Zero FIR: किसी भी थाने में दर्ज करा सकते हैं अपनी रिपोर्ट, फिर भी क्यों टरकाती है पुलिस; जान लें ये नियम
Zero FIR किसी घटना के बाद उसकी रिपोर्ट दर्ज कराना सबसे बड़ी चुनौती होती है। घटनास्थल कहीं और का बताकर पीड़ित को टरकाना पुलिस के लिए आम बात है। जीरो एफआईआर के लिए भी पुलिस तैयार नहीं होती जानते हैं क्यों?
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क। किसी वारदात का शिकार होने के बाद पीड़ित के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है, उसकी रिपोर्ट दर्ज कराना। रिपोर्ट दर्ज करने से बचने के लिए पुलिस अक्सर पीड़ित को एक थाने से दूसरे थाने और कई बार एक शहर से दूसरे शहर का चक्कर कटवाती है। नियमतः हम कभी भी और किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दे सकते हैं। इस पर पुलिस को तत्काल एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करनी होती है। अगर मामाला किसी और थाने का है तब भी पुलिस शिकायत दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है।
किसी और थाने अथवा शहर का मामला होने पर जीरो एफआईआर का प्रावधान है। ऐसा इसलिए भी है कि यात्रा के दौरान आपके साथ कोई आपराधिक वारदात जैसे झपटमारी, चोरी, लूट आदि होती है तो आप जहां उतरें, वहां अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकें। ऐसे में पुलिस ये नहीं कह सकती कि आपने जहां से यात्रा शुरू की है या यात्रा के दौरान जिस शहर में घटना हुई है, वहां जाकर रिपोर्ट दर्ज कराएं। इसी तरह आपका बैंक खाता किसी और शहर में है और आप किसी और शहर में रह रहे हैं या नौकरी कर रहे हैं। आपके बैंक खाते से कोई धोखाधड़ी होती है, तब भी पुलिस ये कहकर आपको नहीं टरका सकती कि आपका बैंक खाता जिस थाना क्षेत्र में है, वहां जाकर रिपोर्ट दर्ज कराएं। इसी तरह के मामलों में ही जीरो एफआईआर का प्रावधान है।
जीरो एफआईआर की जांच कैसे होती है
पीड़ित की शिकायत पर जीरो एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस उस एफआईआर को संबंधित थाने में भेजती है, जहां का घटनास्थल है। संबंधित थाना जीरो एफआईआर को अपने थाने के क्राइम नंबर (केस नंबर) के हिसाब से दर्ज करता है। इसके बाद उस मामले में जांच शुरू होती है।
जीरो एफआईआर में टाल-मटोल क्यों
सीआरपीसी के सेक्शन 154 में जीरो एफआईआर को लेकर नियम एकदम स्पष्ट है। बावजूद इसे लेकर पुलिस का रवैया हमेशा टाल-मटोल वाला रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत से मामलो में ज्यूरिडिक्शन एरिया स्पष्ट नहीं होता है। ऐसे मामलों में जीरो एफआईआर दर्ज करने के बाद उसी थाना पुलिस को उसकी प्राथमिक जांच भी करनी पड़ती है, ताकि ज्यूरिडिक्शन एरिया स्पष्ट हो सके। इसके बाद जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजी जाती है। कई बार संबंधित थाना पुलिस उसे अपने यहां का मामला मानने से इनकार कर देती है और जीरो एफआईआर को अपने यहां क्राइम नंबर पर रजिस्टर्ड करने से मना कर देती है। ऐसी स्थिति में जिस थाने ने जीरो एफआईआर दर्ज की है उसके सामने मुसीबत खड़ी हो जाती है कि वह संबंधित एफआईआर या तो किसी थाने को भेजे या खुद उसे क्राइम नंबर पर दर्ज कर उसकी जांच करे।
एफआईआर और जीरो एफआईआर में अंतर
एफआईआर मतलब प्रथम सूचना रिपोर्ट। पीड़ित ने पुलिस को किसी अपराध की जो प्रथम सूचना दी, उसे पुलिस संबंधित धाराओं में दर्ज करती है, जिसे एफआईआर कहते हैं। इसी के आधार पर पुलिस आगे की जांच शुरू करती है। एफआईआर उसी थाने में दर्ज होती है, जिसके ज्यूरिडिक्शन एरिया का मामला है। प्रत्येक एफआईआर का एक नंबर होता है, जिसे क्राइम नंबर, केस नंबर या एफआईआर नंबर कहा जाता है। इससे उस थाने में दर्ज होने वाले कुल आपराधिक मामलों का भी पता चलता है। एफआईआर दर्ज करते वक्त उसमें जांच अधिकारी का नाम भी शामिल किया जाता है। वहीं जीरो एफआईआर किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है। इस एफआईआर में कोई क्राइम नंबर नहीं होता है, इसीलिए इसे जीरो एफआईआर कहते हैं। अमूमन जीरो एफआईआर में जांच अधिकारी का नाम नहीं होता है। जीरो एफआईआर जिस थाने में जाती है, वहां उसे क्राइम नंबर पर संबंधित धारओं के तहत दर्ज किया जाता है और जांच अधिकारी की नियुक्ति होती है।