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राजनीतिक इतिहास की झलक

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के साक्ष्य ऋग्वेद युग से मिलने शुरू होते हैं। शुरुआत में आर्य सभ्यता का क्षेत्र सप्तसिंधु (अविभाजित भारत की सात नदियों का प्रदेश)नदी था। बाद में गंगा और सरस्वती के मैदानों में कुरु, कोसल, पांचाल और काशी राज्यों का उदय हुआ। ये क्षेत्र वैदिक सभ्यता के प्रमुख केंद्र बने। छठी सदी में गुप्त युग के

By Edited By: Published: Sat, 29 Sep 2012 04:14 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2012 12:44 PM (IST)
राजनीतिक इतिहास की झलक

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के साक्ष्य ऋग्वेद युग से मिलने शुरू होते हैं। शुरुआत में आर्य सभ्यता का क्षेत्र सप्तसिंधु (अविभाजित भारत की सात नदियों का प्रदेश)नदी था। बाद में गंगा और सरस्वती के मैदानों में कुरु, कोसल, पांचाल और काशी राज्यों का उदय हुआ। ये क्षेत्र वैदिक सभ्यता के प्रमुख केंद्र बने। छठी सदी में गुप्त युग के पतन के बाद कन्नौज और थानेश्वर शक्ति के नए केंद्र बनकर उभरे। इसके राजा हर्षवर्धन (606-647 ईस्वी) के अधीन उत्तर भारत का एक बड़ा साम्राज्य था। हर्ष के समय में ही चीनी यात्री हवेन सांग भारत आया था। हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तर भारत पर वर्चस्व की लड़ाई में अंतिम रूप से गुर्जर-प्रतिहार वंश विजयी रहा। नौवीं-दसवीं सदी में उनका वर्चस्व बना रहा। 1018-19 में महमूद गजनवी ने उनको पराजित कर दिया। इसके बाद इस क्षेत्र में गहरवार वंश का प्रभुत्व रहा। इस वंश के राजा जयचंद (1170-1193 ईस्वी) ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ महमूद गोरी का साथ दिया। लिहाजा 1192 ईस्वी में महमूद गोरी ने पृथ्वीराज को पराजित किया और 1193 ईस्वी में जयचंद को हरा कर उसकी हत्या कर दी। 1203 में चंदेल वंश के राजा वीर परमल को गोरी के सहयोगी कुतुबुद्दीन ऐबक ने हरा दिया।

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