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शी के हाथों में आजीवन सत्ता, जानें- भारत पर कितना होगा असर

राष्ट्रपति शी जिनपिंग को उनके दूसरे कार्यकाल के लिए जबदस्त समर्थन मिला था, उस वक्त उन्होंने पार्टी चीफ के रुप में एक मैराथन भाषण दिया, जो कि करीब साढ़े तीन घंटे का था।

By Manish NegiEdited By: Published: Mon, 05 Mar 2018 06:52 PM (IST)Updated: Mon, 05 Mar 2018 11:35 PM (IST)
शी के हाथों में आजीवन सत्ता, जानें- भारत पर कितना होगा असर
शी के हाथों में आजीवन सत्ता, जानें- भारत पर कितना होगा असर

नई दिल्ली, स्पेशल डेस्क। चीन की ओर से बीते रविवार को राष्ट्रपति पद को लेकर बड़ा ऐलान किया गया, जिसके तहत सरकार ने अपनी इच्छा को साफ करते हुए अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बनने की अनिवार्यता को समाप्त करने का ऐलान किया, जिससे कि मौजूदा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वर्ष 2023 के बाद भी राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया। चीनी सरकार का ये फैसला सभी के लिए चौकाने वाला रहा। हालांकि इसका इशारा कम्यूनिस्ट पार्टी के 19वीं कांग्रेस में मिल गया था, जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग को उनके दूसरे कार्यकाल के लिए जबदस्त समर्थन मिला था, उस वक्त उन्होंने पार्टी चीफ के रुप में एक मैराथन भाषण दिया, जो कि करीब साढ़े तीन घंटे का था। वो लम्हा बीते वर्ष 18 अक्टूबर का था, जब राष्ट्रपति शी झिंनपिंग ने ग्रेट हाल के मंच से खड़े होकर सभा में मौजूद लोगों को संबोधित किया था, उस वक्त जिनपिंग ने चीन के अगले 30 वर्षों के विकास की संचरना को लेकर को एक खाका पेश किया था।

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इस भाषण के 34,000 शब्दों में लक्ष्य और उसको पूरा करने की मियाद तय की गई थी। इसके लिए उनकी ओर से समयसीमा वर्ष 2034 तय किया। इस दौरान चीन के मुख्यत सामाजिक आधुनिकीकरण के लक्ष्य को हासिल करने का वादा किया गया। इससे पहले वर्ष 1980 के दशक में चीन के सर्वोच्य नेता डेंग जियाओपिंग की ओर से 15 वर्षों के लिए एक लक्ष्य तक किया गया था। इसी के बाद से विदेशी मीडिया जगत में चीन में संविधान बदलाव करके राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल को बनाए रखने के लिए एक रास्ता खोलने की बाते उठने लगी थी।

कई प्रवेक्षकों का मानना है कि शी ने अपने दूसरे कार्यकाल में अपने इरादों के बारे में देर से इजहार किया, जिससे कि उसे सत्ता में आगे अपनी पकड़ मजबूत हो सके। इसके लिए उन्होंने न केवल अपना दबदबा बढ़ाया बल्कि इसके साथ ही एक एजेंडे के साथ विश्व शक्ति के रूप में चीन को आगे ले जाने का एक रोडमैप बनाया और उसके लिए सत्ता पर अपना समय देने पर जोर दिया।

वास्तव में चीन में सत्ता के तीन केंद्र बिंदु है, जिनका शी नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में इनसे एक-एक राष्ट्रपति पद है, जिसका एक प्रतीकात्मक महत्व है। इसमें दो अन्य महत्वपूर्ण पद है, जिनमें एक पार्टी महासचिव का पद और दूसरा सशस्त्र बलों का अध्यक्ष पद है। पार्टी महासचिव पद के लिए उन्हें 9वीं कांग्रेस में पांच साल का दूसरा कार्यकाल दिया गया था। इसी में सशस्त्र बलों के अध्यक्ष पद की कोई सीमा नहीं अवधि सीमा नही होती है। हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए अवधि सीमा दस वर्ष यानि दो कार्यकाल के लिए होती है। शी जिनपिंग अपने दूसरे कार्यकाल की शरुआत इस वर्ष मार्च से करेंगे। ऐसे में संविधान में संशोधन करके राष्ट्रपति की दो अवधि की सीमा को बढ़ाने की शक्ति देने का ऐलान किया गया है, जिसकी वजह से शी की शक्ति पहले से काफी मजबूत हो सके।

संविधान में बदलाव के दिन पहले रविवार को इसका सार्वजनिक ऐलान किया गया, जिसमें कहा गया कि शी ने पोलित ब्यूरो की एक मीटिंग बुलाकर संविधान की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि संविधान या कानून को पार करने का किसी संगठन या व्यक्ति विशेष को कोई विशेषाधिकार नहीं है।

शी ने वर्ष 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद पांच वर्षों में पूरी तरह से चीन के प्रशासन और सशस्त्र सेना को चुस्त दुरुस्त किया और इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम किया। उन्होंने इसके लिए एंटी करप्शन कैंपेन चलाया। इस तरह से शी ने पार्टी चीन के सभी केंद्र बिंदुओ पर अपना नियंत्रण कड़ा किया। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन ने एक अपनी मिलिट्री पावर को लेकर दक्षिणी चीन सागर में एक प्रोजेक्ट शुरु किया और चीन के आर्थिक प्रभावों को वन बेल्ट वन रोड शो के जरिए एशिया से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका का पहुंचाने को कोशिश शुरू की। इसके तहत अपने बुनियादी ढ़ाचे को मजूबत करने का काम शुरु किया।

शी के पहले कार्यकाल का स्कोरकार्ड काफी प्रभावकारी रहा है और उन्होने ऐलान किया कि चीन एक नए युग में प्रवेश करने जा रहा है। हालांकि उनकी शक्ति का आधार अभी तक मजबूत नहीं है और उन्होंने अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर निर्णायक जीत की घोषणा की है। हालांकि अगर चीन की प्रायोजित बयानबाजी के इतर देंखें, तो सच्चाई यह है कि चीन के भीतर अभी उसकी अर्थव्यवस्था वित्तीय जोखिमों से भरी है और सुधार की ओर अग्रसर है। वहीं विदेशी ताकतें खासकर अमेरिकी नेतृत्व में एक साझा प्रयास करके चीन के बढ़ने प्रभाव को कम करने की भरपूर कोशिश कर रही हैं।

हाल ही में कई विश्लेषकों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बढ़ते कद की तुलना माओ और डेंग से की है। लेकिन माओ और डेंग कई दशकों तक संघर्ष और युद्धों में गुजारा है। युद्धों के माध्यम से अपनी वफादारी तय की। उनका संबंध चीन के कई बलिदान दिए हैं। इसके विपरीत शी ने अपनी शुरुआत पांच वर्षों के कार्यकाल में अपना खुद का कद और प्रभुत्व बढ़ाने पर जोर दिया है और अपने राजनीतिक दुश्मनों को किनारे लगाने का काम किया है। ऐसे में शी के समक्ष अभी भी चीन की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के साथ ही भ्रष्टाचार को दूर करने को लेकर लंबी लड़ाई लड़नी हैं।

इस सभी में शी समर्थकों का कहना है कि शी जिनपिंग को सत्ता देकर उनकी राजनीतिक स्थिरता को मजबूत किया जाएं, जिसके कि वो चीन में सुधार कार्यक्रम को जारी रख सकें। समर्थकों का मानना है कि यदि उनका 2023 से आगे बढ़ाया जाएगा, तो विकास की अधिक गति मिलेगी। इससे चीन के उस सपने को साकार करने में मदद मिलेगी, जिसके तहत चीन को 2050 तक विश्व शक्ति बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। शी का मकसद पिपल्स ऑफ रिपब्लिक के 1949 के संस्थापक के दिनों की तरह का है।

माओ चीन के निर्विवादित नेता थे, जो वर्ष 1949 से लेकर मृत्यु तक वर्ष 1976 तक देश के राष्ट्रपति रहे। उन्होंने चीन पर 27 साल शासन किया। इसके बाद डेंग चीन के सर्वोपरि नेता बने और वर्ष 1997 में अपनी मृत्यु तक कुल 18 वर्षों तक शासन किया। वो वहां के आध्यात्मिक नेता भी रहे।

डेंग ने पार्टी प्रमुख के रुप में जियांग जेमिन को स्थापित किया और बाद में तीन शक्ति केंद्रों राष्ट्रपति पद, सशस्त्र बलों की अध्यक्षता पार्टी प्रमुख का पद पर अपने हाथो का पद प्रदर्शित किया। हालांकि जियांग युग डेंग की मौत के बाद वर्ष 1997 में शुरु हुआ। हालांकि वो वर्ष 2014 में आधिकारिक रुप से पदमुक्त हुए और फिर हू जिंताओं के लिए रास्ता तैयार किया। हालांकि वो वर्ष 2012 में दस वर्षों तक जिंताओं के वक्त मध्यस्त रहे। इसके बाद शी वर्ष 2012 में सत्ता में आए। उन्होंने जियांग के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया और सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए। ऐसे मे अगर शी 15 या फिर 20 साल चीन में शासन करते हैं, तो वो वर्ष 2035 तक चीन को आधुनिक देश बनाने में कामयाब होना चाहेंगे।

शी वर्ष 1953 में पैदा हुए। ऐसे में अगर वो वर्ष 2035 तक शासन करते हैं, तो उस वक्त उनकी उम्र 82 वर्ष हो जाएगी। जैसा कि डेंग की 85 वर्ष थी, जब वो वर्ष 1990 में सेवानिवृत्त हो हुए थे।

बेशक, ऐसा संभव हो सकता है कि शी अपनी मृत्यु तक शासन करके माओ की तरह उदाहरण पेश कर सकते हैं। हालांकि चीन ने माओ के वक्त में बहुत कुछ सीखा है। जो परिदृश्य संभव नहीं है। हालांकि दूसरी ओर राष्ट्रपति के दो कार्यकाल को संवैधानिक तौर पर बढ़ाने के वक्त कहा गया कि इसका मतलब राष्ट्रपति पद पर ताउम्र कब्जेदारी नहीं है।चीन सरकार के मुखपत्र में संविधान बदलाव वाले दिन चार पेज का संपादकीय लिखा गया, जिसमें अमेरिकी चुनाव प्रणाली के बारे में लिखा गया। जहां लेखकों ने अमेरिकी चुनाव को धन की राजनीति करार दिया। एक लेख में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट का उदाहरण स्वरुप तर्क दिया कि यह अमार लोगों और पूर्व सैन्य जनरलों का एक गिरोह है, जहां प्रशासनिक अनुभव की कमी का जिक्र किया गया। इसमें कहा गया कि विदेशी मीडिया शी के इस कदम को शक्ति हड़पने का एक जरिया बता रहा है। शी के पांच वर्षों के शानदार कार्यकाल को राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखा, जिसके चलते पार्टी और देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ी और उन्हें देश का आगामी नेता बनने का मार्ग प्रशस्त किया।

वास्तव में शी के आने वाले दिनों कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि शी अपने हाथ में सभी शक्तियां ले रहे है या फिर ऐसा कहा जा सकता है कि शी झिनपिग चीन की सत्ता का केंद्र होना चाहते हैं। ऐसे में वो उनके सहयोगी उन्हें असहज सच्चाई से रुबरु कराने की हिम्मत नहीं करेंगे, जिससे एकतरफा फैसला लिए जा सकते हैं, जिससे देश को नुकसान हो सकता है। कुल मिलाकर रविवार की घोषणा ने बुद्धजीवियों को काफी चिंतित कर दिया है।

चीनी सतर्कता अधिकारियों की ओर से इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफार्म आलोचना पर रोक लगाने के बावजूद इस मुद्दे पर चर्चा नहीं रुक रह रही है। डेंग और जियांग के जीवनकाल में हुई नियुक्तियों के खतरों और पार्टी अस्थिरता को लेकर कई लोग भविष्यवाणी कर रहे हैं। दूसरे चीनी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कार्यकाल से सीख लेने की बात कह रहे हैं। जब पुतिन वर्ष 2000 में सत्ता में आएं, उस वक्त उन्होंने रुस को 20 वर्षों में उसके स्वर्णिक काल में ले जाने की बात कही। हालांकि 18 वर्षों के शासनकाल में रुस की अर्थव्यवस्था सिकुड़ती गई। इसके पीछ कॉमोडिटी प्राइस का गिरना और पश्चिम के प्रतिबंध रहे। ऐसे मे रुसियों ने क्रेमनिल के चौथे कार्यकाल को वापस लौटने की बात कही।


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