो दशक पहले तक अकेले सत्ता में रह चुकी है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर भी इस बार बेहतर पकड़ बनाई है। शनिवार को मोदी के प्रचार अभियान के साथ ही सोशल मीडिया पर 'झूठे दिन' ट्रेंड करता रहा। हालांकि, पार्टी ने इस हैंडल से संगठन का किसी भी तरह से सरोकार होने से इन्कार किया है। लोकसभा चुनावों के दौरान भी मोदी को घेरने के लिए सोशल मीडिया पर इसी तरह से 'फेंकू' नाम का हैशटैग इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि, उस समय 'अच्छे दिन आने वाले हैं' के हैंडल ने प्रचार अभियान में बढ़त बना ली थी।
मुश्किल है पार पाना
हरियाणा व महाराष्ट्र की चुनावी लड़ाई में मोदी से पार पाने की चुनौती कांग्रेस के लिए सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है। लोकसभा चुनावों के बाद महज 44 सीटों पर सिमट गई पार्टी के लिए यह चुनाव न सिर्फ संगठन बल्कि नेतृत्व के लिए भी बेहद अहम है। परिणामों के सकारात्मक न होने की स्थिति में इन राज्यों में सरकार गंवाने के साथ-साथ कांग्रेस नेतृत्व पर उठ रहे सवाल और तीखे होकर उभरेंगे। वैसे भी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले मोदी कांग्रेस अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के मुकाबले अकेले ही मैदान में माहौल जमाए हुए हैं। हरियाणा जैसे राज्य में जहां सोनिया व राहुल दोनों मिलकर दर्जन भर जन सभाएं कर रहे हैं वही मोदी अकेले लगभग इतनी ही सभाओं में सरकार को उखाड़ फेंकने की हुंकार भरेंगे। मोदी महाराष्ट्र में भी भाजपा के लिए दो दर्जन से भी ज्यादा सभाओं को संबोधित करेंगे।