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जुबिन ने छेड़ी तान तो थिरका कश्मीर

डल झील में भरे पानी की सतह को छूकर आ रही ठंडी हवा के झोंकों के बीच जुबिन मेहता ने जब वाद्य यंत्रों से सुरों की तान छेड़ी, तो पूरा माहौल थिरक उठा। दूर जबरवान की पहाड़ियों से टकराकर लौट रही धुनों ने पूरे माहौल को सुरमयी बना दिया। मुगल सम्राज्ञी नूरजहां के कश्मीर की खूबसूरती को अद्वितीय बताने वाले शब्द सजीव हो उठे।

By Edited By: Published: Sun, 08 Sep 2013 04:54 AM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2013 04:56 AM (IST)
जुबिन ने छेड़ी तान तो थिरका कश्मीर

श्रीनगर [जागरण न्यूज नेटवर्क]। डल झील में भरे पानी की सतह को छूकर आ रही ठंडी हवा के झोंकों के बीच जुबिन मेहता ने जब वाद्य यंत्रों से सुरों की तान छेड़ी, तो पूरा माहौल थिरक उठा। दूर जबरवान की पहाड़ियों से टकराकर लौट रही धुनों ने पूरे माहौल को सुरमयी बना दिया। मुगल सम्राज्ञी नूरजहां के कश्मीर की खूबसूरती को अद्वितीय बताने वाले शब्द सजीव हो उठे।

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हिंसक झड़पों के बीच कश्मीर पहुंचे जुबिन मेहता

चार सौ साल पुराने मुगल गार्डन में चिनार के पेड़ों के बीच आयोजित इस एहसास-ए-कश्मीर कंसर्ट को लेकर बहस-मुबाहिसा तभी से शुरू हो गया था जब से इसकी चर्चा शुरू हुई। विरोध में अलगाववादी तो समर्थन में सरकार। अंतत: 77 वर्षीय जग प्रसिद्ध भारतीय मूल के इस महान संगीतकार को भी कहना पड़ गया कि मुझे कश्मीर ने चुना है, मैं ने कश्मीर को नहीं। लेकिन इस अकल्पनीय माहौल में आकर वह भी सारी कड़वाहट भूल गए। बोले, हम बहुत खुश हैं-हम बहुत खुश हैं। अगली बार सब मुफ्त होना चाहिए। संगीत महज कुछ लोगों के लिए नहीं बल्कि सबके लिए होना चाहिए। हम केवल सबके लिए अच्छा करना चाहते हैं। संगीत की धुन यहां से सभी लोगों तक जानी चाहिए..सभी कश्मीरियों तक। जाहिर है जुबिन के मन में आयोजन के प्रति गलतफहमी पाले अवाम को दिलासा देने की मंशा रही होगी।

जल-थल-नभ की सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजामों के बीच हुए इस कंसर्ट के आयोजन से उत्साहित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने उद्गार अमीर खुसरो की बोली पंक्तियों से किए- दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है-यहीं है। शालीमार बाग एक बार फिर संगीत की स्वर लहरियों से गूंज रहा है। इस आयोजन में मेजबान के रूप में मौजूद भारत में जर्मनी के राजदूत माइकेल स्टेनर ने कहा, म्यूनिख और श्रीनगर के बीच 7,756 किलोमीटर की दूरी है लेकिन आज यह दूरी खत्म हो गई है। जर्मनी और यूरोप की संस्कृति कश्मीर से आ मिली है। यह एतिहासिक है, अति सुंदर है। यह यात्रा बहुत कठिन रही है। दुनिया कश्मीर को देख रही है, एहसास-ए-कश्मीर से बावस्ता है। उन्होंने कश्मीरी कवयित्री हब्बा खातून और जर्मन कवयित्री रेनर मारिया रिलके की कही पंक्तियों से अपनी वाणी को विराम दिया।

आयोजन में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा, केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला और कई देशों के राजनयिक मौजूद थे। कार्यक्रम का दुनिया के करीब सौ देशों में सीधा प्रसारण किया गया।

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