बचा रहे ब्रज
मथुरा [भारतपाल सिंह]। ब्रजभूमि और ब्रजवासी हमेशा से प्रकृति प्रेमी रहे हैं। ब्रज में नगरों व गावों के नाम के पीछे वन शब्द जुड़ा होना यह बताता है ब्रजवासियों का प्रकृति से लगाव पुरातन है। वृंदावन, मधुवन, निधिवन, कोकिलावन, कोटवन व बहुलावन के नाम से ही यहा की प्राकृतिक संपदा का अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीकृष्ण ने इन्हीं वनों में बाल
मथुरा [भारतपाल सिंह]। ब्रजभूमि और ब्रजवासी हमेशा से प्रकृति प्रेमी रहे हैं। ब्रज में नगरों व गावों के नाम के पीछे वन शब्द जुड़ा होना यह बताता है ब्रजवासियों का प्रकृति से लगाव पुरातन है। वृंदावन, मधुवन, निधिवन, कोकिलावन, कोटवन व बहुलावन के नाम से ही यहा की प्राकृतिक संपदा का अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीकृष्ण ने इन्हीं वनों में बाल लीलाएं की और रास रचाया। मगर कुदरत की इस नेमत की ब्रजवासी हिफाजत नहीं कर पाए।
कंकरीट की इमारतों ने यहा के वन उजाड़ दिये हैं। सरकारी तंत्र हर वर्ष लाखों पौधे रोपता है। वन विभाग के आकड़ों पर गौर करें तो इस वर्ष करीब चार लाख पौधे रोपे जा चुके हैं। कागजों पर ही इन पौधों की परवरिश हो रही है। इसमें न केवल लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं बल्कि ये कागजी पौधे लहलहा भी रहे हैं। कागजों की यही हरियाली ब्रज की सूरत के साथ खिलवाड़ कर रही है। हकीकत में ये पौधे जमीन पर रोपे जाएं और इनकी सही ढंग से परवरिश की हो तो ब्रज की आबो-हवा बदल सकती है। सरकारी आकड़ों की बात करें तो राज्य व राष्ट्रीय वन नीति के तहत 33 फीसदी वन व वृक्ष आच्छादित क्षेत्र होना चाहिए। पर मथुरा में कुल क्षेत्रफल का एक फीसदी भी वन क्षेत्र नहीं है। यानी जिंदगी जीने के लिए हवा और पानी भी पर्याप्त मात्रा में नहीं है। ऐसे में सबसे पहली जरूरत है कि जो पेड़ बचे हैं उन्हें कठोर नियमों से बचाया जाए और नये वृक्षारोपण में सरकार वेरीफिकेशन पर लगातार नजर रखे।
यमुना योजना पर हो एक्शन
वर्ष 98 में यमुना कार्ययोजना के तहत 27 एमएलडी सीवेज के शोधन की व्यवस्था की थी। वर्तमान में यह बढ़कर 50 एमएलडी से ज्यादा हो गयी है। परंतु सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि पुराने एसटीपी चलते ही नहीं हैं। इसके पीछे के कारण सरकारी मशीनरी जनित हैं, जिनका संपूर्ण इलाज जरूरी है। यही नहीं 50 एमएलडी सीवेज के शोधन की व्यवस्था वर्तमान जरूरतों को देखते हुए करनी होगी।
नालों का मुड़ जाये रुख
शहर के गंदे पानी को शॉर्ट कट दिखाते हुये यमुना में बहाया जा रहा है। यमुना के जिस जल को श्रद्धा से आचमन किया जाना चाहिए, आज उसे छूने का मन तक नहीं होता। शहर के गंदे पानी को यमुना में मिलाने वाले नालों को सही ट्रीटमेंट दिया जाए तो यमुना की पवित्रता लौट सकती है।
बूंद-बूंद बचाओ ब्रज भूमि के
360 कुंड आज भले ही सूखे पड़े हों, लेकिन यह दर्शाता है कि हमारे पूर्वजों की सोच कितनी दूरगामी थी। पशु-पक्षियों व मनुष्यों के लिए पानी की जरूरत को उन्होंने बखूबी समझा। कुआ, तालाब, कुंडों और पोखरों की खुदाई व सफाई कर इनमें वर्षा जल संचयन करना होगा।
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