तरक्की के साथ, दिलों को भी जोड़ रही सड़क
बरेली। अरे क्या दिल्ली पहुंच गए, हा साहब। ड्राइवर का जवाब सुनकर डॉ दुबे चौंककर घड़ी देखने लगे। यह कैसे हुआ, अभी तो बरेली से चले तीन घटे ही हुए हैं। यह वह सवाल है, जो जल्द ही हर कोई करता दिखाई देगा। हाईवे फोरलेन होते ही दिल्ली और लखनऊ का सफर इतने ही वक्त में पूरा हो जाएगा। चमचमाती सड़क पर वाहन 100 की स्पीड से सरपट दौ
बरेली। अरे क्या दिल्ली पहुंच गए, हा साहब। ड्राइवर का जवाब सुनकर डॉ दुबे चौंककर घड़ी देखने लगे। यह कैसे हुआ, अभी तो बरेली से चले तीन घटे ही हुए हैं। यह वह सवाल है, जो जल्द ही हर कोई करता दिखाई देगा। हाईवे फोरलेन होते ही दिल्ली और लखनऊ का सफर इतने ही वक्त में पूरा हो जाएगा। चमचमाती सड़क पर वाहन 100 की स्पीड से सरपट दौड़ सकेंगे। न मरीज दर्द से हलकान होंगे और न अपनों के इंतजार में लंबे समय तक दरवाजे पर टकटकी बाधना पड़ेगा। हादसे रुकेंगे और नए उद्योगों के आने का रास्ता साफ होगा। बस थोड़ा इंतजार तरक्की की नई इबारत लिखे जाने को है, जिसे पूरा करने के लिए कुछ जोर लगाने की जरूरत है।
रामपुर एक घटे से भी कम, मुरादाबाद डेढ़ घटा और दिल्ली का सफर तीन घटे में पूरा हो जाएगा। ऐसे ही फरीदपुर 15 मिनट, शाहजहापुर एक घटा, सीतापुर दो घटे और लखनऊ का सफर तीन घटे में तय होगा। इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए 3000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। मुरादाबाद से सीतापुर तक 272 किमी. लंबाई में काम चल रहा है।
फोरलेन के साथ ही तमाम रेलवे क्रासिंग, नदियों, नालों पर पुल बन जाएंगे। भारी वाहनों का शहर में शोर बंद हो जाएगा। हाईवे गावों से होकर गुजरेगा तो विकास की रोशनी वहा भी पहुंचेगी। कालोनिया और मॉल बनने का रास्ता साफ हो जाएगा। गंभीर मरीजों को दिल्ली और लखनऊ के हायर सेंटर पहुंचाना आसान होगा।
बरेली एक नजर में
जनसंख्या - 4465344
पुरुष - 2371334
महिला - 2093890
अन्य - 120
साक्षरता दर - 60.52
पुरुष साक्षरता - 69.47
महिला साक्षरता - 50.35
क्षेत्रफल - 4120 किमी.
तहसील - 6
ब्लाक - 15
विस क्षेत्र - 9
प्रमुख नदिया - रामगंगा, बहगुल, च्किच्छा, देवरनिया, दो जोड़ा, शारदा, पीलाखार, नकटिया।
एनएच-24 की फोरलेनिंग
फेस-1
मुरादाबाद से बरेली - 121 किमी.
लागत - 1880 करोड़
काम शुरु - दिसंबर 2010
पूरा होना है - जून 2013
रेलवे ब्रिज - 6
नदियों पर पुल - 8
नालों पर पुल - 9
बड़े अंडरपास - 12
छोटे अंडरपास - 24
टोल प्लाजा - 2
बस खड़ी करने की लेन - 19
ट्रक खड़ा करने की लेन - 3
फेस-2
बरेली से सीतापुर - 151 किमी.
लागत - 1046 करोड़
काम शुरु - मई 2011
पूरा करना है - सितंबर 2013
रेल पुल - 4
नदियों पर बड़े पुल - 9
छोटे अंडरपास - 15
बड़े अंडरपास - 27
टोल प्लाजा - 2
सुविधाएं
- बस और ट्रकों के लिए पार्किंग एरिया।
-हादसे होने की स्थिति में बचाव को एम्बूलेंस और क्रेन
-थोड़ी-थोड़ी दूर पर पब्लिक यूटिलिटी, पीने के पानी की व्यवस्था
- हरियाली के लिए डिवाइडर और सड़क के किनारे पेड़
कैसे बनेगी सड़क
- डेढ़ मीटर मोटाई में हॉटमिक्स से पिच शोल्डर। उसके नीचे दो मीटर मिंट्टी शोल्डर और पुलों के नीचे छोटे वाहन, बैलगाड़ी, तागे के लिए सर्विस लेन।
बस, रफ्तार की जरूरत
बाईपास को छोड़ दें तो मुरादाबाद से बरेली तक 89 किमी. में 55 किमी. लंबाई में हाईवे को फोरलेन किया जा चुका है। एनएचआइ के परियोजना प्रबंधक पूरन सिंह बताते हैं, शेष काम भी तय सीमा में पूरा कर दें। बस बड़े बाईपास को लेकर दिक्कत है।
प्रशासन आगे आए तो बने बात
फोरलेनिंग का काम चल तो रहा मगर जमीन का अड़ंगा आड़े है। अगर प्रशासन किसानों के बीच पुल बनने का काम करे तो स्थिति बदल जाएगी। जमीन मिलते ही काम तेजी से हो जाएगा, क्योंकि मेटीरियल और लेबर पर्याप्त है।
सुखदायी होगी पहाड़ की सैर
आइवीआरआइ क्रासिंग के आगे से शुरू होने वाला फोरलेन बहेड़ी होकर उत्ताराचल के बार्डर पुलभट्टा तक जाएगा। 54 किलोमीटर लंबी इस फोरलेन की लागत 354 करोड़ थी। फोरलेन की राह में आ रहे सारे रोड़े खत्म कर दिए गए हैं। 5448 पेड़ काटने के लिए केंद्र सरकार से परमीशन भी मिल गई। मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों लखनऊ में शिलापट का उद्घाटन भी कर दिया। एक दो दिन में काम शुरू हो जाएगा। अभी बरेली से बहेड़ी पहुंचने में सवा दो घटे लग जाते हैं। मार्ग फोरलेन होते ही चालीस मिनट में बहेड़ी पहुंचा जा सकेगा। वहा से नानकमता, सितारगंज और नेपाल सीमा और चीन सीमा तक पहुंच हो जाएगी।
संवर रहे लिंक रोड
-फरीदपुर होते हुए लखनऊ और बदायूं से जुडऩे वाली बुखारा लिंक रोड लंबे अर्से से बदहाल है। 19.18 किलोमीटर लंबा यह मार्ग अब हॉटमिक्स से बनेगा।
-40 किमी लंबा बीसलपुर मार्ग व अखा-गैनी मार्ग और आवला से रामनगर तक की प्रमुख सड़को का प्रोजेक्ट भी पास हो गया है।
-करीब सवा अरब रुपये से बनने वाली इन सड़कों से बरेली आए बगैर लखनऊ से बदायूं और रामपुर की तरफ निकलना आसान हो जाएगा।
पुल को मिला फुल सपोर्ट
हार्टमैन रेलवे क्त्रासिंग पर पुल बनने का काम लंबे इंतजार के बाद खत्म होने के कगार पर है। इससे शहर होकर नैनीताल जाना आसान होगा। कुदेशिया क्रासिंग पर पुल भी मंजूर हो चुका है। लाल फाटक रेलवे क्त्रासिंग पर पुल बनाने के प्रस्ताव शासन में विचाराधीन है। मगर जमीन पर आए बड़ा बाईपास
परसाखेड़ा से रजऊ परसपुर तक बन साढ़े 29 किमी. लंबे बड़े बाईपास से शहर हादसों से सुरक्षित हो जाएगा। भारी वाहन शहर के बाहर से ही लखनऊ और दिल्ली की तरफ निकल जाएंगे। उसके लिए 33 गावों के 1800 किसानों की जमीन चाहिए, जिसके लिए प्रशासनिक अफसरों के एक बार ठीक से जोर लगाने की जरुरत है। जायज मागे पूरी होते ही किसान मान जाएंगे।
दरकार फुल रिंग रोड की
बड़ा बाईपास शहर का हाफ रिंग रोड होगा मगर जरूरत फुल की है। इसके लिए बीडीए ने प्रयास शुरू किए हैं। बदायूं और लखनऊ रोड को जोडऩे का फोरलेन बाईपास से लिंक करने का प्लान है। लंबाई नौ किमी है। लागत करीब 50 करोड़ आएगी, जिसके लिए मुख्यमंत्री ने सैद्धातिक मंजूरी दे दी है। यह बाईपास रजऊ में वहीं से शुरू होगा, जहा बड़ा बाईपास खत्म होगा। इसके अलावा बीडीए ने आवला से ही रामगंगा एक्सप्रेस-वे का प्रस्ताव रखा है, जिससे दिल्ली-बदायूं और लखनऊ रोड मिल जाएगा। जाहिर, यह सभी हिस्से रिंग रोड की कमी पूरी कर सकते हैं। नया प्रस्ताव इसलिए जरूरी है क्योंकि बड़ा बाईपास से पूरी समस्या हल नहीं होगी। बदायूं-मथुरा-आगरा-भरतपुर रोड को जोड़े बिना तरक्की के नए रास्ते नहीं खुलेंगे। इससे दिल्ली के अलावा राजस्थान और अन्य प्रदेशों तक पहुंच बढ़ेगी। प्रस्ताव फिलहाल शासन के पाले में पहुंच चुका है मगर उसे लागू करने के लिए नेताओं, अफसरों समेत सभी को लगना होगा।
देरी से बढ़ी लागत
अगर बड़ा बाईपास को ही पैमाना मानें तो काम में देरी के चलते इसकी लागत अब 500 करोड़ से ज्यादा आकी जा रही है। जब कंस्ट्रक्शन कंपनी ने इसका ठेका लिया तो इसकी लागत 300 करोड़ थी। प्रशासन जमीन दिलाने में अभी तक नाकाम है, जिससे पेंच फंसा हुआ है।
एक्सप्रेस वे की पड़े नीव, शुरू हो काम
भविष्य की सड़कें - फोरलेन से चलेगा सिर्फ काम, जरूरत रफ्तार बढ़ाने की
देश, रज्च्य और क्षेत्र की तरक्की के लिए जरूरी है सुगम सफर। रास्ते दुरुस्त होंगे तो तरक्की भी सरपट दौड़ेगी। इस लिहाज से अपना रुहेलखंड काफी धनी है। बदायूं को छोड़ दें तो बाकी सभी जिले देश के लगभग सभी हिस्सों को जोड़ते हैं। जो बचे हैं, उनके लिए नए-नए प्लान बन रहे हैं। फिर भी आकड़ों पर गौर करें तो यह सारी कवायद फौरी राहत देने भर को है। हमारे ऊपर जिम्मेदारी भविष्य के भारत, यूपी और रुहेलखंड निर्माण की है। लिहाजा, नीति नियंता ध्यान रखें कि जो भी योजनाएं बनें वे कम से कम 10 वर्ष आगे की सोचकर तैयार हों।
नेशनल हाईवे 24 यानी दिल्ली-लखनऊ रोड को ही लें। इस सड़क के फोरलेन का प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बना था। एक दशक बीत गया लेकिन हाईवे का काम खत्म नहीं हुआ है। यही स्पीड रही तो लखनऊ तक काम पूरा होने में दो से पाच वर्ष तक लग सकते हैं। इसमें भी कोई शक नहीं कि एनएच का चौड़ीकरण सूबे को नई रफ्तार देगा लेकिन भविष्य की सोचें तो उससे खास फायदा नहीं होने वाला।
जरूरत होगी एक्सप्रेस वे की
एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में हाईवे पर रोजाना तकरीबन 90 हजार वाहन गुजरते हैं। हर साल पाच फीसदी की रफ्तार से नए वाहन बढ़ रहे हैं। मतलब साफ है, बनने के बाद भी फोरलेन एनएच-24 सूबे को कोई खास राहत नहीं दे पाएगा। तब हमें जरूरत होगी एक्सप्रेस वे की, जिसके लिए अभी से तैयारी शुरू करनी होगी। अगर ऐसा करने से चूके तो जाम का वही पु
राना इतिहास दोहराया जाएगा।
छोड़ी जाए ग्रीन बेल्ट
भविष्य की भीड़ को कंट्रोल करने के लिए हमें हर स्तर पर अभी से प्लानिंग करनी होगी। वह नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे हों या फिर बाईपास हों। निर्माण करते वक्त सरकार सुनिश्चित करे की सड़कों के दोनों ओर ग्रीन बेल्ट जरूर छोड़ी जाए। इससे भविष्य में सड़कों की जरूरत के लिहाज से चौड़ा करने में दिक्कत नहीं आएगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सूबे के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। सड़कें तैयार होते ही उनके किनारे पक्के निर्माण खड़े हो जाते हैं, जिन्हें बाद में तोडऩा आसान नहीं रहता।
ग्रिड प्लान से मिलेगी राहत
शहरों और उनके नजदीक से गुजरने वाले हाईवे वाहनों की संख्या देखते हुए उनका बोझ उठाने के काबिल नहीं हैं। सरकार इस स्थाई दिक्कत को छोटे से प्रयास से दूर कर सकती है। पहले ग्रिड प्लान यानी चार लिंक रोड को आपस में मिलाएं। फिर उन्हें हाईवे से जोड़ दें ताकि जाम लगने पर ट्रैफिक को डायवर्ट किया जा सके। हालाकि, इस दिशा में प्रयास शुरू किए जा चुके हैं मगर उन्हें और तेजी देने की जरूरत है।
सर्कुलर सिस्टम भी करेगा काम
रुहेलखंड के सभी जिलों भी दिल्ली के कनाट प्लेस की तरह सर्कुलर सिस्टम लागू हो। इसमें चार सेज्ज्यादा सड़कों को आपस में जोड़ा जाता है। जिन्हें हम लिंक रोड भी कह सकते हैं। बरेली, पीलीभीत में इस सिस्टम के लिए अपार संभावनाएं हैं, जिसके जरिये जाम के झाम से मुक्ति पाई जा सकती है।
आउटर रिंग रोड
सरकार को चाहिए कि बाईपास यानी हाफ रोड के बजाए शहरों के इर्द-गिर्द पूरे रिंग रोड को मंजूरी दे ताकि किसी भी दिशा से आने वाला कहीं भी जा सके।
[लेखक: आरके सूरी, रिटायर्ड एक्सईएन , यूपी के कई शहरों में एई और अधिशासी अभियंता के रूप में अनुभव]
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर