रांची सांप्रदायिक हिंसा की सीबीआइ जांच संभव, झारखंड हाई कोर्ट का कड़ा रुख, पुलिस जांच से कोर्ट असंतुष्ट
Ranchi Communal Violence रांची सांप्रदायिक हिंसा मामले की गुरुवार को कोर्ट में सुनवाई हुई। एनआइए ने कहा कि यूएपीए नहीं इसलिए नहीं कर सकते जांच। अदालत ने एसएसपी व थाना प्रभारी के ट्रांसफर की मांगी फाइल। डीजीपी से पूछा कि 31 प्राथमिकी की जांच की स्थिति बताएं।
रांची, राज्य ब्यूरो। Ranchi Communal Violence झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में रांची में हुई हिंसा की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार के जवाब पर एक बार फिर असंतोष जताया है। अदालत ने एसएसपी और थाना प्रभारी से संबंधित फाइल को कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। साथ ही हिंसा के दौरान रांची में दर्ज 31 प्राथमिकी की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। अदालत ने गृह सचिव और डीजीपी से पूरी जानकारी मांगी है। अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि इस मामले की जांच सही दिशा में नहीं की जा रही है। सिर्फ एक मामले को ही सीआइडी को सौंपा गया। ऐसे में क्यों नहीं इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी जाए। अदालत ने उक्त बातें तब कही, जब एनआइए की ओर से कहा गया कि यह यूएपीए एक्ट के उल्लंघन का मामला नहीं बता है। अभी इस मामले की जांच एनआइए नहीं कर सकती है। सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता आशुतोष आनंद ने पक्ष रखा।
एसएसपी को मुख्यालय में क्यों रखा
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया गया। जिसमें कहा गया कि प्रशासनिक व्यवस्था के तहत एसएसपी सुरेंद्र झा का ट्रांसफर किया गया है। अभी पदस्थापन की प्रतीक्षा में है। डेली मार्केट के थाना प्रभारी घायल थे और वे थाना नहीं आ रहे थे। इसलिए उनका स्थानांतरण किया गया है। अदालत ने कहा कि एसएसपी का ट्रांसफर किया गया तो उन्हें मुख्यालय में क्यों रखा गया है। उनकी पोस्टिंग कहां की गई है। जब थाना प्रभारी घायल थे तो उनके स्थान पर इंचार्ज थाना प्रभारी बनाया जा सकता था। उन्हें हटा क्यों दिया गया। इनकी फाइल भी कोर्ट में पेश की जाए।
सभी प्राथमिकी की स्थिति बताएं डीजीपी
इसके बाद अदालत ने डीजीपी से उन सभी केस की जानकारी मांगी जो रांची हिंसा के दौरान दर्ज किए गए थे। अदालत ने कहा कि सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि सिर्फ डेली मार्केट थाने में दर्ज मामले को ही सीआइडी को सौंपा गया। शेष 31 प्राथमिकी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। अपर महाधिवक्ता आशुतोष आनंद ने अदालत को बताया कि मानवाधिकार आयोग ने अपने एक आदेश में कहा है कि जब भी किसी मामले में पुलिस की गोली से कोई घायल होता है, तो ऐसे मामलों की जांच सीआइडी से कराई जाए। इसके आलोक में उक्त मामले को सीआइडी को सौंपा गया है। इस पर अदालत ने वर्ष 2010 के बाद ऐसे सभी मामलों की सूची मांगी है, जिसमें पुलिस की गोली से लोग घायल हुए हैं और उसकी जांच सीआइडी को सौंपी गई है। इसके अलावा अदालत ने डीजीपी को थानों में दर्ज प्राथमिकी की जांच और वर्तमान स्थिति की जानकारी देने का निर्देश दिया।
नहीं निकाल सकते हार्ड डिस्क
अपर महाधिवक्ता आशुतोष आनंद ने अदालत को बताया कि सीसीटीवी कैमरे का डाटा पुलिस मुख्यालय के सर्वर में एकत्र होता है। ऐसे में वहां से हार्ड डिस्क निकालना संभव नहीं है। वहीं, हिंसा के दौरान ड्रोन कैमरे से ली गई तस्वीर से उपद्रवियों के चेहरे साफ नहीं दिख रहे हैं। ड्रोन कैमरे काफी ऊंचाई पर उड़ रहे थे। इसलिए किसी की पहचान नहीं हो पा रही है। अदालत ने कहा कि आजकल की तकनीक काफी एडवांस हो गई है। अब ड्रोन से हमले हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि उपद्रवियों की पहचान नहीं हो रही है। अदालत ने इस मामले में सीआइडी की केस डायरी मांगी है। बता दें कि नुपूर शर्मा के विवादित बयान के बाद दस जून को रांची के मेनरोड हिंसा हुई थी। एक साथ दस हजार लोग जमा हो गए थे और तोड़फोड़ की गई थी। कई व्यापारिक प्रतिष्ठान, वाहनों में तोड़ फोड़ की गी थी। धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचाया गया था। पंकज कुमार यादव ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर इसे सुनियोजित साजिश बताते हुए इसकी जांच कराने की मांग की थी।