कॉलेज परिसर की दीवारों में बनाए गए सैकड़ों छेद, जिनमें गौरैयों ने बनाया अपना आशियाना
World Sparrow Day गौरैया की चहक और चहल-कदमी से परिसर जीवंत हो उठता है। कॉलेज प्रबंधन ने इन गढ्डों के रूप में इमारत की खूबसूरती से जो समझौता किया मानो उसका मोल लगा रही हों।
हर्षल सिंह राठौड़, इंदौर। World Sparrow Day 2020 मध्यप्रदेश के इंदौर में गौरैया संरक्षण की एक सुंदर और प्रेरक पहल सामने आई है। यहां के एक कॉलेज ने अपने परिसर की दीवारों में ऐसे सैकड़ों छेद बनाए हैं, जिनमें गौरैया घोंसला बना सके। गौरैया इनमें घोंसला बनाकर रहती हैं। नजदीकी तालाब किनारे गौरैया पाइंट भी बनाया गया है, जहां इनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था है। कॉलेज की अंदरूनी और बाहरी दीवारों पर बने ये छेद भले ही देखने में भद्दे लगते हों, लेकिन जब-जब इनमें से गौरैया झांकती है, तो ये सजीव हो उठते हैं। मानो तब इनसे सुंदर कुछ और नहीं। गौरैया की चहक और चहल-कदमी से परिसर जीवंत हो उठता है। कॉलेज प्रबंधन ने इन गढ्डों के रूप में इमारत की खूबसूरती से जो समझौता किया, मानो उसका मोल लगा रही हों।
गौरैयों का घर इंदौर स्थित जीएसबी कॉलेज: एक ओर जहां कंक्रीट का जंगल बन चुके शहरों से गौरैया विलुप्त हो चुकी है, वहीं इंदौर में यह ऐसी जगह है जहां सैकड़ों गौरैया चहचहाती हैं। सौ से अधिक घोंसलों में 300 से अधिक गौरैयों का बसेरा है। कॉलेज की इमारत 30 हजार वर्गफुट में बनी है। ये गड्ढे बीम के दौरान ही बना दिए गए थे ताकि गौरैया इनमें बैठ सके। इस पहल की वजह केवल यही थी कि छात्रों को प्रकृति के संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना विकास कैसे हो, क्षतिपूर्ति कैसे की जाए, इन बातों का एक उदाहरण यहां बखूब प्रस्तुत किया गया है।
विकास और इकोसिस्टम में संतुलन का यह फलसफा समझाते हुए कॉलेज के कैंपस डेवलपमेंट ऑफिसर राजेंद्र सिंह सलूजा बताते हैं कि जब यहां इमारत बनाने की बात आई तो देखा कि यहां कई तरह के पक्षी हैं। ऐसे में निर्णय लिया गया कि इन्हें भी संरक्षित किया जाए। इंजीनियर की सलाह इसलिए नहीं ली क्योंकि वह केवल आर्थिक दृष्टि से ही सोचते हैं। इस पूरे मामले में हमने परिवार के बड़ों की बात मानी और इमारत की खूबसूरती से आंशिक समझौता करते हुए पक्षियों के लिए इन गड्डों को रखना स्वीकार किया।
ढाई से तीन इंच के गड्ढे : दीवारों में ढाई से तीन इंच के रखे गए हैं। इसके अलावा कैंपस में कई बर्ड हाउस (डिब्बों में बनाए गए घोंसले) भी लगाए गए हैं। इनके लिए 24 घंटे दाना-पानी उपलब्ध रहता है। पक्षियों के कारण दीवारें गंदी भी हो जाती हैं पर इन्हें साफ कर लिया जाता है।
बनाया है गौरैया पॉइंट : शहर के सिरपुर तालाब किनारे भी खासी संख्या में गौरैया को देखा जा सकता है। इसके लिए यहां गौरैया पॉइंट बनाया गया है। गौरैया के खाने का इंतजाम करने के लिए कर्मचारी नियुक्त है। द नेचर वॉलेंटियर्स ग्रुप के अध्यक्ष पद्मश्री भालू मोंढ़े बताते हैं कि यहां हर वक्तदाना-पानी की व्यवस्था की गई है ताकि गौरैया को खाने की तलाश में बहुत ज्यादा भटकना नहीं पड़े। इनकी उड़ान लंबी नहीं होती है।
बड़े शहरों से फुर्र... : फरवरी में जारी हुई एक रिपोर्ट- स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स 2020 के अनुसार छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में 2006 से 2013 तक गौरैया की संख्या में 10 प्रतिशत इजाफा हुआ। 2013 से 2018 तक इनकी संख्या स्थिर हो गई। जबकि बड़े शहर और मेट्रो सिटीज में 2006 से 2013 तक इनकी संख्या में 25 प्रतिशत और 2013 से 2018 में 40 प्रतिशत कमी आ गई। यह रिपोर्ट देश की 10 संस्थाओं के 15 हजार बर्ड वॉचर द्वार किए गए अध्ययन के आधार पर तैयार की गई। इसमें 25 साल के आंकड़े जुटाए गए हैं।
विकास के कारण प्रकृति को होने वाली क्षति की पूर्ति करना हमारी ही जिम्मेदारी है। वास्तव में शिक्षा का अर्थ यह भी तो है कि हम नई पीढ़ी को समाज, प्रकृति के प्रति दायित्व निभाना सिखाएं जो कि हम इस कोशिश के जरिए कर रहे हैं।
- राजेंद्र सिंह सलूजा, जीएसबी कॉलेज, बायपास, इंदौर