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गलत मुद्दों में उलझे विपक्षी दल, जनता को भड़काकर अपने पक्ष में करना खतरनाक नैरेटिव

चुनाव लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा होते हैं। किसी भी सरकार या दल को अनियंत्रित ताकत न मिल जाए इसीलिए संविधान निर्माताओं ने हर पांच साल में इस अग्निपरीक्षा का प्रविधान किया। जो उम्मीदों पर खरा न उतरे उसे जनता बाहर करने में देर नहीं करती।

By Ashisha RajputEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 10:24 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 07:06 AM (IST)
गलत मुद्दों में उलझे विपक्षी दल, जनता को भड़काकर अपने पक्ष में करना खतरनाक नैरेटिव
विपक्षी दल यह समझने से इन्कार कर रहे हैं कि जनता को भड़काकर अपने पक्ष में नैरेटिव तैयार करना खतरनाक

[आशुतोष झा ]। सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना में अब तक दो लाख से अधिक युवाओं ने आवेदन कर दिया है यानी जितने भर्ती होने हैं, उससे कई गुना ज्यादा। इसके बाद भी पंजाब विधानसभा ने अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। बिहार में विपक्षी दलों की ओर से लगातार विधानसभा की कार्यवाही बाधित की जा रही है। कुछ दिन पहले कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति से मिलकर इस योजना को देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक और युवाओं के विरुद्ध बताकर वापस लेने की मांग की।

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एक पखवाड़ा पहले अग्निपथ योजना के विरोध में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, तेलंगाना आदि राज्यों में जो उबाल दिखा या दिखाया गया, उसके पीछे भी राजनीतिक दलों की भागीदारी थी। युवाओं को उकसाने की कोशिश अभी भी जारी है। इस मामले में क्षेत्रीय दलों की मजबूरी समझी जा सकती है, लेकिन आखिर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी यह क्यों नहीं समझना चाहती कि सुरक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर सस्ती किस्म की राजनीति उसे ही भारी पड़ने वाली है? सच्चाई यह है कि कांग्रेस इसे समझती है, पर जिन्हें फैसला लेना है, वे भ्रमित हैं। इसीलिए जहां अधिकांश वरिष्ठ नेता चुप हैं, वहीं मनीष तिवारी ने तो अग्निपथ योजना के समर्थन में खुलकर बोलना शुरू कर दिया है।

चुनाव लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा होते हैं। किसी भी सरकार या दल को अनियंत्रित ताकत न मिल जाए, इसीलिए संविधान निर्माताओं ने हर पांच साल में इस अग्निपरीक्षा का प्रविधान किया। जो उम्मीदों पर खरा न उतरे, उसे जनता बाहर करने में देर नहीं करती। सरकार पर निगरानी रखने में विपक्षी दलों की बड़ी भूमिका होती है, लेकिन जनता को भड़काकर अपने पक्ष में नैरेटिव तैयार करना खतरनाक है। अग्निपथ योजना की घोषणा के कुछ ही दिन बाद कई राज्यों में उपचुनाव हुए। इनमें जनता ने अपना रुझान दिखा दिया। इसके बाद भी कांग्र्रेस और अन्य विपक्षी दल दीवार पर लिखी इबारत पढऩे से इन्कार कर रहे हैं।

अग्निपथ योजना के विरोध के दौरान ही तीन लोकसभा और सात विधानसभा सीटों पर जो उपचुनाव हुए, उसमें विपक्ष को मात खानी पड़ी। सपा अपने मजबूत गढ़ों-आजमगढ़ और रामपुर में भी हार गई। कांग्रेस सपा को परोक्ष समर्थन देकर भी भाजपा को नहीं रोक पाई। इससे पहले सपा, रालोद समेत कुछ छोटे दलों को साथ जोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसमें भी लगातार दूसरी बार नकार दी गई थी। पंजाब में अभी कुछ महीने पहले ही भगवंत मान अभूतपूर्व जीत के साथ मुख्यमंत्री बने, लेकिन वह अपनी लोकसभा सीट संगरूर पर आम आदमी पार्टी को जीत नहीं दिला सके। यह उनकी पहली चुनावी परीक्षा थी, जिसमें वह असफल हो गए।

अग्निपथ योजना के पहले सीएए, नोटबंदी और यहां तक कि जीएसटी के खिलाफ भी विपक्ष ने राजनीतिक अभियान चलाया, जिसे जनता ने खारिज कर दिया। इसके बाद भी विपक्षी दल जमीनी हकीकत समझने को तैयार नहीं। यह साफ हो चुका है कि अग्निपथ योजना के विरोध में बिहार में जिस तरह सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, उसमें राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की भी भूमिका थी। अन्य जगहों पर भी उनकी खुली-छिपी सक्रियता देखी गई।

आखिर सेना से बड़ा राष्ट्रवाद का दूसरा प्रतीक चिह्न और क्या होगा, लेकिन उसके विरुद्ध भी एक समूह खड़ा हो गया। यह वही समूह है, जो नक्सलियों के हाथों बलिदान हुए सीआरपीएफ के 76 जवानों पर भी जश्न मनाता है। जब इस पर सवाल उठते हैं तो सफाई दी जाती है कि वह तो बस 'आपरेशन ग्रीन हंटÓ का विरोध था। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सामान्य बात है, लेकिन उनका बड़ी साजिश का हिस्सा बन जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। चूंकि भाजपा भी इस हकीकत को जानती है कि रोजगार का सवाल उठाकर जनता से जुड़ा जा सकता है, इसीलिए कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री ने डेढ़ साल में दस लाख नौकरी की घोषणा कर दी। उसी दिन अग्निपथ योजना की भी घोषणा की गई। विपक्षी दलों ने इसके विरोध को अपना राजनीतिक हथियार बना लिया, लेकिन उसे नाकामी ही मिली। सवाल यह है कि पिछले आठ वर्षों में हर आंदोलन में एक जैसे चेहरे क्यों दिखते हैं? नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसा हुई और शाहीन बाग का धरना जिस तरह महीनों तक जारी रहा, उसे लोग भूल नहीं सकते। इसी तरह कृषि कानून विरोधी आंदोलन के नाम पर लगभग एक वर्ष तक राजधानी दिल्ली के आसपास अराजकता की गई। किसानों को एमएसपी खत्म होने का जो भय दिखाया गया, वह कुछ दिनों बाद ही निर्मूल साबित हुआ। आंकड़े बताते हैं कि किसानों ने खुले बाजार मे जाकर अनाज बेचा और ज्यादा मुनाफा कमाया।

अभी हाल में उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर के जरिये कांग्रेस ने यह संकेत दिया था कि वह यह समझ गई है कि संकुचित राजनीति के चंगुल से बचना है और सकारात्मक राजनीति करनी है, लेकिन अफसोस कि वह फिर से पुरानी राह पर ही चलना पसंद कर रही है। उसने अग्निपथ योजना के खिलाफ देशव्यापी सत्याग्रह किया। इस दौरान पार्टी के शीर्ष नेताओं ने कहा कि किसी भी कीमत पर मोदी सरकार को हटाना है। इससे यही प्रकट हुआ कि विरोध तो बहाना है, निशाना कुछ और है।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल 2024 की तैयारी अवश्य कर रहे हैं, लेकिन वे सही मुद्दों का चयन नहीं कर पा रहे हैं। 2014 के बाद से कांग्रेस लगातार सिकुड़ती जा रही है। कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कुल 680 सीटों में केवल 56 ही जीत सकी थी। कृषि कानून विरोधी आंदोलन को अपनी जीत का हथियार बनाने की कोशिश में कांग्रेस ने पंजाब भी गंवा दिया था।


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