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..फिर भी जिंदगियां बना रहीं जीवनदायिनी

बेशक, रुहेलखंड तरक्की की ऊंची उड़ान पर है। सूबे और देश को नया आयाम देने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। विकास की इस गाथा का 'क्रेडिट' लेने को हर कोई आतुर है। आम क्या खास लेकिन इस अहम पड़ाव पर पहुंचने के लिए सिर्फ इंसानी श्रम ही नहीं लगा। प्रकृति ने इस क्षेत्र को कुछ ऐसी नेमत बरसाई कि रास्ता खुद ब खुद बनता गया।

By Edited By: Published: Fri, 12 Oct 2012 12:22 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2012 01:59 PM (IST)
..फिर भी जिंदगियां बना रहीं जीवनदायिनी

बरेली। बेशक, रुहेलखंड तरक्की की ऊंची उड़ान पर है। सूबे और देश को नया आयाम देने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। विकास की इस गाथा का 'क्रेडिट' लेने को हर कोई आतुर है। आम क्या खास लेकिन इस अहम पड़ाव पर पहुंचने के लिए सिर्फ इंसानी श्रम ही नहीं लगा। प्रकृति ने इस क्षेत्र को कुछ ऐसी नेमत बरसाई कि रास्ता खुद ब खुद बनता गया। गंगा घाटी में बसा अपना यह इलाका खेती के मामले में धनधान्य से भरपूर है तो इसका श्रेय सिर्फ हमारी लाइफ लाइन यानि नदियों को जाता है। बरेली में रामगंगा और उसकी सहायक नदिया, बदायूं में गंगा, शाहजहापुर में गंगा-रामगंगा समेत खन्नौत, गर्रा, पीलीभीत में देवहा, शारदा, खकरा अपना जीवन दाव पर लगाकर रुहेलखंड को सींचा है। आज जबकि नदिया अंतिम सासें गिन रही हैं, कचरा ढोते-ढोते उनका आचल पूरी तरह मैला हो चुका है, बाधों का फंदा उनके गले में बंधा है.। इसके बावजूद ये पतित पावनी अपने 'बच्चों' के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए आतुर हैं। मंडल में अब भी एक लाख 17 हजार 596 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई नहरों से होती है। रामगंगा का चेहरा पूरी तरह कुरूप हो चुका है मगर वह अपने सीने पर एक और बैराज का पत्थर रखवाने को तैयार है। सोचना तो सिर्फ इंसानों को है कि हमारे लिए सब कुछ दाव पर लगाने वाली इन नदियों को कैसे बचाया जाए? क्या हम इनसे सिर्फ लेना जानते हैं, इनका बोझ कम करना नहीं? वक्त की गरज है कि हम नदियों के बारे में संजीदगी से सोचना शुरू करें। अगर अब चूके तो रुहेलखंड की ये 'जीवनदायिनी' हमसे हमेशा-हमेशा विमुख हो जाएंगी, तब हमारे पास पछताने के सिवाए कोई चारा नहीं होगा।

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प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी जितेन्द्र कुमार ने बताया कि नदियों में फैक्टियों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए उपाए किए जा रहे हैं। केवल कागज बनाने वाली फैक्टियों से नदियों में प्रदूषण होता है। मंडल में शाहजहापुर और बरेली में कागज बनाने वाली दो फैक्टिया हैं। इनमें शाहजहापुर में केमिकल रिकवरी प्लाट (सीआरपी) लगा है। जबकि बरेली में फैक्ट्री में यह प्लाट लग तो गया है लेकिन अभी चालू नहीं हो सका है। इसके प्रयास जारी है। प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी की माने तो दीपावली तक यह प्लाट शुरू हो जाएगा।

नालों ने किया नदियों का कबाड़ा

शहर में नौ नाले नदियों में जाकर मिलते हैं। ये नाले नकटिया व देवरनिया नदियों में जाकर गिरते हैं। ये नदिया आगे जाकर रामगंगा में मिल जाती हैं। इन नालों को नदियों में मिलने से रोकने के लिए आज तक कोई रणनीति नहीं बनी।

अब वर्ष में दो बार होगी नदियों की सफाई

सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता एके सेंगर ने बताया कि नदियों का पानी साफ रहने के लिए जरूरी है कि नदियों की सफाई हो। शासन इस पर विशेष ध्यान दे रहा है। अभी तक साल में सिर्फ एक बार ही नदी की सफाई हुआ करती थी लेकिन अब रवि व खरीफ दोनों की फसलों के समय नदियों की सफाई होगी। इस बार करीब एक करोड़ रुपए से जिले की नदियों की सफाई की गई है। अधिकारियों का कहना है कि जब नदिया साफ रहेंगी तब पानी भी साफ मिलेगा।

प्रदूषण के बावजूद नहीं कम हो रही आस्था

रामगंगा में पानी के प्रदूषित होने के बावजूद भी लोगों की आस्था कम नहीं हो रही। रामगंगा मेले में आज भी लाखों श्रद्धालु रामगंगा में डुबकी लगाते हैं। हाल ही में गंगा स्नान में 50 हजार से ज्यादा लोगों ने डुबकी लगाई थी। वो भी तब जब रामगंगा में पानी घुटनों से नीचे थे। तब रामगंगा में साफ पानी छोड़ने के लिए विधायक धर्मपाल सिंह ने पहल की थी। मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी लेकिन अफसोस सरकार ने ज्यादा तवज्जो नहीं दिया।

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