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यूपी पढ़ेगा तभी देश बढ़ेगा

हा, उत्तर प्रदेश पढ़ेगा, तभी देश बढ़ेगा। वह जमाना गया, जब हम महज इसलिए खुश हो लेते थे कि हमारे पास महामना का बीएचयू है। सर सैय्यद का एएमयू है। देश-दुनिया में नाम कमा रहा है आइआइटी-कानपुर है। तब से अब तक वैश्विक स्तर की ऊंची पढ़ाई में रोज-ब-रोज क्रांति हो रही है।

By Edited By: Published: Fri, 28 Sep 2012 12:25 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2012 12:52 PM (IST)
यूपी पढ़ेगा तभी देश बढ़ेगा

नई दिल्ली। हा, उत्तर प्रदेश पढ़ेगा, तभी देश बढ़ेगा। वह जमाना गया, जब हम महज इसलिए खुश हो लेते थे कि हमारे पास महामना का बीएचयू है। सर सैय्यद का एएमयू है। देश-दुनिया में नाम कमा रहा है आइआइटी-कानपुर है। तब से अब तक वैश्विक स्तर की ऊंची पढ़ाई में रोज-ब-रोज क्रांति हो रही है। ऐसे में देश के सबसे बड़े सूबे में उच्च शिक्षा के संस्थानों की भरमार, शोध में वृद्धि, निजी क्षेत्र से हाथ मिलाना और उद्योग आधारित पाठ्यक्रम आदि में अब चुके तो देश पिछड़ जाएगा। साफ है, पहल उत्तर प्रदेश को ही करनी होगी।

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सच तो यह है कि यह सब हमें बहुत पहले करना था। नहीं कर सके। देश के ही दूसरे राज्य को दूसरी नजरों से देख रहे हैं। आज महज साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले राज्य तमिलनाडु में सरकारी व निजी मिलाकर कुल 59 विश्वविद्यालय हैं। जबकि, 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में सिर्फ 58 विश्वविद्यालय हैं। उनमें भी चार केंद्रीय, बाकी राज्य सरकार व निजी क्षेत्र के हैं। इसी तरह महज 11 करोड़ की आबादी वाले महाराष्ट्र में 4631 कालेज हैं तो उसकी दोगुनी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 3859 कॉलेज हैं।

तस्वीर के दूसरे रुख को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्कूली शिक्षा की जरूरतों को पूरा करना लाजिमी है। 5.14 करोड़ निरक्षरों वाले इस प्रदेश में 3.12 लाख शिक्षकों की कमी की अनेदखी नहीं की जा सकती। वह भी तब, जब हर साल लगभग 12 हजार शिक्षक रिटायर हो रहे हैं। 254 स्कूल बिना भवन के चल रहे हैं। 887 स्कूलों में पीने का पानी नहीं है। 2022 तक 50 करोड़ लोगों को स्किल्ड बनाने के लिए 1500 आइटीआइ की जरूरत है। जबकि, 458 असेवित ब्लाकों में कोई आइटीआइ है ही नहीं। नौ मंडल मुख्यालयों पर कोई विश्वविद्यालय ही नहीं है।

यह स्थितिया निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश के लिए एक बड़ा सबक हैं, लेकिन इसे बदला जा सकता है। शिक्षाविदों का मानना है कि संसाधनों के विस्तार को निजी क्षेत्र से हाथ मिलाने में उदारता दिखानी होगी। शोध व इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त मदद की जरूरत है। विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम स्थानीय उद्योगों की जरूरत के लिहाज से तैयार हों तो शोध को और गति मिलेगी। विश्वविद्यालयों से बेहतर नतीजों के लिए उनका पाच साल की प्रगति का खाका तैयार होना चाहिए। यह पहले से तय हो कि वे पाच साल बाद कहा होंगे। साथ ही समय-समय पर उनकी प्रगति की समीक्षा भी जरूरी है।

पारदर्शिता के मद्देनजर हर विश्वविद्यालय व कॉलेज की सफलता की दर को उनकी वेबसाइट पर खुलासा होना चाहिए। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सवाल अहम् है। लिहाजा, शिक्षकों की नौकरी के दौरान हर विश्वविद्यालय में उनके नियमित प्रशिक्षण का केंद्र खोला जा सकता है।

शिक्षा की राह में धन की कमी एक बड़ी बाधा है। सामाजिक दायित्वों की रोशनी में राज्य सरकार उसके लिए शिक्षा उपकर [सेस] का रास्ता भी तलाश सकती है। केंद्र सरकार का मानना है कि एक दशक में देश को लगभग 400 और विश्वविद्यालयों और लगभग 30 हजार नये कालेजों की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है इसमें उत्तर प्रदेश को बड़ी भूमिका निभानी पड़ेगी।

लिहाजा, जो कल करना है, उसे आज से ही शुरु कर देने में प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश की भी भलाई है। क्योंकि इस प्रदेश के पिछड़ने का असर देश पर पड़ता है। ऐसे में सच यही है कि उत्तर प्रदेश पढ़ेगा तो देश बढ़ेगा।

[राजकेश्वर सिंह]

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