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इंसानी जिंदगी में लौट रही है बंदरों के बीच मिली मोगली गर्ल

अक्टूबर 2016 में उत्तर प्रदेश के कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य में बंदरों के झुंड के बीच मिली एक बच्ची अब इंसानों के तौर तरीके सीख रही है।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 09 Feb 2018 12:34 PM (IST)Updated: Sat, 10 Feb 2018 09:54 AM (IST)
इंसानी जिंदगी में लौट रही है बंदरों के बीच मिली मोगली गर्ल
इंसानी जिंदगी में लौट रही है बंदरों के बीच मिली मोगली गर्ल
हो रहा है सुधार
बहराइच के कतर्निया घाट में अक्टूबर 2016 में एक बच्ची बंदरों के झुंड के बीच मिली थी। जहां से उसे जिला अस्पताल ले जाया गया। उस समय वह जानवरों जैसा व्यवहार करती थी जैसे जमीन से उठाकर खाना खाती और बंदरों की तरह चीखती। लोगों के बीच वह मोगली गर्ल के नाम से मशहूर हो गई थी। इस बच्ची को लखनऊ के ककरोही में निर्वाण संस्थान में रखा गया और उसे सामान्‍य इंसानों जैसे जीवन की ओर लाने के प्रयास शुरू किए गए। अब पता चला है कि उसमें तेजी से सुधार आ रहा है। वो सामान्‍य हो रही है और उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक है। 
 
जीवित रहना है बड़ी बात
इस बच्‍ची के विकास से खुश और सबसे ज्‍यादा उसके सुरक्षित रहने पर आश्‍चर्य चकित कुछ मानवशास्त्रियों का कहना है कि सबसे बड़ी बात यह है कि बच्ची सर्वाइव कर गई है और उसने जीवन की ओर उसने अपने कदम बढ़ा दिए हैं। क्‍योंकि इससे पूर्व देश में वर्ष 1920 में अमला व कमला नाम की लड़कियां भेड़िए की मांद में पाई गई थीं, और दोनों छह महीने ही जीवित रहीं। वहीं चारबाग रेलवे स्टेशन पर वर्ष 1954 में मिला लड़का रामू भी दो साल तक ही जीवित रहा था। पर इस बच्‍ची का विकास सुखद है और उम्‍मीद है कि वह दो तीन साल में बिल्कुल ठीक हो जाएगी। 
मोगली गर्ल ना मानें 
हालाकि इस बच्‍ची के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह बच्ची पैदाइशी जंगल में नहीं रही और न ही उसमें बंदरों जैसे कोई लक्षण हैं, इसलिए इसे मोगली गर्ल न कहा जाए। उस बच्ची से जुड़े लोग चाहते हैं कि उसे किसी जंगली नाम मोगली या फिर वनदुर्गा की जगह चेतना कहकर पुकारना ज्यादा उपयुक्त है। वह पैदाइशी जंगल में नहीं थी। किसी कारणवश माता-पिता से बिछड़ गई होगी। मानवों में रीढ़ की हड्डी का कर्व दो साल बाद बनता है और वह उसमें है। वह दो साल के बाद ही जंगल में गई होगी और तीन-चार साल वहां रही होगी। वह घने जंगलों में नहीं मिली। 
 
बंदरों की तरह जीवन यापन
बंदरों के बीच रहने के कारण वह उनके साथ कच्चा खाना खाती थी, इस वजह से उसके पेट में बहुत कीड़े हो गए थे। इसके बावजूद वो उनसे अलग थी क्‍योंकि बंदर के हाथ पैरों से लंबे होते हैं। हथेली गद्देदार होती है और सबसे बड़ी बात कि बंदर ग्रूमिंग करते हैं। ऐसे कोई लक्षण बच्ची में नहीं दिखे। इस वजह से बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि वह पैदायशी बंदरों के साथ रही। जिस समय वह बंदरों के बीच गई, उस समय उसकी उम्र भाषा सीखने की थी। बच्ची का न समाजीकरण हुआ था और न ही मानवीयकरण। 
गाने पर झूमती है
उसकी देखभाल करने वालों के अनुसार पिछले आठ महीने में बच्ची में काफी बदलाव आया है। पूरा खाना अच्छे से खाती है। पहले सूखी रोटी खाती थी। अब दाल चावल सब खाती है। दो-तीन शब्द भी बोलती है। जैसे की भूख लगी है, जल्दी जल्दी। प्यास लगने पर तुरंत गिलास उठती है। बॉल से खेलती है। पहले हाथ के सहारे सीढ़ी चढ़ती थी अब रेलिंग पकड़कर चढ़ती है। सबसे बड़ी बात है कि गाने पर वह झूमती भी है। बच्ची में समझ विकसित हो रही है। उसके सामने चेहरा ले जाने पर प्यार भी करती है। 
 

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