लॉकडाउन में भी फीका नहीं पड़ा है सीखने का जज्बा, दिव्यांग भी बन रहे दूसरों की प्रेरणा
दिव्यागों ने भी ढूंढ़ लिया है तरीका व हुनर जीवन जीने का। वे भी कुछ नया सीखकर कुछ प्रयोग कर बन रहे हैं दूसरों की प्रेरणा।
नई दिल्ला [अंशु सिंह]। इन दिनों जब सामान्य बच्चे-किशोर-युवा अपनी दिनचर्या,जिंदगी को नए सिरे से संवारने,व्यवस्थित करने में लगे हैं, वैसे में दिव्यांग बच्चे-किशोर भी कहां पीछे रहने वाले। उन्होंने भी ढूंढ़ लिया है तरीका व हुनर जीवन जीने का। वे भी कुछ नया सीखकर, कुछ प्रयोग कर बन रहे हैं दूसरों की प्रेरणा। क्योंकि वे मानते हैं कि जहां आस है, वहां है आगे बढ़ने का रास्ता...
‘मैं भूल गई थी कि बचपन में मुझे किस बात पर हंसी आती थी...। किस चीज से ऊर्जा मिलती थी। मैंने दोबारा से ओरिगेमी फूल के चित्र बनाने शुरू किए हैं, क्योंकि य नवसृजन का मौसम है और हमें इस मुश्किल दौर में जीवन में रंग भरने हैं। ओरिगेमी बनाने से अंदर की क्रिएटिविटी एवं खूबसूरती बाहर आती है, जिसे देखकर किसी का भी मन हर्षित हो जाता है।’ यह कहना है रोमानिया की 15 वर्षीय इलिन्का का, जो एक दिव्यांग हैं। इनकी मानें, तो हर किसी को एक बार इसे ट्राई जरूर करना चाहिए। जिन्हें नहीं आता है, वे यूट्यब के ट्यूटोरियल्स से ट्यूलिप, लिली, गुलाब आदि के चित्र आसानी से बनाना सीख सकते हैं और उसे किसी को गिफ्ट कर सकते हैं। अपने ब्लॉग में इलिन्का लिखती हैं, ‘दुनिया वाले हम दिव्यांगों की मन:स्थिति को नहीं समझते हैं। उनके पास हमें सुनने के लिए समय नहीं होता। लेकिन इससे उदास होने की जरूरत नहीं। जो भी मन में आए, उसे अपनी डायरी या कहीं भी लिख लेना चाहिए। इससे हल्का महसूस होगा।’
एल्बम से जगा रहे उम्मीद
भारतीय मूल के न्यू जर्सी निवासी स्पर्श शाह इंटरनेशनल रैपर एवं मोटिवेशनल स्पीकर हैं। बीते 30 अप्रैल को उनका 17वां जन्मदिन था। लेकिन विश्व पर आई विपदा की इस घड़ी में उन्होंने अपना जन्मदिन सेलिब्रेट नहीं किया, बल्कि दुनिया को अपने एल्बम के रूप में एक अनमोल तोहफा दिया। ब्रिटल बोन डिजीज के शिकार स्पर्श बताते हैं, इस महामारी के समय मैं यही महसूस करता हूं कि ईश्वर मुझे हर रोज एक नया जीवन देते हैं। मेरे माध्यम से दुनिया के लोगों के दिलों को रोशन करना चाहते हैं। उन्हें वह देना चाहते हैं, जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत है, और वह है उम्मीद।
अपने एल्बम ‘देयर्स ऑल्वेज टुमॉरो’ के जरिये मैंने वही देने की कोशिश की है। दरअसल, स्पर्श का दिल नहीं माना कि जब एक तरफ लोगों की जान जा रही हो, वे एक घातक वायरस के प्रकोप से बचाव के लिए जूझ रहे हों, वैसे में वे पार्टी करें। स्पर्श कहते हैं, ‘यह गीत मैंने पांच साल पहले लिखा था। जब भी आप अकेले या उलझन में हों, तो इसके बोल आपको संबल देंगे। चेहरे पर मुस्कुराहट लाएंगे, ऐसी आशा करता हूं।’
ऑनलाइन टैलेंट हंट से प्रतिभा को मौका
साइकोलॉजी में मास्टर्स कर रहीं सिमरन चावला कहती हैं, मैं बेशक इन आंखों से देख नहीं सकती, लेकिन यह महसूस किया है कि इस समय लोग किस तरह बोर हो रहे हैं या डिप्रेस फील कर रहे हैं, चाहे वे बड़े हों, बच्चे या युवा। इसलिए मैंने एक ऑनलाइन वर्ल्ड टैलेंट हंट आयोजित किया, ताकि हर विधा के बच्चों-युवाओं को अपना हुनर दिखाने का अवसर मिल सके।फिर वह सिंगिंग हो, पेंटिंग, डांसिंग, स्टोरी टेलिंग, पोएट्री या एक्टिंग। जिस तरह का रिस्पॉन्स आया, उससे पता चला कि इस महामारी के दौरान बच्चे किस तरह अपने अंदर की क्रिएटिविटी को पहचान कर, उसे विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।
वैसे, सिमरन बीते साल से ‘टैलेंटियर्स’ नाम से ऑनलाइन टैलेंट हंट आयोजित कर रही हैं। पहले सीजन में उन्होंने सिर्फ दिव्यांगों को अपना हुनर दिखाने का मौका दिया था। लेकिन सीजन 2 में हर वर्ग के बच्चों-युवाओं के लिए इसे खोला गया था। इसके अलावा, सिमरन सोशल साइट्स के जरिये लोगों की काउंसलिंग भी कर रही हैं।
गिटार से निकलती नई धुन
दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी ऑनर्स कर रहीं मनीषा रावत लॉकडाउन को किसी वरदान से कम नहीं समझतीं। आखिर ऐसा क्यों, पूछने पर बताती हैं, मैं हमेशा से गिटार सीखना चाहती थी। लेकिन पढ़ाई-कॉलेज आने-जाने के कारण समय नहीं मिल पा रहा था। लेकिन जब से कॉलेज बंद हुआ, मैंने ऑनलाइन क्लासेज ज्वाइन कर ली। फिलहाल पढ़ाई के साथ गिटार बजाने की भी अच्छी प्रैक्टिस हो जा रही है। इसके बाद भी जो समय बचता है, उसमें नॉवेल पढ़ती हूं या गेम्स खेल लेती हूं। दोस्तो, मनीषा जब तीन साल की थीं, तब उन्हें टायफॉयड हुआ था और आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी। लेकिन इससे इन्होंने कभी जिंदगी को जीना नहीं छोड़ा। जीत-हार की परवाह किए बगैर स्कूल-कॉलेज की प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहीं। इसके अलावा, मनीषा चेस यानी शतरंज की खिलाड़ी भी हैं और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं।
पढ़ाई के साथ पूरा कर रहे शौक
19 साल के हैं साहिल। ऑटिज्म के कारण भाषा स्पष्ट नहीं है। लेकिन कैनवस पर रंग ऐसे भरते हैं कि आप चकित रह जाएंगे। इनकी बनाई एक्रिलिक पेंटिंग की हर कोई तारीफ करता है। केरल में जन्मे और अब दुबई में रह रहे साहिल के पिता रियाज बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले वे बेटे को नियमित रूप से स्पेशल स्कूल लेकर जाते थे, जहां उन्हें हर तरह की वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती थी।
अभी जूम एप से टीचर्स एवं थेरेपिस्ट्स उनकी क्लास लेते हैं। जुंबा एवं एक्सरसाइज के अन्य सेशंस भी होते हैं। दोस्तो, इन सबके बावजूद साहिल कई बार नर्वस फील करते हैं, सवाल पूछते हैं कि वे बाहर क्यों नहीं जा पा रहे? व्यावहारिक समस्याओं के कारण उन्हें समझाना थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन छोटे भाई-बहन उनकी काफी मदद करते हैं। उन्हें कहानियां पढ़कर सुनाते हैं। रियाज बताते हैं, हम सभी की कोशिश रहती है कि साहिल किसी न किसी काम में व्यस्त रहें। इसलिए जब भी क्लास या पेंटिंग से समय बचता है, तो उन्हें घर के कुछ कामों या कुकिंग में इंगेज करते हैं। आज वे दुनिया के हालात से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके हैं।
लॉकडाउन में सेल्फ लर्निंग
कहते हैं संगीत हर मर्ज की दवा है। संकट की इस घड़ी में बहुत से लोग अपने इस शौक को तराशने में लगे हैं। वे ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स की मदद भी ले रहे हैं। पॉलिटिकल साइंस फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट सुधांशु को दसवीं कक्षा से ही म्यूजिक में दिलचस्पी थी। आगे चलकर उन्होंने पियानो बजाना सीखा और खुद से म्यूजिक भी कंपोज करने लगे। चार-पांच साल पहले उन्होंने यूट्यूब पर अपना एक चैनल भी शुरू कर दिया। लेकिन फिर पढ़ाई के कारण इन सब पर खास ध्यान नहीं दे पा रहे थे। बताते हैं, मैं तीसरी क्लास में था, तभी से ही आंखों ने साथ देना बंद कर दिया था। लेकिन मैंने तय कर लिया था कि जो सीखना है,उसे सीख कर रहूंगा। इसलिए मैं हमेशा से सेल्फ लर्नर रहा।
अभी जब सब ठप पड़ा है, तो मैंने समय का सदुपयोग करते हुए अपने स्किल्स को और सुधारने का फैसला लिया। ऑनलाइन ही साउंड डिजाइनिंग सीखी। जब किसी दोस्त को टेक्निकल सपोर्ट की जरूरत होती है, तो देता हूं। इसके अलावा, स्कूल के पुराने दोस्तों व टीचर्स से बात करता हूं। सुधांशु कहते हैं कि लॉकडाउन में बाहर जाने पर रोक है, लेकिन घर बैठे खुद को एक्सप्लोर करने की तो पूरी आजादी है। फिर क्यों चिंता करना?