बुनियादी ढांचे का विकास बने प्रदेश की प्राथमिकता
आधारभूत संरचना किसी विकास की बुनियादी शर्त है। हमारे पास गिनाने को तो सब कुछ (रेलवे मुख्यालय, हवाई सेवा, सड़क) है, पर अपवादों को छोड़ दें तो ये किस हाल में हैं, छिपा नहीं है।
गोरखपुर। आधारभूत संरचना किसी विकास की बुनियादी शर्त है। हमारे पास गिनाने को तो सब कुछ (रेलवे मुख्यालय, हवाई सेवा, सड़क) है, पर अपवादों को छोड़ दें तो ये किस हाल में हैं, छिपा नहीं है। जागरण के 'चलो आज कल बनाते हैं' अभियान के तहत सोमवार को बुनियादी ढांचा मुद्दे पर आयोजित गोष्ठी में विशेषज्ञों- इंजीनियरों ने कहा कि पिछड़े पूर्वाचल को शून्य से शुरू करना होगा।
उन्होंने कहा कि हमें यह तय करना होगा कि आधारभूत संरचना के लिहाज से हम कहां हैं। क्षेत्र की जरूरत के मुताबिक हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं। शहर से लेकर गांवों तक की बेहतरी के लिए किस तरह की आधारभूत संरचना जरूरी है। इसे तय करने के लिए जनप्रतिनिधि, नौकरशाह, सामाजिक सरोकार और सकारात्मक सोच रखने वाले स्थानीय तकनीकी विशेषज्ञ एक साथ बैठें। आधारभूत संरचना का ब्लूप्रिंट तैयार करें।
सबकी सोच के अनुसार जो काम हो उसके गुणवत्ता व समय बद्धता की निगरानी के लिए भी एक इसी तरह की समिति बने। इंजीनियर शम्स अनवर के मुताबिक समय-समय पर महसूस किए जाने से सकारात्मक सोच का परिणाम सामने भी आया है। स्व. मुख्यमंत्री बीर बहादुर सिंह जो सही मायनों में पूर्वाचल के विकास पुरुष थे। वे ऐसा सोचते और करते थे। 2002 में और 2010 में भी ऐसी पहल हुई थी, पर दुर्भाग्य जो भी योजना बनी वह फाइलों में गुम होकर रह गई। जब तक ऐसा होता रहेगा। हम अनियोजित तरीके से अनुपयोगी और आधारभूत संरचना खड़ा कर जनता की गाढ़ी कमाई का कब तक दुरुपयोग करते रहेंगे।
मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कालेज के सिविल विभाग के डा.श्रीराम चौरसिया के मुताबिक नियोजित विकास आज की सबसे बड़ी जरूरत है। दुखद यह है कि पिछले दो दशकों से कुछ भी नियोजित नहीं हो रहा है। सरकारी संस्थाएं जिनको नजीर बनाना चाहिए वे खुद अपने ही नियमों को तोड़ती हैं, फिर वे आम आदमी से कैसे कायदे-कानून की अपेक्षा करती हैं। हर जगह तमाम ऐसे निर्माण हुए हैं जो सारे नियम-कानून और मानकों को धता बताते हैं। जिन लोगों ने अपने तात्कालिक लाभ के लिए विकास के नाम पर समस्या पैदा की अगर उनकी जवाबदेही तय होती तो आगे कोई ऐसा करने की हिमाकत नहीं करता।
इंजीनियर सतीश सिंह के अनुसार हमें समग्रता में सोचना होगा। चूंकि पूर्वाचल कृषि प्रधान क्षेत्र है, इसलिए हमारी सोच के केंद्र में वही होना चाहिए। हमने गांवों को घटिया सड़कों के अलावा कुछ भी उपयोगी नहीं दिया है। पूरी की पूरी आबादी पानी के नाम पर जहर पी रही है। इंसेफेलाइटिस से लगायत अन्य तमाम जलजनित लोगों में मरने वालों में से अधिकांश ग्रामीण ही हैं। जब लोग ही नहीं रहेंगे या बीमार रहेंगे तो अर्थव्यवस्था में क्या योगदान देंगे। सबसे बड़ी जरूरत तो गांव से लेकर शहर में शुद्ध पानी मुहैया कराने के लिए बड़े और युद्धस्तर पर निवेश की जरूरत है। मानव संसाधन और मौजूदा जरूरत के मद्देनजर गांवों में सड़क, पुल, सिंचाई के संसाधन, फसल उत्पादन के बाद उनके भंडारण के लिए सामान्य और कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना होनी चाहिए। इनमें से पूर्वाचल के पास कुछ नहीं है। यही वजह है कि फलों और सब्जी के मांग के बावजूद हम आज भी धान और गेहूं ही पैदा करते हैं। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत जैसी एकीकृत चीनी मिलें लगें तो गन्ना किसानों को तो संजीवनी मिलेगी ही, इनके सह उत्पाद के आधार पर कई और उद्योग स्थिति हो जाएंगे।
इंजीनियर शिशिर गुप्ता के अनुसार इंद्र देवता से मिले वरदान पानी का बेहतर प्रबंधन कर लें तो चमत्कार हो जाएगा। बाढ़ का रोकथाम होगा। साल भर सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। ज जीव उद्योग की संभावनाएं बढ़ेंगी और जलजनित रोगों के अभिशाप से भी काफी हद तक मुक्ति मिलेगी।
युवा इंजीनियर एके राय ने सबकी राय से इत्तफाक रखते हुए कहा कि विकास कार्यो के नियोजन में अहं को परे रखकर अनुभवी और टेक्नोक्रेट्स की राय व मदद ली जाए। बिजली के तारों को भूमिगत करने, पार्किंग का उचित बंदोबस्त और पौधरोपण करने से गोलघर का लुक बदल सकता है। जरूरत है शासन-प्रशासन के पहल की। अजय श्रीवास्तव ने कहा कि नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास करना होगा। शासन-प्रशासन के सकारात्मक कार्यो में सकारात्मक सहयोग देना होगा।
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