सिंधु जल संधि में संशोधन की चुनौती, पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी रोकना आसान काम नहीं
भारत-पाकिस्तान के बीच इस समझौते की नजीर सारी दुनिया में दी जाती है कि तीन-तीन युद्ध और लगातार तनावग्रस्त संबंध के बावजूद यह संधि कायम रही। इस संधि के अनुसार सतलज व्यास और रावी नदियों को पूर्वी जबकि झेलम चिनाब और सिंधु को पश्चिमी क्षेत्र की नदी कहा गया।
पंकज चतुर्वेदी : सिंधु जल बंटवारे को लेकर भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति के अपने आग्रह से पीछे हटकर मामले को मध्यस्थता अदालत में ले जाने पर अड़ा है। यह कदम संधि के अनुच्छेद नौ में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है। इसीलिए भारत ने सितंबर 1960 में हुई सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है।
वास्तव में भारत ने इस संधि को लागू करने में इस्लामाबाद की हठधर्मिता के बाद यह कदम उठाया है। ध्यान रहे कि अगस्त 2021 में संसद की एक स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि इस संधि पर फिर से बातचीत की जाए, ताकि जलवायु परिवर्तन से जल उपलब्धता पर पड़े असर और अन्य चुनौतियों से जुड़े उन मामलों को निपटाया जा सके, जिन्हें समझौते में शामिल नहीं किया गया है।
पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पाकिस्तान को जाने वाली नदियों का पानी रोकने पर विचार लंबे समय से चल रहा है, लेकिन पानी रोकने का काम कोई बटन दबाने वाला नहीं है। दुनिया की सबसे बड़ी नदी घाटी प्रणालियों में से एक सिंधु नदी की लंबाई करीब 2,880 किमी है। सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (आठ प्रतिशत) और अफगानिस्तान (छह प्रतिशत) में है। अनुमान है कि तकरीबन 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास रहते हैं। सिंधु नदी तंत्र की छह नदियों में कुल 16.8 करोड एकड़ की जल निधि है। इसमें से भारत अपने हिस्से का करीब 90 प्रतिशत पानी इस्तेमाल कर लेता है। शेष पानी रोकने के लिए अभी कम से कम छह साल लगेंगे।
तिब्बत में कैलास पर्वत शृंखला से बोखार-चू नामक ग्लेशियर के पास से अवतरित सिंधु नदी भारत में लेह क्षेत्र से गुजरती है। लद्दाख सीमा को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर में गिलगित के पास दार्दिस्तान क्षेत्र में इसका प्रवेश पाकिस्तान में होता है। जिन पांच नदियों रावी, चिनाब, झेलम, ब्यास और सतलुज के कारण पंजाब का नाम पड़ा, वे सभी सिंधु की जल-धारा को समृद्ध करती हैं। सतलुज पर ही भाखडा-नंगल बांध है। भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच भौगालिक सीमाएं खिंच चुकी हों, लेकिन यहां की नदियां, मौसम और संस्कृति सहित कई बातें चाह कर भी बंट नहीं पाईं।
सिंधु नदी प्रणाली का कुल जल निकासी क्षेत्र 11,165,000 वर्ग किमी से अधिक है। वार्षिक प्रवाह की दृष्टि से यह विश्व की 21वीं सबसे बड़ी नदी है। यह पाकिस्तान के भरण-पोषण का एकमात्र साधन भी है। अंग्रेजों ने पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की सिंचाई के लिए विस्तृत नहर प्रणाली का निर्माण किया था। विभाजन ने इस बुनियादी ढांचे का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में छोड़ दिया, लेकिन हेडवर्क बांध भारत में बने रहे, जिससे पाकिस्तान के बड़ी जोत वाले जमींदारों में हमेशा डर का भाव रहा है। सिंधु नदी बेसिन के पानी के बंटवारे के लिए कई वर्षों की गहन बातचीत के बाद विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की मध्यस्थता की। कई विदेशी विशेषज्ञों के दखल के साथ दस साल तक बातचीत चलती रही और सितंबर 1960 में कराची में जल बंटवारे को लेकर द्विपक्षीय समझौता हुआ।
भारत-पाकिस्तान के बीच इस समझौते की नजीर सारी दुनिया में दी जाती है कि तीन-तीन युद्ध और लगातार तनावग्रस्त संबंध के बावजूद यह संधि कायम रही। इस संधि के अनुसार सतलज, व्यास और रावी नदियों को पूर्वी, जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु को पश्चिमी क्षेत्र की नदी कहा गया। पूर्वी नदियों के पानी का पूरा हक भारत के पास है तो पश्चिमी नदियों का पाकिस्तान के पास। बिजली, सिंचाई जैसे कुछ मामलों में भारत पश्चिमी नदियों के जल का भी इस्तेमाल कर सकता है। भारत रावी पर शाहपुर कंडी में बांध बनाना चाहता था, पर यह परियोजना 1995 से रुकी है। भारत ने अपने हिस्से की पूर्वी नदियों का पानी रोकने के प्रयास किए, मगर सामरिक दृष्टि से ऐसी योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पाईं। अब शाहपुर कंडी के अलावा सतलुज-व्यास लिंक योजना और कश्मीर में उझा बांध पर भी काम हो रहा है। इससे भारत अपने हिस्से का सारा पानी इस्तेमाल कर सकेगा।
सिंधु जल संधि में विश्व बैंक सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं और उन्हें नजरअंदाज कर पानी रोकना कठिन होगा। हां, पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों में सीधी भागीदारी सिद्ध करने के बाद यह संभव होगा, लेकिन यदि हम पानी रोकते हैं तो उसे सहेजने के लिए बड़े जलाशय, बांध चाहिए और नहरें भी। यदि बिना प्रबंध पानी रोकने का प्रयास किया गया तो जम्मू-कश्मीर, पंजाब आदि में जलभराव हो जाएगा। आजादी के इतने साल बाद भी अपने हिस्से की नदियों का पूरा पानी इस्तेमाल करने के लिए बांध आदि न बना पाने का असल कारण प्रतिरक्षा नीतियां हैं। साझा नदी पर कोई भी विशाल जल-संग्रह दुश्मनी के हालात में पाकिस्तान के लिए ‘जल-बम’ के रूप में काम आ सकता है।
भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों पर चीन के निवेश से कई बिजली परियोजनाएं हैं। यदि उन पर कोई विपरीत असर पड़ा तो चीन ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के माध्यम से हमारे समूचे पूर्वोत्तर राज्यों को संकट में डाल सकता है। अरुणाचल और मणिपुर की कई नदियां चीन की हरकतों के कारण एकाएक बाढ़, प्रदूषण और सूखे को झेल रही हैं। स्पष्ट है कि सिंधु जल संधि को संशोधित करना आसान नहीं।
(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)