दृढ़ इच्छाशक्ति से लौटेगा शहर का पुराना गौरव
अतीत को अपनी यादों में समेटे कानपुर को इस बात का इंतजार है कि शायद अब उसके दिन फिर से बहुरेंगे। एक बार फिर वह अपने पुराने गौरवमयी स्वरूप को हासिल कर सकेगा बशर्ते केंद्र व राज्य सरकारें दृढ़ इच्छाशक्ति, पारदर्शिता के साथ आपसी सामंजस्य बनाकर महानगर में उत्थान के लिए कार्ययोजना बनाएं।
कानपुर। अतीत को अपनी यादों में समेटे कानपुर को इस बात का इंतजार है कि शायद अब उसके दिन फिर से बहुरेंगे। एक बार फिर वह अपने पुराने गौरवमयी स्वरूप को हासिल कर सकेगा बशर्ते केंद्र व राज्य सरकारें दृढ़ इच्छाशक्ति, पारदर्शिता के साथ आपसी सामंजस्य बनाकर महानगर में उत्थान के लिए कार्ययोजना बनाएं।
महानगर का इंफ्रास्ट्रक्चर दुनिया के किसी भी औद्योगिक नगर के इंफ्रास्ट्रक्चर से कम नहीं है। यहा तो अपने ही संसाधन मौजूद हैं इसलिए किसी बाहरी स्त्रोत की आवश्यकता नहीं है। जरूरत है तो बस केवल पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर को पुर्नजीवित कर उपयोगी बनाने की। यही वह शहर है जो विश्व के तमाम देशों को फौज के लिए बूट, ड्रेस मैटीरियल, कंबल, तौलिया, चादर आदि वस्तुओं का उत्पादन कर उन्हें निर्यात करता था। यह बातें अब इतिहास बनकर रह गयी हैं। जंगल बन चुकी सरकारी कपड़ा मिलों, टेफ्को, वेजीटेबिल प्रोडक्ट आदि सरकारी मिलों की जमीनों को उपयोगी बताकर उनमें आज की जरूरत के अनुसार आधुनिक उद्योग स्थापित कर हजारों हाथों को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। इससे वर्तमान राजस्व छह हजार करोड़ को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। केंद्र व प्रदेश आपसी सहयोग के साथ एक मंच पर बैठकर मजबूत इच्छाशक्ति के साथ न्याय करें तो एम्स बनाने के लिए जमीन ढूढ़ने की आवश्यकता नहीं है। म्योर मिल, विक्टोरिया मिल व इनके लिए बनाए गए रिहाइशी बंगलों की जमीन पर शानदार एम्स खड़ा किया जा सकता है। टेफ्को, उसकी टेनरी डिवीजन और रिहाइशी जर्जर बंगलों पर लेदर पार्क निर्मित किया जा सकता है जो यहा के तीन हजार करोड़ से अधिक का निर्यात करने वाले चर्म उद्योग को और भी ऊंचाई पर ले जाने में कामयाब होगा। स्वदेशी काटन मिल व उनके सामने पड़े मैदान, खाली रिहायशी बंगलों पर टेक्सटाइल व होजरी पार्क विकसित किया जा सकता है।
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