World Press Day: ...और रंगीन हो गई टीवी और हाथों में आने वाले अखबार की दुनिया
एक समय था जब लोग ब्लैक एंड व्हाइट पेपर पढ़ते थे और उसी तरह से टीवी भी देखा करते थे मगर समय बदला और अब दोनों चीजें रंगीन हो चुकी है।
नई दिल्ली। एक दौर था जब दुनियाभर में छपने वाले समाचार पत्र और टीवी ब्लैक एंड व्हाइट ही हुआ करती थी, उसके बाद समय बदला। बदलाव प्रकृत्ति का नियम होता है तो इन दोनों माध्यमों को भी बदलने का विचार शुरू हुआ। वैज्ञानिक खोज करते रहे, अखबारों और टीवी का रंग बदलने का भी विचार चलता रहा। इन विचारों को मूर्त रूप लाने में भी एक समय के बाद सफलता मिल ही गई।
1980 के बाद से समाचार पत्रों के पन्ने रंगीन होने शुरू हो गए, कुछ संस्थाओं ने अपने एडिशन पहले करने शुरू कर दिए, समाचार पत्र कलर छापने के लिए नई एडवांस तकनीक की मशीनें मंगवा ली और समाचार पत्र और मैगजीनें रंगीन छापने लगे, उसके बाद बाकी संस्थान भी धीरे-धीरे उसी ओर बढ़ चले। धीरे-धीरे करते हुए अखबार और टीवी दोनों की दुनिया रंगीन हो गई। 1990 के बाद अखबारों का कलेवर, उनकी प्रिंटिंग और प्रस्तुति सारा कुछ बदला है। वे अब पढ़े जाने के साथ-साथ देखे जाने लायक भी बन गए। जिस तरह से समय बदला उस हिसाब से अब अखबार पढ़े जाने की बजाए पलटे ज्यादा जा रहे हैं।
अखबार में हो रहा चार रंगों का इस्तेमाल
फिलहाल अखबार में 4 रंगों का ही इस्तेमाल हो रहा है। इनको CMYK के नाम से जाना जाता है। CMYK की फुल फॉर्म है Cyan, Magenta, Yellow and key (black)। यहां CMY क्रम से नीले, लाल और पीले रंगों को दर्शाते हैं, जबकि K को प्रिंटिंग की Key प्लेट जो ब्लैक होती है, उससे जोड़कर देखा जाता है, तभी तो K का मतलब है काला रंग।
छपे हुए इन 4 रंगों वाले डॉट्स का क्रम और कलर का गाढ़ापन (Level) अगर ठीक है तो जान लीजिए कि उस पेज पर की गई रंगीन प्रिंटिंग भी बिल्कुल सही होगी। अगर चारों रंगो में से कोई भी कलर इधर उधर हो जाए। कोई भी कलर डॉट दूसरे रंग के डॉट पर चढ़ जाए तो समझ जाइए कि उस पेज पर छपी हुई तस्वीरों के रंग भी खराब और धब्बेदार होंगे।
क्या है इन 4 रंगों का विज्ञान
बचपन में स्कूल ड्रॉइंग क्लास में सभी ने 3 प्राइमरी कलर्स पढ़े ही होंगे, लाल, नीला और पीला। पेंटिंग की दुनिया में हर तरह के कलर्स बनाने के लिए यही मेन कलर्स यूज किए जाते हैं लेकिन जब बात प्रिंटिंग की हो, तो वहां पर 4 कलर्स को मिलाकर रंगीन छपाई की जाती है। अखबार से लेकर मैंगजीन, विजिटिंग कार्ड, फ्लेक्स बैनर और तमाम ऑफीशियल लेटर सभी 4 रंगों से प्रिंट किए जाते हैं। इसी कारण इन्हें फोर कलर जॉब कहा जाता है।
किन रंगों से टीवी की दुनिया बन रही रंगीन?
अखबार किस तरह से रंगीन छपने शुरू हुए इस पर तो बात हो गई, अब दूसरा जो सबसे बड़ा माध्यम टीवी है उसके कलर होने की भी बात कर लेते हैं। टीवी की रंगीन दुनिया को कलरफुल बनाने वाले रंगों के बारे में भी जरा जान लीजिए। टीवी हो या कंप्यूटर या फिर मोबाइल इन सभी के कलर्ड डिस्प्ले को कलरफुल बनाने में यूं तो लाखों रंग यूज होते हैं, लेकिन सिर्फ 3 बेस कलर ही टीवी को रंगीन बनाते हैं। ये तीन रंग है RGB यानि Red, Green और Blue।
इन तीन रंगों के अलग अलग शेड्स आपस में मिलकर इलेक्ट्रानिक्स और डिजिटल डिवाइसेस में 16 मिलियन कलर्स भर देते हैं। तभी तो हमें टीवी से लेकर मोबाइल तक हमें बेहतरीन रंग नजर आते हैं। आज से 38 साल पहले 1982 में पहली बार रंगीन प्रसारण के लिए परीक्षण शुरू किया गया था, जिसके बाद नवंबर 1982 में भारत ने एशियाई खेलों की मेजबानी का रंगीन प्रसारण किया था। दूरदर्शन की डायरेक्टर जनरल सुप्रिया साहू ने इस दिन को याद करते हुए एक ट्वीट भी किया और खुशी जताई कि यह राष्ट्रीय प्रसारक अपने लोक सेवा प्रसारण के जरिए देश के निर्माण का अभिन्न हिस्सा भी बना।
1980 के दशक को दूरदर्शन युग कहा जाता है और इस दौरान 'बुनियाद', 'रामायण', 'महाभारत', 'शक्तिमान', 'रंगोली' और 'चित्रहार' समेत कई कार्यक्रम प्रसारित हुए थे। दूरदर्शन का जब रंगीन प्रसारण शुरू हुआ तो इसके 6 महीने के भीतर ही टीवी की डिमांग इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि उस समय सरकार को 50 हजार टीवी सेट विदेशों से आयात करने पड़े थे।
ये बात जानकर हैरानी होगी कि 1975 तक मात्र 7 शहरों में सिमटा दूरदर्शन 2 राष्ट्रीय और 11 क्षेत्रीय चैनलों के साथ कुल 21 चैनलों का प्रसारण करता है और इनका प्रसारण देश-विदेशों में होता है। 1416 जमीनी ट्रांसमीटर और 66 स्टूडियो के साथ यह देश का सबसे बड़ा प्रसारणकर्ता है। ‘कृषि दर्शन’ देश में सबसे लंबा चलने वाला दूरदर्शन का कार्यक्रम है।
दूरदर्शन का सफर :
भारत में सरकारी प्रसारक दूरदर्शन अपने 61 साल पूरे कर चुका है। 15 सितंबर 1959 को दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी। शुरू में कई वर्षों तक दूरदर्शन भारत में शिक्षा, सूचना और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत रहा। 1959 में जब सरकारी चैनल दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ तो वह किसी अजूबे से कम नहीं था तभी यह लोगों के बीच ‘बुद्धू बक्से’ के नाम से जाना जाने लगा लेकिन उस बुद्धू बक्से का सफर आज 2020 में घर घर तक पहुंच गया।
दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को परीक्षण के तौर पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया। उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था, तब इसको टेलिविजन इंडिया नाम दिया गया था। बाद में 1975 में इसका हिंदी नामकरण दूरदर्शन किया गया। यह दूरदर्शन नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि टीवी का हिंदी पर्याय बन गया।
शुरुआती दिनों में दिल्ली भर में 18 टेलिविजन सेट लगे थे और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था, तब दिल्ली में लोग इसको आश्चर्य के साथ देखते थे। इसके बाद दूरदर्शन ने धीरे-धीरे अपने पैर पसारे और दिल्ली (1965), मुंबई (1972), कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई। शुरुआत में तो दूरदर्शन दिल्ली और आस-पास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुंचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई। दरअसल इसकी वजह 1982 में दिल्ली में आयोजित होने वाले एशियाई खेल थे।
एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया था। फिर दूरदर्शन पर शुरू हुआ पारिवारिक कार्यक्रम ‘हम लोग’जिसने लोकप्रियता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे धार्मिक कार्यक्रमों ने तो सफलता के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे, 1986 में शुरू हुए रामायण और इसके बाद शुरू हुए महाभारत के प्रसारण के दौरान रविवार को सुबह देशभर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से लेकर अपनी यात्रा तक इस समय पर नहीं करते थे।
वहीं अगर विज्ञापनों की बात करें तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’जहां लोगों को एकता का संदेश देने में कामयाब रहा वहीं ‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर- हमारा बजाज’से अपनी व्यावसायिक क्षमता का लोहा भी मनवाया। ग्रामीण भारत के विकास में भी दूरदर्शन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सन 1966 में ‘कृषि दर्शन’कार्यक्रम के द्वारा दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना। आज भी दूरदर्शन के उस दौर को लोग याद करते हुए नहीं थकते हैं। अब इस लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर लोग वही रामायण और महाभारत देखकर दूरदर्शन के उस क्रांति के दौर को याद कर रहे हैं।