घर के अंदर भी आप हो सकते हैं प्रदूषण के शिकार, जानिए- कैसे रहें सुरक्षित
प्रदूषण केवल बाहर के वातावरण में ही मौजूद नहीं होता है। घर के अंदर प्रयोग होने वाले केमिकल्स और सुविधा प्रदान करने वाले घरेलू उपकरण भी नुकसानदेह होते हैं।
[निशि भाट]। धूल के कण, प्रदूषण, क्वॉयल्स या फिर पालतू पशु का संपर्क आपको सांस लेने में दिक्कतें पैदा करता है तो यकीन मानिए कि आप 200 तरह की एलर्जी में से किसी एक एलर्जी के शिकार हो चुके हैं। इसे नजरअंदाज करना भविष्य में दमा (अस्थमा) का कारण बन सकता है। दमा और सांस से संबंधित एक अन्य बीमारी यानी सीओपीडी के लिए अगर केवल आप बाहरी प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानते हैं तो एक बार फिर अपनी जानकारी को दुरुस्त कर लीजिए, केवल बाहरी प्रदूषण ही नहीं, बल्कि घर के अंदर की कुछ छोटी-छोटी चीजें भी हमें दमा के करीब ले जा रही हैं, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। दमा की पहली सीढ़ी कहलाई जाने वाली कई तरह की एलर्जी में आप भी किसी एक एलर्जी के शिकार हो सकते हैं। इससे बचने के लिए जिम्मेदार कारकों को जानने के साथ ही सही समय पर सतर्क होना भी जरूरी है।
अध्ययन के निष्कर्ष
पिछले दिनों दिल्ली के वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ कि दिल्ली-एनसीआर की आबादी के लगभग 30 प्रतिशत लोग एलर्जी की शुरुआती स्थिति के शिकार हैं। इंडियन स्टडी ऑन एपिडेमोलॉजी ऑफ अस्थमा, रेस्पाइरेट्री और क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस ने एलर्जी के बढ़ते असर को जानने के लिए दिल्ली-एनसीआर में 12 केंद्रों पर अध्ययन किया। इसमें नेजल या नाक के जरिए होने वाली एलर्जी और दमा उत्पन्न करने वाले कारकों का अध्ययन किया गया। एलर्जी के स्तर का पता लगाने के लिए दिल्ली-एनसीआर के 918 लोगों में स्किन प्रिक टेस्ट किया गया। इसमें 548 पुरुष और 370 महिलाएं शामिल थीं। इसमें से 30 प्रतिशत लोग एलर्जी के पहले चरण के शिकार पाए गए। महत्वपूर्ण यह है कि एलर्जी के शिकार 74 प्रतिशत मरीज फिजीशियन के पास ही नहीं पहुंचे। शहरी क्षेत्र में रहने वाले उच्च आय वर्ग में एलर्जी का प्रतिशत 9.4, मध्यम आय वर्ग में 7.3 और निम्न आय वर्ग और ग्रामीण क्षेत्र में इसका प्रतिशत 3.9 देखा गया। एलर्जी के शिकार 15 प्रतिशत लोगों को भविष्य में दमा होने की संभावना 90 प्रतिशत बढ़ जाती है।
क्वॉयल तो नहीं कर रहा बीमार
घर को सुगंधित और मच्छरों से बचाव के लिए हम कई तरह की क्वॉयल्स, स्प्रे और अगरबत्ती का प्रयोग करते हैं। इससे मच्छर तो दूर हो जाते हैं,लेकिन लंबे समय तक इस धुएं का संपर्क फेफड़ों को विकारग्रस्त कर देता है। इंडियन जर्नल ऑफ एलर्जी, अस्थमा और इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, घरों में क्वॉयल और स्प्रे का प्रयोग पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 10 और 2.5 के स्तर को तीन से चार गुना बढ़ा देता है। हवा में प्रदूषण के कण पीएम दस और पीएम 2.4 के स्तर को नापने के लिए पोर्टेबल लेजर एयरोसॉल स्पेक्टोमीटर और डस्ट मॉनिटर नामक उपकरण का प्रयोग किया गया। मच्छर रोधी क्वॉयल को जलाने से पहले और जलने के दौरान और जलने के बाद के पीएम दस और पीएम 2.5 को जांचा गया। धूप जलने से पहले पीएम दस जहां 125.1 था, धूप जलाने के दौरान इसका स्तर 177.5 और जलने के बाद 459.9 देखा गया। वहीं मच्छररोधी क्वॉयल जलने के बाद पीएम दस का स्तर 120.1 से 153.5 तक पहुंच गया। क्वॉयल के इस्तेमाल के बाद इसका सीधा असर सूखी खांसी के रूप में सामने आता है लेकिन ज्यादातर लोग इस प्रभाव को नजरअंदाज करते हैं।
कबूतर भी एलर्जी की वजह
कबूतरों को हाइपरसेंसिटिव निमोनाइटिस का कारक पाया गया है,जो एक प्रकार की एलर्जी है। अकेले दिल्ली में इस एलर्जी के 15 मरीज हैं। कबूतरों की बीट और सलाइवा या मुंह के झाग एंटीजन जांच में पॉजिटिव देखे गए हैं। हालांकि कबूतरों की बीट से होने वाली एलर्जी पर अब तक विदेश में ही अध्ययन किया गया था, लेकिन अब देश में भी इसके एंटीजन से जांच संभव है। दिल्ली या फिर देश के प्रमुख शहरों में इस एलर्जी की जांच संभव है।
प्राणायाम है
लाभदायक
समस्या है तो समाधान भी है। सांस की किसी भी तरह की तकलीफ से बचने लिए योग और व्यायाम को बेहतर माना गया है। नियमित प्राणायाम करने से फेफड़ों में शुद्ध हवा पहुंचती है। इसके अलावा इससे सांस नली में संकुचन की संभावना भी दूर होती है। अब तक किए गए अधिकांश शोधों से यह पता चला है कि नियमित अन्य प्राणायाम और अनुलोम विलोम प्राणायाम से श्वसन तंत्र सशक्त होता है। सुबह हरी घास पर नंगे पांव चलना, मॉर्निंग वॉक और प्रिजर्वेटिव फूड (जैसे-जैम, जैली, सॉस और सिरका) से दूर रहने से भी सांस संबंधी तकलीफ से बचा जा सकता है। श्वसन क्रिया को बेहतर करने के लिए की जाने वाली जलनेति क्रिया भी फेफड़ों को दुरुस्त करने के लिए बेहतर मानी गई है।
कहीं दमघोंटू तो नहीं आपका घर
क्वॉयल आदि के अलावा घर में सुविधा के लिए जुटाए गए अन्य इलेक्ट्रॉनिक और रेडिएशन युक्त उपकरण भी घर की शुद्ध हवा को चुपके से खींच लेते हैं। माइक्रोवेव ओवन, फ्रिज से निकलने वाली हवा, पेंट व वार्निश जैसी कई चीजें घर में शुद्ध हवा के अनुपात को कम करती हैं। जरूरत की इन चीजों का प्रयोग न हो, यह तो संभव नहीं, लेकिन बेहतर होगा कि घर में वेंटिलेशन (हवा का पर्याप्त होना) का पूरा ध्यान रखा जाए। पूजा घर में यदि धूप या अगरबत्ती जल रही हो तो पास में ऐसा झरोखा या खिड़की जरूर होनी चाहिए, जिसके जरिए दूषित हवा बाहर निकल जाएं।
शहरों और सोसायटी के घरों में इसके लिए एक्जॉस्ट फैन और आधुनिक चिमनी का इस्तेमाल किया जाता है। जहां तक मच्छरों से बचने की बात है, तो इसके लिए अन्य सुरक्षित विकल्प इस्तेमाल किए जा सकते हैं, इसी तरह धूप की जगह केवल दीपक भी जलाया जा सकता है। किचन में यदि माइक्रोवेव या ओवन का प्रयोग कर रहे हैं तो चिमनी जरूर लगवाएं, जिससे दूषित हवा तुरंत बाहर निकल जाए। एक्जॉस्ट पंखे का प्रयोग भी सुरक्षित हो सकता है। इस तरह सावधानी बरतने घर के अंदर के प्रदूषण से बचा जा सकता है।
एलर्जी की जांच
80 प्रमुख तरह की एलर्जी के एंटीजन की जांच संभव है। केवल अधिक खुशबू जैसे परफ्यूम या इत्र और बदबू जैसे गैस लीकेज से होने वाली जांच का एंटीजन नहीं खोजा जा सका है। बच्चों में फूड एलर्जी की जांच खून के आइजीई एंटीजन से पता लगाई जा सकती है। स्किन सेंसिविटी एयरोएलर्जिन इन इंडिया के तहत किए गए अध्ययन में लोगों में 150 से 200 तरह की एलर्जी पाई गई। स्किन प्रिक टेस्ट से भी एलर्जी के एंटीजन से एलर्जी का पता लगाया जा सकता है।
डॉ. राजकुमार
निदेशक, पटेल चेस्ट, इंस्टीट्यूट, दिल्ली