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Drought in World: सूखे की चपेट में दुनिया, 70 करोड़ लोगों के भविष्‍य पर मंडरा रहा खतरा

सूखे की समस्या से नहीं निपटा गया तो खाद्यान्न संकट के साथ ही विस्थापन की विकराल चुनौती का सामना करना होगा। अगर दुनिया सूखे से बचाव के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं करती है तो 2030 तक अनुमानित 70 करोड़ लोगों को सूखे से विस्थापित होने का खतरा होगा।

By TilakrajEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 02:58 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 02:58 PM (IST)
Drought in World: सूखे की चपेट में दुनिया,  70 करोड़ लोगों के भविष्‍य पर मंडरा रहा खतरा
सूखे के कारण 1970 से 2019 तक की अवधि में साढ़े छह लाख लोगों की मौतें हुईं

नई दिल्‍ली, सुधीर कुमार। जलवायु परिवर्तन के कारण लगभग समूची दुनिया के समक्ष सूखे का खतरा मंडरा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया ‘ड्राट इन नंबर्स’ रिपोर्ट-2022 बताती है कि वर्ष 2000 के बाद से सूखे की आवृत्ति और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके कारण न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक असंतुलन पैदा हुआ है, बल्कि मानव संसाधन और आर्थिकी का व्यापक पैमाने पर नुकसान भी हुआ है। गौरतलब है कि सूखे के कारण 1970 से 2019 तक की अवधि में साढ़े छह लाख लोगों की मौतें हुईं, जबकि 1998 से 2017 के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था को 124 अरब डालर की चपत भी लगी।

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सूखा सामान्यत: प्राकृतिक रूप से घटित होता है, पर बीते कुछेक दशकों में प्रकृति-विमुख मानवीय कारस्तानियों के कारण बदलती जलवायु दशाओं ने सूखे को अधिक संवेदनशील बना दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के औसत ताप में वृद्धि होती है, जिससे मृदा में व्याप्त नमी नष्ट होती है और जल तेजी से वाष्पीकृत होता है।

दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा अनियमित होती है और लंबे समय तक कम वर्षा या वर्षा का बिल्कुल न होना सूखे को जन्म देता है। इसके अलावा भूजल का अत्यधिक दोहन भी किसी क्षेत्र को सूखे की ओर धकेलता है। बढ़ती आबादी की पेयजल एवं अन्य दैनिक आवश्यकताओं और कृषि क्षेत्र में अति चराई के कारण भूजल का स्तर नीचे चला जाता है।

भूमि की नमी घटने से मृदा बंजर में तब्दील होने लगती है। वहीं वर्षा कराने में सहायक जंगलों का कृषि एवं व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उजाड़ने की सतत प्रक्रिया भी सूखे की विकरालता के लिए उत्तरदायी है। वन मृदा को भूमि में जकड़े रखती है और उसकी नमी बरकरार रखने में सहायक होती है, लेकिन जैसे ही हरियाली उजड़ती है, वह क्षेत्र सूखे की चपेट में आने लगता है। सूखे के कारण खाद्यान्न और चारे का उत्पादन प्रभावित होता है। कम उत्पादन के कारण महंगाई बढ़ती है और पशुधन के चारे का संकट उत्पन्न होता है।

सूखे से निपटना इसलिए जरूरी है, क्योंकि आपदाओं का 15 प्रतिशत हिस्सा सूखे से संबंधित है। अगर दुनिया सूखे से बचाव के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं करती है तो 2030 तक अनुमानित 70 करोड़ लोगों को सूखे से विस्थापित होने का खतरा होगा। सूखे से निपटने का सबसे अच्छा और टिकाऊ समाधान भूमि बहाली या पुनर्भरण है।

यह मिट्टी की उर्वरता को नुकसान से बचाने में सहायक है, जिससे उसकी नमी बरकरार रहती है। खेती में अति सिंचाई के जगह स्प्रिंकलर प्रणाली और फसल चक्र में बदलाव, कम पानी वाले फसलों की खेती पर जोर देकर सूखे से निपटा जा सकता है। वनीकरण को बढ़ावा, भूजल के दोहन पर रोक, वर्षा जल संचयन भी इस दिशा में कुछ कारगर उपाय हैं।

(लेखक बीएचयू में शोधार्थी हैं)


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