जीवनधारा के 'जीवन' के लिए जंग
जल के वेग और भावनाओं में बहुत ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। ठहरी हैं, तो ठहरी हैं और फूट पड़ें तो सैलाब आ जाए। ढोल-नगाड़ों और जय-जयकार से आह्लादित यमुना मैया के लिए शनिवार की भोर का उजियारा कुछ ऐसा ही था। यूं लगा कि शहर के प्राचीन बल्केश्वर शिव मंदिर के सामने यमुना के घाट पर शुक्रवार शाम को लगा श्रद्धा का 'मेला' रात के अंधेरे में सिर्फ अदृश्य हुआ था।
आगरा (जितेंद्र शर्मा)। जल के वेग और भावनाओं में बहुत ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। ठहरी हैं, तो ठहरी हैं और फूट पड़ें तो सैलाब आ जाए। ढोल-नगाड़ों और जय-जयकार से आह्लादित यमुना मैया के लिए शनिवार की भोर का उजियारा कुछ ऐसा ही था। यूं लगा कि शहर के प्राचीन बल्केश्वर शिव मंदिर के सामने यमुना के घाट पर शुक्रवार शाम को लगा श्रद्धा का 'मेला' रात के अंधेरे में सिर्फ अदृश्य हुआ था। सुबह होते ही फिर हाथों में थाल, फूल, ढोल, नगाड़े और यमुना की जय-जयकार। शहर में मन:कामेश्वर के सामने स्थित यमुना के हाथी घाट से इस संकल्प यात्रा को आगे रवाना होना था। बेशक, आगे सफर उम्मीदों का है, लेकिन उज्ज्वल अतीत की यादें और कष्टप्रद वर्तमान की तस्वीर भी आसानी से नजरअंदाज नहीं की जा सकती। यात्रा के स्वागत को पहुंचे उन बुजुर्गो की जुबां से किस्सा सुनते हैं, तो यमुना की यादें उस दौर में पहुंच जाती हैं, जब वह शहर की 'जीवनधारा' हुआ करती थी। व्यापारिक केंद्र के रूप में पहचान रखने वाले पुराने क्षेत्र बल्केश्वर में 'धन्ना सेठों' की बसावट थी। इस घाट पर पावन स्नान और आचमन के साथ यमुना की उत्ताल लहरों पर तैरती नावें व्यापार को रवानगी देती थीं।
अतीत के जिक्र के बीच ज्यों ही नजर यमुना की ओर जाती है, तो सिर शर्म से झुक जाता है। बेहद शर्मनाक स्थिति ये कि अब यहां निचले तबके के लोग दैनिक क्रियाओं के लिए पहुंचते हैं। हालात ऐसे कि घाट तक चले जाएं, तो लौट कर स्नान करना पड़े। इसी अफसोस के बीच जागरण यमुना यात्रा के रथ पर नजर पड़ती है, तो फिर हौसला मिलता है और नजर आती हैं सुनहरे भविष्य की उम्मीदें। कलश पूजन और आरती के साथ यात्रा आगे बढ़ती है, तो अतीत की पावन यमुना के साक्षी रहे ताजमहल और आगरा किला की प्राचीर स्वागत करती महसूस होती है। फिर पुरानी मंडी चौराहा, प्रतापपुरा चौराहा, नंद टॉकीज चौराहा से लेकर टीडीआइ मॉल के सामने तक पड़ाव-दर-पड़ाव यमुना शुद्धिकरण के लिए प्रतिबद्धता का जोश जश्न में बदलता जाता है।
यहां से आगे बढ़ने पर माहौल बदलने लगता है। माहौल सिर्फ आबादी का, यात्रा का नहीं। सड़क तो पक्की है, लेकिन आसपास कच्चे घर और हरियाली भी नजर आने लगती है। ये कारवां पावन तीर्थस्थल बटेश्वर की ओर चल पड़ा था। कलाल खेरिया, बमरौली अहीर, कुंडौल, डौकी, फतेहाबाद, अरनौटा, स्याहीपुरा, भदरौली से फरौरा मोड़ तक ग्रामीणों में स्वत:स्फूर्त जोश नजर आता है। ढोल बज रहे हैं, यमुना मैया की आरती उतारी जा रही है। यमुना जल के पवित्र कलश को छूने के लिए उसी तरह आतुर, जैसे कान्हा के चरण छूने को यमुना की लहरों ने उफान लिया था।
आखिर यमुना यात्रा आगरा में निर्धारित उस अंतिम पड़ाव पर पहुंचती है, जहां कालिंदी का अलग स्वरूप देखने को मिलता है। यहां बटेश्वर में शिव मंदिर के किनारे यमुना पश्चिम की ओर बहती हैं। यहां यमुना भक्तों ने यात्रा को इस भाव में स्वीकार किया, जैसे ये पड़ाव नहीं मंजिल हो। संतों ने कलश अपने सिर पर रखा और हुजूम के साथ जुलूस पहुंचा 'गंगाधर' के चरणों में। अब तक की गलतियों और नादानियों को नजरअंदाज कर सकें, तो प्रारंभ बिंदु सिकंदरा से आगरा के अंतिम पड़ाव बटेश्वर तक यमुना भक्तों की आस्था यूं ही महसूस हुई, जैसे उनमें यमुना के लिए सभी में भगीरथ प्रयास करने की होड़ लग गई हो।