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मैं रुहेलखंड - मेरी बाहों को सराहो, मेरे हमराज बनो

बरेली। अरे क्या दिल्ली पहुंच गए, हा साहब। ड्राइवर का जवाब सुनकर डॉ दुबे चौंककर घड़ी देखने लगे। यह कैसे हुआ, अभी तो बरेली से चले तीन घटे ही हुए हैं। यह वह सवाल है, जो जल्द ही हर कोई करता दिखाई देगा। हाईवे फोरलेन होते ही दिल्ली और लखनऊ का सफर इतने ही वक्त में पूरा हो जाएगा। चमचमाती सड़क पर वाहन 100 की स्पीड से सरपट दौ

By Edited By: Published: Wed, 26 Sep 2012 05:03 PM (IST)Updated: Thu, 27 Sep 2012 01:45 PM (IST)
मैं रुहेलखंड - मेरी बाहों को सराहो, मेरे हमराज बनो

इतिहास का पन्ना: मैं रुहेलखंड हूं। बरेली मेरा हृदय है। शाहजहापुर और मुरादाबाद मेरी दायीं-बायीं भुजाएं। बिजनौर मेरा मस्तक है। बदायूं, पीलीभीत, ज्योतिबा फूलेनगर, रामपुर और संभल मेरे कलेजे के टुकड़े। मैंने महाभारत काल में पाचाली को जन्म दिया तो उसके वीरोचित स्वयंवर की शान भी देखी। कुरुक्षेत्र के रक्तपात की सूत्रधार का जनक था तो धर्मराज के सिंहासनारूढ़ होने का एक बड़ा कारक भी। कारक इसलिए कि न मैंने द्रौपदी को जन्मा होता और न भव्य भारतवर्ष के कल्याण का कारण माना जाने वाला महाभारत होता। वह तो बहुत पुरानी बात है। कुछ और आगे की दास्तान कहता सुनाता हूं। सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक मैंने तोमर वंशीय राजपूतों की शक्ति और उनका उद्भव पराभव भी इन्हीं आखों से देखा। महाराज पृथ्वीराज चौहान का शौर्य और प्यार के आगे संयोगिता का समर्पण भी बहुत निकट से निहारा है। कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर अलाउद्दीन खिलजी तक की सल्तनत नापी है तो ताजमहल की सूरत में दुनिया का सातवा आश्चर्य देने वाले मुगल शहंशाह शाहजहा की शाही अदाएं भी देखी हैं। मेरे आचल में बिजनौर से डाकू सुल्ताना ने जन्म लिया तो उसका भी अपना एक चरित्र था कि वह गरीबों के लिए अमीरों को लूटता था। लाल तो मैंने ऐसे दिए कि जिनसे फिरंगी आततायियों के कलेजे भी काप गए। शाहजहापुर को ही ले लीजिए। मैंने अपने इस बाजू से काकोरी काड के महानायक अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खा और ठाकुर रोशन सिंह को दुनिया के सामने रखा तो परमवीर चक्त्र विजेता नायक जदुनाथ सिंह और भारतीय स्काउटिंग के जनक पं.श्रीराम वाजपेयी, आधुनिक रामायण के जनक पं. राधेश्याम कथावाचक, आला हजरत और अंतरराष्ट्रीय शायर प्रो. वसीम बरेलवी को प्रस्तुत किया। नेपाल, भूटान और चीन का मोहड़ा संभालता पीलीभीत जिला अपनी वन संपदा से मेरा श्रृंगार करता है। कभी गंगा और रामगंगा की प्रचण्ड धाराओं के बीच खड़ा होकर उनके विध्वंसक स्वरूप की चुनौती झेलते तो कभी उनके शातरूप से खुद की श्रीवृद्धि करते मेरे बदायूं के पास आधुनिक भारत के निर्माण के अक्षुण्ण साधन हैं। झुमके से कान, सुरमे से आख, जरी-जरदोजी से समूची काया तथा बेंत व शीशम-सागौन के फर्नीचर से घरों को सजाने वाली लाजबाब बरेली जैसा रत्‍‌न मेरे सीने में जज्ब है। वही बरेली जो देश की राजधानी दिल्ली और प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्राय: समान दूरी पर रहकर दोनों का दिल है। दोनों की धड़कन बनाये रखने में जिसका अप्रतिम योगदान है। मैंने अपने इसी पल्लू से प्रियंका चोपड़ा के रूप में देश-दुनिया को एक विश्वसुंदरी तक दी है। मेरा ख्याल है आप मेरी इन खुसूसियतों को केवल मेरी विशेषता और मेरे परिचय के रूप में ही लेंगे। मेरे दंभ या किसी अतिरंजना की सूरत में नहीं।

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भविष्य की तस्वीर:

बेशक, मेरा इतिहास शानदार है मगर एक वेदना भी है जो जिगर में अरसे से टीस मार रही है। यह कि मेरे पास सबकुछ है। शानदार सड़कों का जाल, छोटी-बड़ी रेल लाइनें, हर शहर के अपने काम, बिजली उत्पादन से लेकर परसाखेड़ा का इंडस्ट्रियल एरिया, देश का सबसे सुरक्षित सैन्य हवाई अड्डा, जानवरों पर रिसर्च की सबसे बड़ी संस्था [आइवीआरआइ], इफ्को फैक्ट्री, शाहजहापुर में रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट, पीलीभीत में मिट्टी से बना एशिया का सबसे बड़ा बाध, और भी बहुत कुछ। इसके बावजूद मैं इसे सारे देश और सारी दुनिया को अपने तबर्रुक [प्रसाद] के रूप में पहुंचाना चाहता हूं। शर्त यह है कि दिल्ली और लखनऊ दामन फैलाकर खुद भी इसे स्वीकार करें और दूसरों तक पहुंचाने में भी मेरी मदद करें। मुझे इमदाद नहीं, जकात-खैरात अथवा दान-दक्षिणा नहीं, यतीमी मदद नहीं बल्कि सहयोग या दूसरे शब्दों में कहूं तो मेरे हिस्से की सुविधा-सहूलियत चाहिए। वह भी मुफ्त नहीं, मेरे श्रम के मूल्य पर। बरेली में कुछ ओवरब्रिज, एक कॉमर्शियल हवाई अड्डा, मेरे हुनर के लिए मुफीद कुछ औद्योगिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, देश-दुनिया से रेल, सड़क और वायुमार्ग से कनेक्टिविटी, शाहजहापुर में सीवेज सिस्टम, सात नदियों के प्रकोप से बचाने वाले उपाय व औद्योगिक सुविधाएं, बदायूं- पीलीभीत के लिए बड़ी रेललाइन तथा नेशनल हाइवे मिल जाए तो मैं सारे संसार को अपने नाम का असली अर्थ बता सकता हूं। केंद्र और प्रदेश सरकार अगर थोड़ा सा मेरी बाहों को सराह दें और मेरे हमराज बन जाएं तो दिखा सकता हूं कि विकास की तस्वीर को सजाने का सबसे गाढ़ा रंग मेरे ही पास है। कुल मिलाकर गरज यह कि, कुछ और मागना मेरे मशरब में कुफ्र है! ला अपना हाथ दे मेरे दस्त-ए-सवाल पर !!

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