Move to Jagran APP

चुनावी नतीजों से सबको मिला खुश होने का मौका, लेकिन कांग्रेस के लिए फिर भी आत्‍मचिंतन का समय

हिमाचल के परिणाम कांग्रेस की विजय के बजाय लोगों का स्थानीय मुद्दों पर भाजपा के प्रति आक्रोश व्यक्त करता है। भले कांग्रेस जीत गई पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वहां मुख्यमंत्री पद के लिए प्रतिभा सिंह सुखविंदर मुकेश अग्निहोत्री विक्रमादित्य सिंह आदि अनेक दावेदार हैं।

By Jagran NewsEdited By: Praveen Prasad SinghPublished: Thu, 08 Dec 2022 11:32 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2022 11:32 PM (IST)
चुनावी नतीजों से सबको मिला खुश होने का मौका, लेकिन कांग्रेस के लिए फिर भी आत्‍मचिंतन का समय
यदि दिल्ली नगर निगम ने आप को तो गुजरात ने भाजपा और हिमाचल ने कांग्रेस को मुस्कराने की वजह दी।

डा. एके वर्मा : गुजरात, हिमाचल विधानसभा और दिल्ली नगर निगम चुनाव तीन किले की तरह थे, जो जनता ने तीन पार्टियों क्रमशः भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) को सौपें। यह भारतीय लोकतंत्र का उन सबको करारा जवाब है, जो देश में एक साथ चुनाव कराने को लेकर सशंकित रहते हैं, ईवीएम पर संदेह करते हैं और यदा-कदा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाते हैं। गुजरात में भाजपा की प्रचंड आंधी में कांग्रेस और आप उड़ गए, हिमाचल में कांटे की लड़ाई में कांग्रेस ने और दिल्ली नगर निगम चुनावों में, जहां हिमाचल के 56 लाख के मुकाबले 79 लाख मतदाता हैं, आप को पूर्ण बहुमत मिला।

loksabha election banner

इन तीनों जगह अलग-अलग प्रवृत्तियां दिखाई दीं। गुजरात में भाजपा ने लगातार सातवीं बार चुनाव जीत कर रिकार्ड बनाया, जो बंगाल में वाम मोर्चा के 1977 से 2006 तक लगातार सात बार सरकार बनाने के बराबर है। हिमाचल में 1990 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के शांता कुमार द्वारा कांग्रेस को विस्थापित कर सत्ता परिवर्तन का जो क्रम शुरू हुआ, वह भी बना रहा। 32 वर्षों से हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती हैं। यही प्रवृत्ति तमिलनाडु में है, जहां 37 वर्षों से द्रमुक और अन्नाद्रमुक बारी-बारी से सत्ता में आती हैं। केवल 2016 चुनाव अपवाद है, जब अन्नाद्रमुक की जयललिता ने सत्ता में वापसी की। केरल में भी 1987 से एलडीएफ और यूडीएफ में सत्ता-परिवर्तन होता रहा है। 2021 का चुनाव अपवाद है, जिसमें एलडीएफ ने पुनः सता प्राप्त की। यह शोध का विषय है कि क्यों कुछ राज्यों में मतदाता सत्तारूढ़ दल को दोबारा सत्ता नहीं सौंपते? तीसरी प्रवृत्ति दिल्ली नगर निगम में दिखाई देती है, जहां भाजपा को विस्थापित कर आप ने सत्ता हासिल कर स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर डबल इंजन की सरकार का फार्मूला लागू कर दिया।

सबसे महत्वपूर्ण गुजरात के चुनाव रहे, क्योंकि किसी पार्टी के लिए लगातार सातवीं बार चुनाव जीतना अप्रत्याशित है। कैसे किया भाजपा ने यह करिश्मा? 2017 के चुनावों में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, मगर पार्टी 99 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद भी भाजपा का जनाधार 2012 (47.8%) के मुकाबले बढ़कर 49% हो गया। उस समय आरक्षण पर पाटीदार आंदोलन उग्र था, जिसका नेतृत्व हार्दिक पटेल जैसे नेता कर रहे थे, जिससे पटेल वोट कांग्रेस की ओर चले गए, मगर भाजपा ने आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देकर और हार्दिक पटेल को मिलाकर न केवल पाटीदारों का आंदोलन खत्म किया, वरन उनका समर्थन हासिल किया। परिणामस्वरूप, पिछले चुनाव के मुकाबले 2022 में भाजपा का जनाधार बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया, जिससे भाजपा ने इतिहास रचा। दोनों राज्यों में ‘आप’ के प्रवेश से कौतूहल था कि क्या पार्टी दिल्ली और पंजाब की पुनरावृत्ति कर सकती है? हिमाचल के मतदाताओं ने ‘आप’ को कोई भाव नहीं दिया, पर गुजरात में उसने मुकाबला त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया। वहीं, ओवैसी की पार्टी को मिले 88 हजार वोटों से साफ है कि गुजराती मुस्लिमों के वोट नहीं मिले।

2014 के लोकसभा चुनावों से चुनाव मोदी-केंद्रित हो गए हैं। प्रत्येक राज्य में लगभग 10 प्रतिशत मतदाता हैं, जो भाजपा को नहीं, लेकिन मोदी को पसंद करते हैं। इसका प्रमाण गुजरात है, जहां 2014 के लोकसभा में भाजपा को 59% लेकिन 2017 विधानसभा में 49% वोट मिले। 2019 लोकसभा में 62% और 2022 विधानसभा में 53% वोट मिले। इसीलिए राज्य चुनावों में भी प्रधानमंत्री मोदी की मांग होती है। ‘मोदी-फैक्टर’ के कारण ही हिमाचल में जनता के सत्ता-विरोधी रुझान और ‘फ्लोटिंग वोटर्स’ के बावजूद भाजपा का मत प्रतिशत केवल 5% कम होकर 43% पर कायम रहा, लेकिन उन 5% मतों में आधे भाजपा के बागी प्रत्याशियों को गए और आधे 2.5% कांग्रेस को गए, जिससे उसका वोट 2017 के 41.6% के मुकाबले 44% ही पहुंच पाया। इस तरह हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा के मत प्रतिशत में केवल एक प्रतिशत का अंतर रहा।

संभवतः हिमाचल में भाजपा संवेदनशील मुद्दों जैसे ‘पुरानी-पेंशन’ और अग्निवीर आदि को मतदाताओं को ठीक से समझा नहीं पाई। पुरानी पेंशन को कांग्रेस ने खत्म किया था और वही राजनीतिक लाभ के लिए इसे लागू करना चाह रही है, लेकिन इसका बोझ किस पर पड़ेगा? क्या जनता वह बोझ वहन करने की स्थिति में है?

गुजरात में कांग्रेस की अप्रत्याशित दुर्दशा हुई। पार्टी को 60 सीटों और 14% वोट का नुकसान हुआ। यह उसके लिए चिंता का विषय है, जो बताता है कि कांग्रेस के पारंपरिक वोट-बैंक-क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम यानी खाम में भाजपा ने समावेशी विकास द्वारा पैठ बनाकर आदिवासियों एवं मुस्लिमों का भी समर्थन लिया। गुजरात और हिमाचल के चुनाव कांग्रेस के लिए बड़े महत्वपूर्ण थे, लेकिन राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहे और भूल गए कि बिना कांग्रेस जोड़े, वह भारत नहीं जोड़ सकते। भले ही राहुल समर्थक उनकी यात्रा का गुणगान करें, लेकिन जनता में तो यही संदेश गया कि पार्टी चुनावों को लेकर गंभीर नहीं।

हिमाचल के परिणाम कांग्रेस की विजय के बजाय लोगों का स्थानीय मुद्दों पर भाजपा के प्रति आक्रोश व्यक्त करता है। भले वहां कांग्रेस जीत गई, पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वहां मुख्यमंत्री पद के लिए प्रतिभा सिंह, सुखविंदर, मुकेश अग्निहोत्री, विक्रमादित्य सिंह और आशा कुमारी आदि अनेक दावेदार हैं। हिमाचल प्रदेश के परिणाम आगामी विधानसभाओं और 2024 के लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित करेंगे। यह समय है कि कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे को गंभीरता से दुरुस्त किया जाए, सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की जाए और पार्टी की नीतियों को जनता के सामने स्पष्टता से रखा जाए। केवल पार्टी अध्यक्ष चुनने का दिखावा कर पार्टी अपनी पुरानी अस्मिता और जनसमर्थन प्राप्त नहीं कर सकती, खासतौर से तब जब पार्टी में टूटन है और खरगे की राष्ट्रीय स्वीकार्यता नहीं है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सेंटर फार द स्टडी आफ सोसायटी एंड पालिटिक्स के निदेशक हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.