Happy Independence Day 2022: आजादी के आंदोलन के साक्षी रहे मध्य दिल्ली के ये स्थान, खूनी दरवाजा भी है शामिल
Happy Independence Day मध्य दिल्ली में ऐसे ही कुछ स्थान हैं जिनका आजादी के आंदोलन में अपना महत्व हैं। यह स्थान साक्षी रहेंगे बलिदानी भगत सिंह के और कई ऐसे पराक्रमियों के जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह नहीं की और देश के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Happy Independence Day: दिल्ली आजादी के आंदोलन की गवाह रही है, ऐसे में ऐसे कई स्थल हैं जो दिल्ली में रहने वालों को आते जाते दिखते हैं, लेकिन इनका ऐतिहासिक महत्व बहुत ही कम लोगों को पता होता है।
फिरोजशाह कोटला
इसे 14वीं शताब्दी के मध्य में शासक फिरोज शाह तुगलक ने यमुना नदी के किनारे बसाया था। अब फिरोजाबाद शहर का बहुत कम हिस्सा बचा है, सिर्फ इसके महल परिसर और किले का कुछ भाग शेष है, जिसे फिरोज शाह कोटला के रूप में जाना जाता है। फिरोज शाह कोटला तब से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है।
आठ-नौ सितंबर 1928 को यहीं पर स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और अन्य ने बैठक बुलाई गई। इसमें हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया था। इसे बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी नाम दिया गया था। आजादी के बाद दो वर्ष से अधिक समय तक फिरोज शाह कोटला में देश के विभाजन से विस्थापित लोगों के लिए अस्थायी शिविर लगाया गया था।
कश्मीरी गेट
आज कश्मीरी गेट को बस अड्डे और मेट्रो स्टेशन के नाम से जानते हैं, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व है। कश्मीरी गेट दिल्ली में प्रवेश का प्रमुख गेट था। शाहजहां ने इस गेट का निर्माण कराया था। 1857 के विद्रोह में ब्रिटिश सेना और स्वतंत्रता सेनानियों ने इसका प्रयोग किया। स्वतंत्रता सेनानी यहीं पर एकत्रित होकर आंदोलन से संबंधित योजनाएं बनाते थे।
प्याऊ पर भगत सिंह करते थे सेवा
दरियागंज में स्थित प्याऊ भगत सिंह द्वारा की गई सेवा के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि नेशनल असेंबली पर धमाका करने के लिए जब भगत सिंह योजना बना रहे थे तो रेकी के लिए यहां प्याऊ पर आकर पानी पिलाने की सेवा करते थे। यहां से वह योजना के लिए अन्य तरह की जानकारी जुटाकर उसे प्रयोग करते थे। गोलचा सिनेमा के पास इस प्याऊ को पुराने लोग जानते हैं। उनके पूर्वजों ने उन्हें इसकी जानकारी दी।
खूनी दरवाजा
खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है। यह दिल्ली के बचे हुए 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यही वह जगह है जहां 1857 की क्रांति के दमन के बाद अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों और एक पोते की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसी वजह से इस दरवाजे का नाम खूनी दरवाजा पड़ गया।
कहा जाता है कि औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर कलम कर इस दरवाजे पर लटका दिया। इसके अलावा 1739 में जब लुटेरे नादिर शाह ने दिल्ली पर चढ़ाई की तो इस दरवाजे के पास काफी खून खराबा हुआ। भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों में भी पुराने किले की ओर जाते हुए शरणार्थियों को यहां मार डाला गया था।
झांसा देकर बुलाया दिल्ली, दे दी फांसी
हरियाणा के बल्लभगढ़ की स्थापना करने वाले वंशज राजा नाहर सिंह को दिल्ली में फांसी दी गई थी। चांदनी चौक में शीश गंज गुरुद्वारे पास पत्थर के ऊपर ही नाहर सिंह को फांसी दी गई थी। यह पत्थर आज भी उनके बलिदान को याद दिलाता है। राजा नाहर सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले अग्रणी क्रांतिकारी थे। 9 जनवरी 1858 में उन्हें अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। वीर बहादुर सिंह ने अंग्रेजी सेना के साथ जमकर मुकाबला किया था। उनके पराक्रम से परेशान अग्रेजों ने संधि का साझा देकर दिल्ली बुलाया था।
दिल्ली के लाल किला में जैसे ही नाहर सिंह ने प्रवेश किया अंग्रेजी सेना उनको धोखे से गिरफ्तार कर लिया। उनके ऊपर सरकारी खजाना लूटने का मुकदमा चलाया गया। इलाहबाद कोर्ट उन्हें दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी। मात्र 36 वर्ष की आयु में उन्हें चांदनी चौक में फांसी दे दी गई।