हार से हाशिए पर पहुंची कांग्रेस, बढेंगी मुश्किलें
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को क्षेत्रीय राजनीति के हाशिए पर धकेल दिया। दूसरे राष्ट्रीय दल भाजपा को भी खुश होने के लिए कुछ खास नहीं दिया। सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए समाजवादी पार्टी अभूतपूर्व बहुमत के साथ देश के सबसे बड़े प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने जा रही है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को क्षेत्रीय राजनीति के हाशिए पर धकेल दिया। दूसरे राष्ट्रीय दल भाजपा को भी खुश होने के लिए कुछ खास नहीं दिया। सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए समाजवादी पार्टी अभूतपूर्व बहुमत के साथ देश के सबसे बड़े प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने जा रही है।
पंजाब ने सबको चौंकाया। सत्ता विरोधी लहर को फांदते हुए अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार है। उत्ताराखंड की लड़ाई दिलचस्प और कांटे की रही। कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला तकरीबन बराबरी पर छूटा है और सत्ता की चाबी छोटे दलों एवं निर्दलीयों के हाथ आ गई है। पर्वतीय राज्य की राजनीति अस्थिरता और जोड़-तोड़ की तरफ बढ़ रही है। गोवा भाजपा ने छीन लिया और मणिपुर में कांग्रेस का रुतबा कायम रहा।
पांच राज्यों के चुनाव कांग्रेस के लिए किसी बुरे सपने के समान हैं। उत्तार प्रदेश में राहुल गाधी का प्रचार पार्टी की किस्मत कतई नहीं बदल सका। उत्तार प्रदेश की हार, पार्टी की सियासत से लेकर केंद्र सरकार के संतुलन, राज्यसभा चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव तक मार करेगी।
अप्रैल में 58 राज्यसभा सदस्य चुने जाने हैं। जिनमें दस उत्तार प्रदेश से होंगे। कांग्रेस के लिए अब एक सदस्य भी भेजना मुश्किल हो सकता है। अगले दो माह में राष्ट्रपति चुनाव भी होना है जिसमें लोकसभा और राज्यसभा सांसदों के साथ-साथ विधायक भी वोट डालेंगे। जाहिर है चुनावी नतीजों ने कांग्रेस के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
भाजपा को भी उत्तार प्रदेश ने कोई भाव नहीं दिया। पंजाब में भी ताकत कम हुई है मगर गोवा और उत्ताराखंड ने उसे राहत दी है। कांग्रेस की हार से केंद्र की राजनीति में भाजपा को हमलावर होने का मौका जरूर मिलेगा।
उत्तर प्रदेश में सपा की उम्मीदों से बहुत बड़ी जीत है। 224 सीटों के साथ सपा अकेले प्रदेश संभालेगी। जबकि बसपा के लिए यह अनुमान से बड़ी हार है। सत्ता विरोधी लहर के चलते बसपा सौ का आंकड़ा नहीं छू पाई। यूपी के मतदाताओं ने कांग्रेस और भाजपा को उनके पिछले आंकड़े के करीब ही रोक दिया।
वहीं पंजाब में सत्ता विरोधी मत पंजाब में पूरी तरह हावी नहीं हो पाए। मतदाताओं ने कांग्रेस की एक नहीं सुनी। अकाली दल पर भरोसा दिखाया और बादल परिवार को फिर सत्ता में पहुंचा दिया। पंजाब में 43 साल के इतिहास में पहली बार किसी दल को दोबारा सत्ता में आने का मौका मिला है।
उत्तराखंड में इतनी करीबी लड़ाई कम दिखती है। यहां कांग्रेस और भाजपा बराबरी पर छूटे हैं। बसपा सहित निर्दलीय प्रदेश की सरकार का भविष्य तय करेंगे। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की हार भाजपा के लिए बड़ा झटका रही है।
नतीजों के राजनीतिक असर :
1-राज्य सभा चुनावों में कांग्रेस की ताकत कमजोर
2-राष्ट्रपति चुनाव की बिसात बनी दिलचस्प
3-माया पर निर्भर होना पडे़गा कांग्रेस को
4-केंद्र सरकार के लिए समर्थकों को साधने की चुनौती बढ़ी, आर्थिक एजेंडे के लिए मुश्किल
5-कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ने के आसार
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