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गांवों से ही निकलेगी विकास की राह

किसी भी प्रदेश में विकास की तामीर तभी खड़ी की जा सकती है जब सामाजिक संतुलन के नजरिए से हर इकाई की उन्नति और आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में सोचा जाए। प्रदेश में विकास की असीम संभावनाएं हैं।

By Edited By: Published: Fri, 12 Oct 2012 08:25 AM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2012 11:06 AM (IST)
गांवों से ही निकलेगी विकास की राह

गाजियाबाद। किसी भी प्रदेश में विकास की तामीर तभी खड़ी की जा सकती है जब सामाजिक संतुलन के नजरिए से हर इकाई की उन्नति और आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में सोचा जाए। प्रदेश में विकास की असीम संभावनाएं हैं। हर स्तर पर औद्योगिक से लेकर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी लेकिन इसका सही रास्ता तभी हासिल होगा जबकि विकास के केंद्र में गावों को रखकर आगे बढ़ा जाए। सरकार निश्चित तौर पर ऐसा कर सकती है लेकिन परंपरागत तौर तरीकों और आधुनिकता के फर्क को ढंग से परिभाषित करते हुए।

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विकास की बौद्धिक अवधारणा में थोड़ा विरोधाभास है। आधुनिकता की दासता हमें सदा अपनी धारा में ले जाती है। आज के गाव और वहा के खेत इसका उदाहरण हैं। आधुनिक होने के चक्कर में ही हमने जैविक खेती को दरकिनार करते हुए खेतों को रासायनिक खादों का गुलाम बनाया है। क्या इसके वाछित परिणाम निकल सके हैं? शायद सभी का जवाब न में निकले। गावों की आब-ओ-हवा में अब तमाम रोगों के वाहक कीटाणु भी शामिल हैं। रही बात उन्नति के आकड़ों को हासिल करने की तो वह भी हमें नसीब नहीं हो सका। केंद्रीय साख्यिकीय आकड़े ही बताते हैं कि यूपी में कृषि उद्योगों का विकास महज 2.70 फीसदी रहा है। तीन दशक पहले प्रदेश के गावों की आर्थिक स्थिति अन्य प्रदेशों की तुलना में बेहतर थी। आज हम अन्य प्रदेशों से पीछे हैं। प्रदेश में विकास की संभावनाएं गावों के आधार पर ही खोजी जानी चाहिए। गांवों से ही विकास की राह निकल सकती है।

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