पुरुषों की जागीर नहीं है खेल प्रशासन, 95 साल में कोई महिला कभी नहीं रही आइओए अध्यक्ष: हाई कोर्ट
पीठ ने कहा कि यह उचित समय है कि खेल निकायों में कुप्रबंधन को दूर करने और इन संस्थानों का लोकतंत्रीकरण करने के लिए संरचनात्मक सुधारों को लागू किया जाए।सरकारें खेल निकायों की मान्यता और प्रबंधन के संबंध में एक व्यापक कानून पारित करने पर विचार कर सकती हैं।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए) में महिलाओं की भूमिका नगण्य होने पर अहम टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि खेल प्रशासन पुरुषों की जागीर नहीं है। न्यायमूर्ति नज्मी वजीरी व न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि यह रिकार्ड करने वाला तथ्य है कि 95 वर्षों के अस्तित्व में आइओए के अध्यक्ष या महासचिव के रूप में कभी कोई महिला नहीं रही है। निश्चित रूप से महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण पदों पर रहने की इच्छा रखती हैं और गवर्निंग बाडी (जीबी) और कार्यकारी समिति (ईसी) में उनकी मौजूदगी उनकी वैध आकांक्षाओं को पूरा करने में मददगार होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा की जनहित याचिका पर अपने निर्णय में पीठ ने कहा कि खेल निकायों को व्यक्तिगत जागीर में बदल कर ऐसे लोग खेल निकाय का कुप्रबंधन करते हैं। ऐसे लोग सरकार, अधिकारियों और न्यायालयों को चुनौती देते हैं कि यदि वे खेल संघ को लोकतांत्रिक बनाने और कुप्रबंधन को दूर करने की कोशिश करते हैं तो देश को नुकसान होगा।
पीठ ने कहा कि यह उचित समय है कि खेल निकायों में कुप्रबंधन को दूर करने और इन संस्थानों का लोकतंत्रीकरण करने के लिए संरचनात्मक सुधारों को लागू किया जाए। केंद्र और राज्य सरकारें खेल निकायों की मान्यता और प्रबंधन के संबंध में एक व्यापक कानून पारित करने पर विचार कर सकती हैं।
कोर्ट ने आइओए के संविधान के उस पहलू पर भी विचार किया, जिसके खंड 10.1 में यह निर्धारित किया गया है कि खेल का प्रतिनिधित्व करने वाले एनएसएफ में प्रत्येक के लिए एक वोट के साथ तीन प्रतिनिधि होने चाहिए।इसे वे आइओए की वार्षिक आम बैठकों और विशेष आम बैठकों में डालने के हकदार हैं।अदालत ने माना कि वोटिंग और चुनाव के नतीजों को केवल स्पोर्ट्स कोड के संदर्भ में ही मान्यता दी जाएगी।एनएसएफ को माडल चुनाव दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।
जब अदालत को याद आए चीन के पहले सम्राट
न्यायमूर्ति मनमोहन ने आइओए के संविधान के उस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिसमें कहा गया है कि इसका अध्यक्ष आजीवन हो सकता है। उन्होंने कहा कि आइओए के वर्तमान संविधान को देखकर चीन के पहले सम्राट किन शी हुआंग की समाधि की याद आती है, जहां टेराकोटा सैनिकों को सम्राट की मृत्यु के बाद उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से दफनाया गया था। ऐसे में पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि यदि आइओए खेल संहिता का पालन करने से इन्कार करता है तो आइओए या किसी एनएसएफ को मान्यता या कोई सुविधा नहीं दी जाएगी।
अहम निर्देश
- सामान्य निकाय के साथ-साथ कार्यकारी समिति (ईसी) में उत्कृष्ट योग्यता वाले प्रख्यात खिलाड़ियों के मतदान अधिकारों के साथ न्यूनतम 25 प्रतिशत प्रतिनिधित्व होना चाहिए
- अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के साथ आयु और कार्यकाल प्रतिबंध सभी अधिकारियों पर लागू होगा
- किसी भी अधिकारी द्वारा अधिकतम कार्यकाल कूलिंग आफ अवधि के साथ अधिकतम 3 कार्यकाल (अर्थात 12 वर्ष) हो सकता है
- आइओए के निर्वाचन मंडल में केवल ओलिंपिक खेलों को नियंत्रित करने वाले एनएसएफ शामिल होंगे।कोई भी राज्य ओलिंपिक संघ निर्वाचन मंडल का हिस्सा नहीं होगा या उसके पास कोई मतदान अधिकार नहीं होगा।
- आइओए की कार्यकारी समिति (ईसी) का आकार 15 (7+8) होगा और इससे अधिक नहीं
- आपराधिक पृष्ठभूमि वाला कोई भी व्यक्ति या जिस पर आपराधिक कार्यवाही में आरोप पत्र दायर किया गया है और दो साल की कैद हो सकती है, वह आइओए व एनएसएफ का सदस्य होने का पात्र नहीं रहेगा।
- सभी आयोग स्वतंत्र होंगे और अगले 16 सप्ताह के भीतर चुनाव कराएंगे।