कागजों से निकलें हरियाली के फूल
आगरा, [जासं]। फिक्र कभी रुकी नहीं, पर्यावरण संरक्षण को हाथ-पैर खूब मारे गए, हरियाली महज बीज बनकर कागजों में कैद होकर रह गई है। जब बयार आगरा के विकास की चली है तो जरूरी है कि ऐतिहासिक पुस्तक बन चुकी योजनाओं की फाइलों से धूल झाड़ ली जाए। पीले होते धवल ताज की शिकन मिटा दी जाए। पर्यावरण के कवच के लिए दिशा तो
आगरा, [जासं]। फिक्र कभी रुकी नहीं, पर्यावरण संरक्षण को हाथ-पैर खूब मारे गए, हरियाली महज बीज बनकर कागजों में कैद होकर रह गई है। जब बयार आगरा के विकास की चली है तो जरूरी है कि ऐतिहासिक पुस्तक बन चुकी योजनाओं की फाइलों से धूल झाड़ ली जाए। पीले होते धवल ताज की शिकन मिटा दी जाए।
पर्यावरण के कवच के लिए दिशा तो कई वषरें पहले सुप्रीम कोर्ट दिखा चुका है, सिर्फ उस ओर कदम बढ़ाना है। ताज के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए ही ताज ट्रिपेजियम जोन चिन्हित किया गया। यहा प्रदूषण न बढ़े, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तमाम बंदिशें लगा दीं। कोयले की कालिख को मिटाया गया। पर्यावरण के लिए योजनाएं बनीं, लेकिन कुछ बेअसर रहीं तो कुछ अमल में न आ सकीं। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी, जो सुझाव दे सके कि ताज और किले के बीच 20 हेक्टेयर और रामबाग के पास छह हेक्टेयर यानी कुल 26 हेक्टेयर ताज कॉरीडोर क्षेत्र में पौधरोपण किया जाए। समिति ने 2006 में क्षेत्र को हरा-भरा करने संबंधी रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में करीब 42.5 करोड़ रुपये की लागत अनुमानित की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगाते हुए 13 फरवरी 2006 के
आदेश में एएसआइ को योजना के क्रियान्वयन का जिम्मा सौंपा। एएसआइ ने योजना पर अमल के बजाए सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर सुझाव दिया कि यह कार्य पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को करना चाहिए। नतीजतन, कॉरीडोर अब तक उजाड़ पड़ा है। यदि प्रदेश सरकार इस योजना को गंभीरता से लेते हुए इस ओर प्रयास करे, तो हरियाली का खूबसूरत आगन सज सकता है।
जमीं की आस में मुरझाता ताज
नेशनल पार्क आगरा विकास प्राधिकरण ने आगरा महायोजना में ताज के उत्तर में यमुना पार क्षेत्र में 143.36 हेक्टेयर भूमि को ताज नेशनल पार्क के लिए चिन्हित किया। लगभग डेढ़ दशक पहले पर्यटन विभाग ने भूमि अर्जन के लिए जिला प्रशासन को 3.23 करोड़ रुपया जमा कराया। यदि सरकार इस पर ध्यान दे तो पार्क के लिए जमीन मिलकर ताज के पीछे एक नयी रंगत तो मिले ही हरियाली भी हो।
कब तक इंतजार
राष्ट्रीय पार्क की स्थापना का अंतिम निर्णय वर्ष 1990 में लिया गया। यूएसए की नेशनल पार्क सर्विसेज के दल ने बीस दिन आगरा में रहकर सर्वेक्षण भी किया। एक मार्च 1990 को प्रोजेक्ट रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी। टीम ने अध्ययन रिपोर्ट एडीए को दी। इस पर विप्रा ने आइआइटी रुड़की, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद और दिल्ली विवि से भी अध्ययन करा रिपोर्ट ली थी। इसी तरह वर्ष 2000 में इलनाय यूनिवर्सिटी ने भी योजना का पुन: अध्ययन कर कई सुझाव दिए। इसके बाद भी हरियाली को अब तक उम्मीदों का पौधा लहलहाने का इंतजार है।
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