आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है?
वर्ष 1983 में महज दो लाख रुपये से वाराणसी के रामनगर औद्योगिक क्षेत्र में सीमेंट पैकेजिंग की एक छोटी इकाई की स्थापना कर उद्यमी आरके चौधरी ने अपनी कर्मठता व लगनशीलता से आज एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया हैं। समूह का सालाना टर्न ओवर लगभग पाच सौ करोड़ का है।
वाराणसी। वर्ष 1983 में महज दो लाख रुपये से वाराणसी के रामनगर औद्योगिक क्षेत्र में सीमेंट पैकेजिंग की एक छोटी इकाई की स्थापना कर उद्यमी आरके चौधरी ने अपनी कर्मठता व लगनशीलता से आज एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया हैं। समूह का सालाना टर्न ओवर लगभग पाच सौ करोड़ का है।
उनका मानना है कि एक उद्यमी में कड़ी मेहनत, समय पर उचित निर्णय लेने की योग्यता, दूरदृष्टि,जोखिम लेन की क्षमता व चुनौतियों से न घबराकर उनका मुकाबला करने का साहस होना चाहिए। सफलता उसके कदम चूमेगी मूल रूप से राजस्थान के झूंझनू जिले के रहने वाले आरके चौधरी ने वर्ष 1965 में जौनपुर के केराकत में मात्र पचास हजार रुपये से अपने भाई संग कपड़े का व्यवसाय शुरू किया। उनकी शुरू से ही सोच थी की व्यवसाय की अपेक्षा उद्योग में विकास की असीम संभावनाएं है।
इसी सोच के चलते वर्ष 1983 में उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र रामनगर में सीमेंट पैकैजिंग की इकाई स्थापित की। कोलकाता से जूट लाकर सिलाई मशीनों से उसकी सिलाई कर यूपी सीमेंट को आपूर्ति करने लगे। शुरू में अनुभव व संसाधन की कमी के कारण काफी संघर्ष करना पड़ा।
फैक्टरी लगाने से लेकर चालू करने तक अनेक प्रकार की समस्याएं व चुनौतिया आई परन्तु हार नहीं मानी और मनोयोग से कर्मठता के साथ काम करते रहें। दो वर्ष बाद परिणाम बेहतर नजर आने लगे। जिस कारखाने का उत्पादन पहले महने में 50 हजार जूट बोरी का था वह 3 लाख बोरी तक जा पहुंचा।
इसके बाद उन्होने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वर्ष 1988 तक 10 लाख बोरी प्रति माह यूपी सीमेंट को आपूर्ति करने लगे। इसके बाद सीमेंट की पैकेजिंग जूट की जगह प्लास्टिक में आ गई तो उन्होंने 1990 में प्लास्टिक के धागा, फेब्रिक कपड़ा की आटोमेटिक मशीन लगाई। प्रतिस्पर्धा के बावजूद हार नहीं मानी। नतीजतन सीमेंट व फर्टिलाइजर बोरी की क्षमता आज बढ़कर 3 करोड़ बैग प्रतिमाह हो गई है। उन्होंने वर्ष 2000 में बनारस में एक पेपर मिल यूनिट लगाई। 2003 में जगदीशपुर में आदित्य बिरला ग्रुप की फर्टिलाइजर बनाने की फैक्टरी ली और उसे भी आगे बढ़ाया। वर्ष 2006 में बीआइएफआर से पूना में एक पेपर मिल जिसमें न्यूज प्रिंट व क्राफ्ट की दो मशीनें लगाई। इसी प्रकार समूह ने वर्ष 2008 में रींवा में बैग बनाने की एक और फैक्टरी लगाई। वर्ष 2012 में चुनार में एक स्टील प्लाट लिया। कहते हैं श्री चौधरी -इस सब के पीछे उद्यमिता के लिए जो गुण होने चाहिए उन सभी गुणों को व्यावाहारिक रूप से जीवन में उतारने का प्रयास किया। यही वजह है कि आज मुझे व्यवसाय बढ़ाने का अवसर, सरकार को राजस्व तथा लोगों को रोजगार मिला।
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