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World Haemophilia Day 2019: थोड़ी सी सावधानी से हीमोफीलिया के मरीज बढ़ा सकते हैं अपनी उम्र नहीं तो होगी बहुत मुश्किल

यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। इसमें खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 04:07 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 09:39 AM (IST)
World Haemophilia Day 2019: थोड़ी सी सावधानी से हीमोफीलिया के मरीज बढ़ा सकते हैं अपनी उम्र नहीं तो होगी बहुत मुश्किल
World Haemophilia Day 2019: थोड़ी सी सावधानी से हीमोफीलिया के मरीज बढ़ा सकते हैं अपनी उम्र नहीं तो होगी बहुत मुश्किल

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। हीमोफीलिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि रक्त के बहने पर बंद ही नहीं होता। यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है। जिससे खून का बहना रुकता ही नहीं है। इसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' भी कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए खून के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

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कैसे होती है ये बीमारी

बच्चों को हीमोफीलिया की बीमारी अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है। इसके मरीजों में फैक्टर 8 की कमी होती है, जिससे शरीर में कटने या खरोंच लगने पर रक्त लगातार बहता है। शरीर में इस फैक्टर की कमी होने पर जोड़ों में तेज दर्द होता है। दर्द असहनीय होने पर बच्चे चिल्लाने लगते हैं और बेचैनी बढ़ जाती है। काफी महंगा होने के कारण सरकारी अस्पताल इसके अभाव का बहाना कर मरीजों को टाल देते हैं। फैक्टर 8 एक आवश्यक रक्त-थक्का बनाने वाला प्रोटीन है, जिसे एंटी-हीमोफिलिक कारक के रूप में भी जाना जाता है।

हीमोफीलिया क्या है

हीमोफीलिया बीमारी दो तरह की होती है हीमोफीलिया ए और हीमोफीलिया बी। यह एक अनुवाशिंक बीमारी होती है। इस बीमारी में शरीर में रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिसके कारण, चोट लगने पर रक्त जम नहीं पाता और वह असामान्य रूप से बहता रहता है। इस बीमारी पर तब तक लोगों का ध्यान नहीं जाता, जब तक कि उन्हें किसी कारण से गंभीर चोट न लगे और उनमें रक्त का बहना न रुकें।

हीमोफीलिया के प्रकार

हीमोफीलिया को हीमोफीलिया ए व हीमोफीलिया बी दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य हो जाती है। जबकि, हीमोफीलिया बी फैक्टर-9 के शून्य या बहुत कम होने पर होता है। लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया रोगी, हीमोफीलिया ए से पीड़ित होते हैं। सामान्य हीमोफीलिया के मामले में पीड़ित को कभी-कभी रक्तस्राव होता है, जबकि स्थिति गंभीर होने पर अचानक व लगातार रक्तस्त्राव हो सकता है।

हीमोफीलिया ए के कारण

हीमोफिलिया A से पीड़ित लोगों के रक्त में प्लाज्मा प्रोटीन, फैक्टर 8 बहुत कम मात्रा में होता है। यदि फैक्टर 8, सामान्य स्तर का, 5% से 40% ही है, तो इसे माइल्ड हीमोफिलिया कहते हैं। यदि फैक्टर 8, सामान्य स्तर का 1 % से 5 % ही है, तो इसे मॉडरेट हीमोफिलिया कहते हैं। यदि फैक्टर VIII, सामान्य स्तर से 1 % से भी कम है, तो इसे सीवियर हीमोफिलिया कहते है। यदि रोगी के शरीर में इसकी बहुत ज्यादा कमी हो जाये तो लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। शिशुओं और छोटे बच्चों में हीमोफिलिया A की पहचान हो जाती है।

हीमोफिलिया बी के कारण

हीमोफिलिया बी, एक आनुवंशिक रक्त विकार है। यह माता-पिता से बच्चों में आने वाले जीन में खराबी से होता है। अक्सर महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चें में इस बीमारी के होने की संभावना अधिक होती है। लेकिन कभी-कभी यदि जन्म से पहले जीन में किसी प्रकार का बदलाव आ जाए (म्यूटेशन), तो ऐसी स्थिति में भी होने वाले बच्चें को हीमोफिलिया बी हो सकता है।

हीमोफीलिया बीमारी का लक्ष्ण

शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आंख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों की सूजन आदि इसके लक्ष्ण है।

जेनेटिक टेस्टिंग से होती पहचान

हीमोफीलिया के मरीजों की पहचान जेनेटिक टेस्टिंग से होती है। यह टेस्ट काफी विश्वसनीय माना जाता है। इसकी सुविधा राजधानी की कुछ ही प्रयोगशालाओं में है।

हीमोफीलिया का इलाज हुआ संभव

वैज्ञानिकों ने हीमोफीलिया के उपचार के लिए नई दवा विकसित करने में सफलता पाई है। यह जीन थेरेपी दवा इस विकार से रोगियों को निजात दिलाने में प्रभावी पाई गई है। इस विकार के चलते सामान्य रूप से रक्त का थक्का बनना बंद हो जाता है। मामूली चोट में भी बहुत ज्यादा खून बह जाता है। आंतरिक रक्तस्राव का भी खतरा रहता है। नतीजतन जान जोखिम में पड़ सकती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, हीमोफीलिया ए पीड़ितों पर एक साल तक जीन थेरेपी दवा की एकल उपचार विधि आजमाई गई। यह दवा रक्त का थक्का बनने में मददगार प्रोटीन का स्तर सामान्य करने और रोगियों को ठीक करने में प्रभावी पाई गई। ब्रिटेन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन पासी ने कहा, ‘हमारे पास अब यकीनन ऐसी क्षमता है जिसमें एकल उपचार के उपयोग से हीमोफीलिया पीड़ितों में बदलाव लाया जा सकता है। यह बड़ी उपलब्धि है।’

बचाव के तरीके

चोट लगने की स्थिति में खून जमाने और घाव भरने के लिए मुंह से खाने वाली दवाएं और चोट वाली जगह पर लगाने की दवाएं आदि भी दी जाती हैं। मांसपेशियों और हड्डियों की मजबूती के लिए नियमित व्यायाम करें। यह आपकी सामान्य तंदुरूस्ती के लिए भी जरूरी है और आपके जोड़ों को भी स्वस्थ रखने और उनमें इंटरनल ब्लीडिंग से बचाव में लाभदायक होगा। अगर आपका बच्चा बाहर खेल रहा है या साइकिल चलाना सीख रहा है अथवा चला रहा है तो आपको सावधानी बरतने की जरूरत है। खेलते समय हेलमेट, एल्बो और नी पैड्स एवं प्रोटेक्टिव जूते पहनाकर रखें।


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