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Pulwama Ke Shaheed: कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे प्रदीप, चार दिन पहले ही भाई की शादी में हुए थे शामिल

पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए शामली के प्रदीप कुमार को याद कर हर आंख नम है। उनके पिता से लेकर गांव के लोग उनकी बातें याद कर भावुक हो रहे हैं।

By Ashu SinghEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 04:56 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 04:56 PM (IST)
Pulwama Ke Shaheed: कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे प्रदीप, चार दिन पहले ही भाई की शादी में हुए थे शामिल
Pulwama Ke Shaheed: कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे प्रदीप, चार दिन पहले ही भाई की शादी में हुए थे शामिल
शामली, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में गुरुवार शाम आतंकवादी हमले में शहीद होने वालों में बनत के प्रदीप कुमार प्रजापति भी हैं। सीआरपीएफ की 21वीं बटालियन में उनकी तैनाती डल झील पर थी। शहीद जवान प्रदीप का मकान बनत के मोहल्ला प्रतापनगर में है। वर्ष 2005 में प्रदीप सीआरपीएफ की 21वीं बटालियन में भर्ती हुए थे। उनकी ड्यूटी डल झील पर पर्यटकों की सुरक्षा में लगी थी। प्रदीप का परिवार गाजियाबाद में रहता है। पत्नी कामिनी के अलावा प्रदीप के दो बेटे सिद्धार्थ (15) और चीकू (14) है। बड़ा बेटा इंटर में और छोटा हाईस्कूल में पढ़ता है। प्रदीप के दो भाई हैं। एक भाई शामली में डाक्टर के यहां काम करते हैं और दूसरे भाई अमित सेना से सेवानिवृत्त हैं। बहन आरजू की शादी हो चुकी है। शामली शुगर मिल से सेवानिवृत्त उनके पिता जगदीश प्रजापति ने बिलखते हुए बताया कि लगभग छह बजे सीआरपीएफ के कमांडेंट ने फोन पर प्रदीप के शहीद होने की सूचना दी।  
तहेरे भाई की शादी में हुए थे शामिल
चार दिन पहले ही प्रदीप के तहेरे भाई दीपक की बनत में शादी थी। प्रदीप अवकाश लेकर आए थे। दो दिन पूर्व ही वह ड्यूटी पर गए थे। किसी ने सोचा भी नहीं था कि प्रदीप का यह बनत में आखिरी आगमन है।
अब कभी नहीं होगी प्रदीप से बात
‘मेरे बेटे ने देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए हैं। मुझे बेटे पर गर्व है, लेकिन बेटा हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर चला गया। 12 फरवरी के बाद मेरी उससे बात भी नहीं हुई और अब कभी होगी भी नहीं’। ये कहते हुए शहीद प्रदीप के पिता बिलख पड़े और खुद को संभालते हुए बोले कि अब सरकार को सोचना चाहिए कि क्या करना है, जो होना था, वो तो हो गया। पिता जगदीश ने बताया कि आठ फरवरी को प्रदीप परिवार में एक शादी के चलते छुट्टी पर आया था। 12 फरवरी को वह वापस चला गया था। तब से उससे मेरी कोई बात नहीं हुई। उन्होंने कहा कि गुरुवार दोपहर करीब 11.30 प्रदीप की अपनी मां सुनेलता से बात हुई थी। तब उसने कहा था कि वह रास्ते में है और श्रीनगर पहुंचकर आराम से बात करेगा। ढाई बजे प्रदीप की बात अपने बच्चों से भी हुई थी, जो तब गाजियाबाद में थे। उन्हें भी यही कहा था कि श्रीनगर पहुंचकर फोन करेगा, लेकिन अब कभी उसका फोन नहीं आएगा।
हो गई थी अनहोनी की आशंका
शहीद प्रदीप के भाई अमित ने बताया कि दोपहर बाद जब टीवी और सोशल मीडिया से पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले की सूचना मिली तभी प्रदीप का फोन मिलाया, जो स्विच ऑफ था, तभी लग गया था कि कोई बड़ी अनहोनी हो चुकी है। फिर भी एक उम्मीद थी कि प्रदीप का फोन आएगा और कहेगा कि वह बिल्कुल ठीक है, लेकिन फोन तो आया, पर वह बटालियन के अधिकारी का था।
कबड्डी में था नाम 
शहीद प्रदीप कबड्डी के बेहतरीन खिलाड़ी थे। वह स्थानीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेते थे और लोगों में उनका खेल देखने को लिए क्रेज हुआ करता था। सीआरपीएफ में जाने के बाद वहां भी कबड्डी की प्रतियोगिता में प्रतिभाग करते रहे। तमाम स्तरों पर शानदार प्रदर्शन किया। साथ ही वह वॉलीबाल भी खेला करते थे। बनत निवासी भंवर सिंह ने बताया कि 15 साल पहले क्षेत्र में कबड्डी के खिलाड़ियों में प्रदीप का नाम हुआ करता था। बस पता चल जाए कि बनत या आसपास में भी कहीं प्रतियोगिता है और प्रदीप उसमें हिस्सा ले रहा है तो लोग पहुंच जाते थे। अगर आयोजन स्थल दूर होता था तो ट्रैक्टर-ट्रॉली से जाते थे। प्रदीप के भाई अमित ने बताया कि प्रदीप तीनों भाइयों में सबसे बड़े थे, लेकिन घर के सबसे लाड़ले थे। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी और सभी को हंसाते रहते थे। बनत निवासी सभासद कंवरपाल राणा ने बताया कि ‘प्रदीप कबड्डी में अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों को धूल चटा देता था। जिस टीम में वह होता था तो सामने वाली टीम के लिए वह खौफ से कम नहीं होता था।
पापा कहते थे, पत्थरबाजों को जवाब देने की छूट नहीं
गाजियाबाद से सटे गांव मटियाला के निकट बसी राधा कृष्णा एंकलेव में मातम पसरा है। शहीद प्रदीप कुमार ने यहां दो साल पहले ही अपना मकान बनाया था। दो दिन पहले यहां परिवार में हुई शादी में बीवी बच्चों के साथ शामिल हुए थे। जाने से पहले यहां पड़ोस में रहने वालों से कहा कि मेरे बच्चों का ख्याल रखना। बेटा सिद्धार्थ कहता है कि पापा बताते थे कि कश्मीर में उन पर पत्थरबाजी होती है, लेकिन उन्हें इसका जवाब देने की आजादी नहीं है। कमला नेहरू नगर स्थित केंद्रीय विद्यालय में प्रदीप का बड़ा बेटा सिद्धार्थ इंटर व छोटा बेटा विजयंत नौवीं कक्षा में है। गाजियाबाद में अपने पड़ोस में रहने वाली विमलेश देवी को वह आंटी कहकर बुलाते थे। कश्मीर जाने से पहले पड़ौसी मौ. वासिल से जाकर मिले और कहा कि चाचा मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं बच्चों का ख्याल रखना...। शुक्रवार दिन निकलने पर प्रदीप कुमार की शहादत की खबर से यहां मातम पसर गया। विमलेश देवी से लेकर मरजीना और मोहम्मद वासिल की आंख से आंसू निकल गए। विमलेश देवी किसी से फोन पर बात करते हुए फूट-फूटकर रोने लगी।
पत्नी गुमसुम, छोटा बेटा बुखार में
पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के जवान प्रदीप कुमार की शहादत की खबर उनके पैतृक आवास बनत में उनके पिता को लगी, जो देर तक इसी पसोपेश में में रहे कि बहू और पौत्र को किस तरह इसकी जानकारी दें। हिम्मत करके देर रात उन्होंने इस बारे में बताया। सिद्धार्थ ने अपनी मम्मी को इसकी भनक नहीं लगने दी और रात करीब ढाई बजे वह गाड़ी से अपनी मम्मी, छोटे भाई व मामा के साथ बनत के लिए निकल गए, जहां शुक्रवार सुबह पांच बजे बनत घर पहुंचने पर इसका आभास हुआ। उसी वक्त से वह गुमसुम सी हालत में है और शहीद का छोटा बेटा विजयंत बुखार में।
बच्चों की शिक्षा के लिए बनाया था गाजियाबाद में मकान
शहीद प्रदीप के भाई अमित ने बताया कि प्रदीप ने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए परिवार को गाजियाबाद शिफ्ट किया था। प्रदीप, अमित और नवीन तीनों भाइयों की शादी तीन सगी बहनों से ही हुई थी। शादी के बाद ही प्रदीप की सीआरपीएफ में नौकरी लगी। प्रदीप ने गाजियाबाद में लोन लेकर मकान भी बनाया था।
बेटों की बात
पापा जब भी छुट्टी लेकर आते तो हम दोनों भाइयों के साथ क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन खेलते थे। पंजा लड़ाते थे और कुश्ती लड़ते। हर बार वह मुङो हरा देते थे, लेकिन पन्द्रह दिन पहले वह छुट्टी लेकर आए थे तो मैने उन्हें कुश्ती में हरा दिया था। तब उन्होंने बोला कि अब तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर हो गए हो। पापा मुङो चार्टड अकाउंटेंट बनाना चाहते थे। वहां के बारे में बताते थे कि आतंक बढ़ रहा है पत्थरबाजी होती है उन पर, लेकिन उन्हें इसका जवाब देने की आजादी नहीं है। मैं उनके सपने को मैं पूरा करुंगा। मैं चाहता हूं सरकार सख्त फैसला ले।
सिद्धार्थ (बड़ा बेटा)
पापा कहते थे कि तुम दिल लगाकर पढ़ते रहो। जो तुम्हारा मन करे वो बनना, लेकिन सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना। जब भी वह छुट्टियों में आते तो घर पर दीवाली का माहौल होता था। वह हम दोनों भाइयों के साथ खेलते हुए सुबह दोनों को लेकर रनिंग के लिए निकलते थे।
विजयंत (छोटा बेटा)

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