खेतों को पानी पिला दो, फिर पैदावार देख लो
गंगा और यमुना के बीच में बसे अलीगढ़ की धरती सोना उगलती है। यह सोना है गेहूं, आलू, सरसों और धान। गन्ना और दलहन भी। मगर यह उगाने के लिए किसानों को एड़ी से चोटी तक पसीना बहाना पड़ता है। चुनौतियों के चक्रव्यूह को तोड़ना पड़ता है। क्या हैं चुनौतिया? किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाद-बीज की है। खाद क
अलीगढ़, [राज नारायण सिंह]। गंगा और यमुना के बीच में बसे अलीगढ़ की धरती सोना उगलती है। यह सोना है गेहूं, आलू, सरसों और धान। गन्ना और दलहन भी। मगर यह उगाने के लिए किसानों को एड़ी से चोटी तक पसीना बहाना पड़ता है। चुनौतियों के चक्रव्यूह को तोड़ना पड़ता है। क्या हैं चुनौतिया? किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाद-बीज की है। खाद के लिए हर साल लाठिया खानी पड़ती हैं। समय से खाद न मिले तो फसल चौपट। पूरे जिले में 125 सोसायटी हैं। किसान इन्हीं के भरोसे रहता है। रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसानों का नंबर पहले आता है, बाकी को इसके बाद ही खाद मिल पाती है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से खाद वितरण का लक्ष्य पूरा हो जाता है, मगर हकीकत किसान ही जानता है। दूसरी चुनौती सिंचाई की है। जिले में कहने को तो सात नदियां हैं, मगर कुछ लुप्तप्राय हो गई हैं। गंगा-यमुना बस छूते हुए निकल जाती है। जिले में लगभग आधे खेतों को ही नहर व सरकारी नलकूपों की कृपा प्राप्त है। बाकी बारिश पर निर्भर। नतीजा, मानसून के मुंह फेरते ही सूखे की मार। तीसरी चुनौती अनाज के भंडारण की है। समुचित इंतजाम के अभाव में हर साल काफी गेहूं सड़ जाता है। यह इलाका आलू उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। जिले में करीब 48 हजार हेक्टेयर में आलू बोई जाती है। ये आलू प्राइवेट कोल्ड स्टोरेज में रखे जाते हैं। सरकार के स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं। हजारों टन आलू हर साल सड़कों के किनारे फेंक दिए जाते हैं।
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