सेहत से ही निकलेगा तरक्की का रास्ता
तरक्की के जिस सफर पर उत्तर प्रदेश चल पड़ा है, वहा सेहत का साथ बेहद जरूरी है। इसके लिए अब राज्य के पास संसाधन भी उपलब्ध हैं। लगातार विकसित होती तकनीक की सहूलियत है। साथ ही शुरुआती स्तर का सही, ढाचा भी खड़ा हो चुका है।
नई दिल्ली, [मुकेश केजरीवाल]। तरक्की के जिस सफर पर उत्तर प्रदेश चल पड़ा है, वहा सेहत का साथ बेहद जरूरी है। इसके लिए अब राज्य के पास संसाधन भी उपलब्ध हैं। लगातार विकसित होती तकनीक की सहूलियत है। साथ ही शुरुआती स्तर का सही, ढाचा भी खड़ा हो चुका है। ऐसे में इसके लिए अपने लोगों को यह यकीन दिलवाना ज्यादा मुश्किल नहीं कि गरीबी अब इलाज के बिना उनकी मौत का कारण नहीं बनती रहेगी। जाच और इलाज सुविधाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिहाज से राज्य में हाल के वर्षो में काफी काम हुआ है। 20 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य उप केंद्र [सब सेंटर], साढ़े तीन हजार से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र [पीएचसी], पाच सौ से ज्यादा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 72 जिला अस्पताल खोले जा चुके हैं। गावों में घरों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए 1.36 लाख आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता रखी जा चुकी हैं।
लेकिन दूसरी हकीकत यह भी है कि अब तक राच्य में सिर्फ 23 फीसदी बच्चों को सभी टीके लग पाते हैं। गोरखपुर व आस-पास के इलाकों में सिर्फ दिमागी बुखार से हर साल सैकड़ों मासूम दम तोड़ रहे हैं। सरकार बताती है कि इस साल अब तक इससे साढ़े तीन सौ से ज्यादा की मौत हो चुकी है। पिछले दिनों राज्य में छह हजार करोड़ से ज्यादा का एनआरएचएम घोटाला तो हो चुका है। उस पर केंद्र ने कह दिया कि राज्य जब तक अपने हिस्से का बकाया एक हजार करोड़ रुपया इस खाते में नहीं डाल देता, कोई रकम जारी नहीं होगी। चुनौतियां बड़ी होने के बावजूद रास्ता उतना मुश्किल नहीं है। सिर्फ एनआरएचएम के तहत राज्य में इस साल 2,685 करोड़ रुपए उपलब्ध हैं। जिस तरह नई सरकार बनते ही चार साल से लटके यूपी एम्स के लिए केंद्र से विवाद दूर कर लिया, उससे उम्मीद जगी है कि केंद्र-राज्य संबंधों को विकास के आड़े नहीं आने दिया जाएगा। अचानक आने वाली बीमारी से बड़ी तादाद में गरीबों की जीवन भर की पूंजी लुट रही है या वे असमय दम तोड़ रहे हैं। जहां राष्ट्रीय स्तर पर मर्द औसतन 62.6 साल और औरतें 64.2 साल जाती हैं, सूबे में पुरुषों की औसत आयु 60 और महिलाओं की 59.5 ही है।
गरीब मरीजों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ के लिहाज से सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा उपलब्ध करवाना तत्काल राहत दिलाने वाला कदम हो सकता है। अगली पंचवर्षीय योजना में केंद्र सरकार मुफ्त में दवा के लिए व्यापक स्तर पर धन का प्रावधान करने वाली है। ऐसे में सिर्फ बेहतर व सक्रिय प्रबंधन से गरीबों का बड़ा भला हो सकता है। बच्चा मृत्यु दर पर भी तुरंत काबू करना राज्य के लिए बेहद जरूरी है। यहां प्रत्येक लाख शिशु के जन्म पर 359 बच्चा मौत ता शिकार हो जाती है। जबकि राष्ट््रीय स्तर पर यह औसत घट कर 212 हो चुका है। गर्भवती महिलाओं को यात्रा, चिकित्सा और दवा सहित सभी सुविधाएं मुफ्त देने की केंद्र सरकार की जननी सुरक्षा योजना को अगर राज्य प्रभावी तरीके से लागू करवा ले तो इस पर बिना अलग से ज्यादा धन खर्च किए बड़ा बदलाव किया जा सकता है।
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