टी-20 टीम में बड़े बदलाव की जरूरत
लगातार तीसरी बार आइसीसी टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में जगह बनाने में नाकाम रहने के बाद बीसीसीआइ को इस प्रारूप में बहुत बड़े बदलाव करने के बारे में सोचना होगा। यही नहीं अंतिम एकादश चुनने में धौनी के अड़ियल रवैये के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
कोलंबो। लगातार तीसरी बार आइसीसी टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में जगह बनाने में नाकाम रहने के बाद बीसीसीआइ को इस प्रारूप में बहुत बड़े बदलाव करने के बारे में सोचना होगा। यही नहीं अंतिम एकादश चुनने में धौनी के अड़ियल रवैये के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने की जरूरत है। संदीप पाटिल की अध्यक्षता वाली नई चयन समिति को तय करना होगा कि वे मौजूदा टी-20 टीम में आमूल-चूल बदलाव चाहते हैं या कुछ सीनियर खिलाड़ियों को क्रमबद्ध तरीके से विदाई देने का तरीका अपनाएंगे।
सबसे पहले बात करेंगे धौनी के अंतिम एकादश के चयन की। नाकाम रोहित शर्मा पर धौनी की मेहरबानी यहा भी जारी रही। रोहित को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे ज्यादा मौके मिले होंगे लेकिन उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ एक पारी को छोड़कर हमेशा निराश किया। जब तेज रन बनाने की जरूरत होती है तो यह खिलाड़ी धीमे खेलता है और जब टीम को टिककर खेलने की जरूरत होती है तो वह 10 गेंदों के अंदर ही आउट हो जाता है। ऐसे खिलाड़ी पर इतनी मेहरबानी करना संदेह उत्पन्न करता है। कप्तान धौनी की आखिरी तीन ओवरों के लिए खुद को बचाने की रणनीति का भी भारत को नुकसान हुआ है। टी-20 में वह भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं और उन्हें ऊपर उतरना चाहिए।
मौजूदा टी-20 विश्व कप में भारत के प्रदर्शन की समीक्षा की जाए तो दो सबसे सीनियर क्रिकेटरों वीरेंद्र सहवाग और जहीर खान के खराब फार्म का खामियाजा टीम को भुगतना पड़ा। सहवाग ने तीन मैचों में 18 की औसत से 54 रन बनाए। इंग्लैंड के खिलाफ मैच में उन्हें आराम दिया गया और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम में जगह नहीं दी गई। रवि शास्त्री और अरविंद डिसिल्वा समेत कई पूर्व क्रिकेटरों ने इस फैसले की निंदा की थी। सहवाग ने बाकी तीन पारियों में भी कोई कमाल नहीं किया जिससे सवाल उठता है कि यह प्रारूप उन्हें रास भी आता है या नहीं। उनके जैसे खिलाड़ी से कम से कम 15वें ओवर तक टिके रहने की उम्मीद की जाती है जिस तरह क्रिस गेल वेस्टइंडीज के लिए खेल रहे हैं। सहवाग गैर-जिम्मेदाराना शॉट खेलकर आउट होते रहे हैं और स्वाभाविक खेल खेलने का जुमला भी अब पुराना हो चुका है। कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने उनसे गेंदबाजी भी नहीं कराई। या तो उनकी ऑफ स्पिन गेंदबाजी पर धौनी को भरोसा नहीं रहा या कंधे के आपरेशन के बाद वह गेंदबाजी नहीं कर पा रहे हैं। धौनी ने कल अधूरे मन से सहवाग का बचाव करते हुए कहा कि जब भी टीम खराब खेलती है तो ऐसे सवाल किए जाते हैं।
दूसरे खिलाड़ी जहीर खान हैं। पिछले कई साल से भारतीय तेज गेंदबाजी आक्रमण की अगुआई कर रहे जहीर अब तीनों प्रारूपों में लगातार अच्छा नहीं खेल पा रहे हैं। भारत के खराब प्रदर्शन का कारण शुरुआती ओवरों में जहीर का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाना रहा है। इसके अलावा फील्डिंग में भी वह चुस्त नहीं है। ऐसे में टी-20 क्रिकेट में वह टीम के लिए बोझ बनते जा रहे हैं। भारत को टेस्ट मैच में उनके जैसे चतुर गेंदबाज की जरूरत है लेकिन टी-20 और वनडे में नहीं।
युवराज सिंह ने कैंसर से उबरकर टीम में वापसी की और उन्हें चुनने का फैसला जज्बाती रहा। उन्होंने बेहतरीन गेंदबाजी करते हुए छह से कम की औसत से रन देकर आठ विकेट लिए। हालाकि भारत को गेंदबाज युवराज की नहीं बल्कि बल्लेबाज युवराज की जरूरत है।
कुछ महीने पहले तक गौतम गंभीर को भावी कप्तन माना जा रहा था लेकिन सभी प्रारूपों में उनकी खराब फॉर्म चिंता का विषय बनी हुई है। पिछले दो साल में गंभीर ने टेस्ट क्रिकेट में शतक नहीं बनाया है। अब टी-20 में भी उनका प्रदर्शन गिरता जा रहा है। पाच मैचों में वह सिर्फ 80 रन बना सके हैं जिससे भारत को किसी मैच में अच्छी शुरुआत नहीं मिल पाई।
अजिंक्य रहाणे और मुरली विजय जैसे प्रतिभाशाली बल्लेबाजों ने ईरानी ट्राफी और चैलेंजर सीरीज में शानदार प्रदर्शन करके चयनकर्ताओं का ध्यान फिर आकर्षित किया है। ऐसे में टीम में जगह बनाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा अवश्यंभावी है।
इरफान पठान ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन 120 की रफ्तार से गेंदबाजी में स्विंग मिलने पर भी वह बल्लेबाज को रन बनाने से नहीं रोक सकते। उनका इकॉनामी रेट 8.5 रहा है। हरभजन सिंह ने इंग्लैंड के खिलाफ अच्छी वापसी की लेकिन दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्हें बाहर करना हैरानी भरा फैसला था। रोहित शर्मा की जगह हरभजन गेंदबाजी करते तो हालात दीगर हो सकते थे।
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