Move to Jagran APP

World Environment Day: विनाशकारी हालात, संभले नहीं तो बसानी पड़ेगी दूसरे ग्रहों पर बस्तियां

वैज्ञानिकों का कहना है इंसान धरती को बर्बाद करने के मामले में इतना आगे बढ़ चुका है कि उसकी वापसी के रास्ते बंद होते जा रहे हैं हालात कितने खतरनाक हैं चलिए करते हैं इसकी पड़ताल...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 08:28 AM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 03:40 PM (IST)
World Environment Day: विनाशकारी हालात, संभले नहीं तो बसानी पड़ेगी दूसरे ग्रहों पर बस्तियां
World Environment Day: विनाशकारी हालात, संभले नहीं तो बसानी पड़ेगी दूसरे ग्रहों पर बस्तियां

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 19वीं शताब्दी की समाप्ति के बाद से ही धरती के तापमान में बढ़ोतरी जारी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि तापमान में 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट तक इजाफा होता है तो इसके घातक नतीजे होंगे। इससे मौसम चक्र प्रभावित होगा जिससे सूखा, बाढ़, चक्र वात आदि का खतरा बढ़ेगा। यदि तापमान दो डिग्री सेंटीग्रेट तक बढ़ा तो हालात और विनाशकारी होंगे। चिंता की बात यह कि ऐसे हालात दुनिया भर में दिखाई देने लगे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है इंसान धरती को बर्बाद करने के मामले में इतना आगे बढ़ चुका है कि उसकी वापसी के रास्ते एक-एक करके बंद होते जा रहे हैं, तो क्या हालात वाकई बेहद खतरनाक मोड़ पर आ चुके हैं? चलिए करते हैं इसकी पड़ताल...

loksabha election banner

सांसें हो रही कम, भोजन का भी संकट सामने
अभी पिछले महीने ही प्रकाशित हुए ऑस्ट्रेलिया के मैक्वेरी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक, प्लास्टिक प्रदूषण से निकलने वाले रसायन समुद्र में मौजूद उन बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो हमें दस फीसद तक ऑक्सीजन देते हैं। प्लास्टिक से उत्सिर्जत रसायनों के कारण इन सूक्ष्म जीवों का विकास अवरुद्ध हो रहा है, साथ ही इनका जीन चक्र भी प्रभावित हो रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, दुनियाभर के समुद्रों में हर साल करीब 80 लाख टन प्लास्टिक फेंका जाता है। यानी हर मिनट एक ट्रक प्लास्टिक कचरा समुद्र में ठेल दिया जाता है। यह कचरा मछलियों के लिए भी घातक है। वैज्ञानिक मछलियों को भविष्य में अनाज का विकल्प मानते हैं। जाहिर है, हम स्वच्छ हवा और भोजन दोनों का संकट पैदा कर रहे हैं।

बिन पानी सब सून... 
सूखे के दौरान ग्लेशियर नदी घाटियों में पानी की आपूर्ति करने के सबसे बड़े स्रोत होते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी से अकेले एशिया में ही लगभग 22.10 करोड़ लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी होती है। लेकिन, ग्लोबल वर्मिग की वजह से बढ़ते तापमान के कारण पूरी दुनिया में ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि चरम जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 फीसद 2050 तक और 97 फीसद 2090 तक तक लुप्त हो सकते हैं, जिससे भारत में बड़े पैमाने पर जल संकट की स्थिति होगी।

पलायन के लिए मजबूर होगी बड़ी आबादी
दुनिया के सबसे उत्तरी छोर पर आबाद जगहों में से एक ग्रीनलैंड का कानाक कस्बा ग्लोबल वर्मिग के कारण शहीद होने की ओर है। आर्कटिक में पड़ने वाला ये इलाका हर मौसम में जमा रहता था लेकिन अब धरती के बढ़ते तापमान के कारण इलाके की जमीन पिघलने लगी है, जो मकानों का बोझ नहीं उठा पाती। अब यहां 650 लोगों की आबादी पलायन को मजबूर है। यह तो महज बानगी है। एक अध्ययन में कहा गया है कि विश्व भर में पिघल रहे ग्लेशियर इस सदी के अंत तक समुद्र तल में 10 इंच तक का इजाफा कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो समुद्र के किनारे के कई आबाद इलाकों को पलायन का सामना करना पड़ेगा। कहना गलत न होगा कि खतरा आर्कटिक ही नहीं धरती के बाकी हिस्सों में भी बदस्‍तूर है।

सच होती दिख रही स्टीफन हाकिंग की भविष्‍यवाणी
‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ के एक अध्ययन में कहा गया है कि धरती का तापमान यदि इसी तरह बढ़ता रहा तो सन 2100 तक दुनिया के आधे हैरिटेज ग्लेशियर पिघल जाएंगे। यही नहीं इससे हिमालय का खुम्भू ग्लेशियर भी खत्म हो सकता है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन ग्लेशियरों को खोना किसी त्रासदी से कम नहीं होगा। इन स्थितियों के बारे में आइंस्टाइन के बाद सबसे ज्यादा जाने-माने साइंटिस्ट और अंतरिक्ष विज्ञानी स्टीफन हाकिंग ने भी चेतावनी दी थी। स्टीफन का मानना था कि साल 2100 के अंत तक धरती पर इंसानों के लिए कई मुश्किलें खड़ी होंगी। धरती पर जीवन मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में इंसान को दूसरे ग्रहों पर कॉलोनियां बनाने के काम में जुट जाना चाहिए।

अमेरिका और चीन की दबंगई का खामियाजा क्‍यों भुगते दुनिया
ग्लोबल वार्मिग को रोकने के लिए 197 देशों ने पेरिस समझौता किया था। समझौते के तहत 2100 तक पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं बढ़ने देने का संकल्प लिया गया था। लेकिन, अमेरिका और चीन की अड़ंगेबाजी के कारण पूरी दुनिया को ग्लोबल वर्मिग के दुष्प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह भी जान लेना जरूरी है कि अमेरिका और चीन मिलकर विश्व का 40 फीसद ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। ऐसे में पेरिस समझौता दुनिया को बचाने के लिए कितना कारगर होगा यह भविष्य के गर्त में है।  

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.