युवाओं के दिल से उतरे गुजरात के युवा नेता
युवा अब मानने लगे हैं कि आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया तथा चुनावों में इसके अगुवा राजनीतिक दलों का मोहरा बन गए हैं।
शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। गुजरात का चुनावी मूड धीरे-धीरे बदल रहा है। आंदोलन, आरक्षण पर संघर्ष व जातिवाद से गुजरकर एक बार फिर महिलाएं व युवा राज्य की बदलती तस्वीर व अपने अधिकारों पर चर्चा करने लगे हैं। अल्पेश, हार्दिक व जिग्नेश भले ही अपने समुदायों के हक के लिए लड़ रहे हों लेकिन वे युवाओं के प्रेरणास्त्रोत नहीं बन पाए हैं।
गुजरात के विश्व प्रसिद्ध महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय व विसनगर के साकलचंद पटेल विश्वविद्यालय में मतदाता जागरूकता अभियान के दौरान आयोजित संवाद में छात्रों ने आरक्षण आंदोलन को लेकर समर्थन किया लेकिन युवा अब मानने लगे हैं कि आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया तथा चुनावों में इसके अगुवा राजनीतिक दलों का मोहरा बन गए हैं। साकलचंद विवि की छात्रा किंजल की उम्र 19 साल है वह इंजीनियरिंग की छात्रा है। उसका मानना है कि आरक्षण आंदोलन पहले सही दिशा में था लेकिन अब इस पर राजनीति हो रही है।इससे जुडे़ नेता अब चुनाव में अपना घर भरने में लग गए हैं। किसी को पाटीदार समाज के हित की चिंता नहीं रह गई है।
परेश पटेल का मानना है कि कम उम्र में हार्दिक ने आरक्षण आंदोलन शुरू कर युवाओं की आवाज बुलंद की लेकिन अब राजनीतिक दलों को समर्थन करने से आंदोलन खत्म हो जाएगा। उनका साफ कहना है कि जातिगत आंदोलन के कारण गुजरात के विकास पर जो चर्चा होनी चाहिए थी वो नहीं हो रही है। टीवी व अखबारों में भी जातिवादी नेता व राजनीति हावी हो गई है, गुजरात में कई क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ उस पर चर्चा होती तो राज्य को और आगे ले जाने में मदद मिलती लेकिन इस चर्चा में सब विवादों में फंसकर रह गए, जो गुजरात की अस्मिता पर गलत असर करता है।
भरत पटेल बताते हैं कि वे हार्दिक, अल्पेश व जिग्नेश के आंदोलन का समर्थन करते हैं लेकिन आंदोलन के नाम पर राजनीति गलत है। जिस मुद्दे को लेकर आंदोलन शुरू किया गया था, बिना राजनीति के उसे जारी रखना था। उधर, एमएस विवि की छात्रा रूवि शाह का कहना है कि आरक्षण व्यवस्था एक नियत समय के लिए थी अब उसे समाप्त कर देना चाहिए ताकि राजनीति नहीं हो। महिलाओं के आरक्षण को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। आंदोलन के नाम पर हर कोई अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है।
उनका कहना है कि कांग्रेस जातिवादी नेताओं को अधिक महत्व दे रही है जिससे राज्य की राजनीति को जातिगत रंग चढ़ गया है। पिछले चुनावों में ऐसा नहीं होता था। रिद्दी शाह बताती हैं कि मीडिया में छा जाने के बावजूद युवा आंदोलनकारी उनके प्रेरणास्त्रोत नहीं बन पाए हैं, चूंकि वे गुजरात के हित के बजाए जाति के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव आयोग के नोडल अधिकारी जगदीश सोलंकी बताते हैं कि इस बार एथिकल वोटिंग पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है ताकि मतदान के वक्त लोग जाति, पद, वंश, पैसा व प्रतिष्ठा आदि के प्रभाव में आए बिना प्रमाणिक मतदान कर सकें।
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