World Environment Day: निजी स्तर पर हम भी इन छोटे-छोटे कदमों से बचा सकते हैं धरती
धरती को बचाने की जिम्मेदारी सरकार पर डालने के बजाय यदि हम निजी तौर पर भी कुछ कदम उठाएं तो विकास के साथ साथ स्वच्छ पर्यावरण का सपना हकीकत में बदल सकता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अक्सर दूषित पर्यावरण को लेकर हम सरकारों को दोषी ठहराते रहते हैं, जो सही नहीं है। सरकार ने पर्यावरण बचाने के लिए तमाम कानून बना रखे हैं, लेकिन विकास की अंधी दौड़ और एक नागरिक के तौर पर हमारी ओर से की गई उपेक्षा हमेशा उन्हें ठेंगा दिखाती रही है। यही वजह है कि मौजूदा वक्त में धरती जितनी प्रदूषित हुई है उतना कभी नहीं रही। धरती को बचाने की जिम्मेदारी सरकार पर डालने के बजाय यदि हम निजी तौर पर भी कुछ कदम उठाएं तो विकास के साथ साथ स्वच्छ पर्यावरण का सपना हकीकत में बदल सकता है। आइये जानें कि एक नागरिक के तौर पर हम पर्यावरण को बचाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर क्या कर सकते हैं।
ग्रीन इकोनॉमी
हमें ग्रीन इकोनॉमी यानी हरित अर्थव्यवस्था को अपनाना होगा। यही एक तरीका है जिसमें हम जरूरी विकास के साथ अपने पर्यावरण को भी संरक्षित रख सकते हैं। जनकल्याण और सामाजिक सहभागिता के जरिये पर्यावरणीय खतरों और पारिस्थितिकीय दुर्लभता को कम करना ही ग्रीन इकोनॉमी है। इसे व्यक्तिगत तौर पर प्रोत्साहित किया जा सकता है।
भवन निर्माण
भवन निर्माण के दौरान ऊर्जा ऑडिट द्वारा घर या ऑफिस की ऊर्जा लागतों में बचत करके हम पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। इसके लिए घर में साज-सज्जा या लैंडस्केपिंग के लिए यदि हम ऐसी चीजों का चयन न करें जिनका पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ता हो तो यह निजी तौर पर बड़ा योगदान होगा। हम बिजली के लिए सौर ऊर्जा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
वानिकी
एक आंकड़े के मुताबिक, कुल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का 20 फीसद केवल वनों के विनाश की वजह से हो रहा है। यदि हम निजी तौर पर पौधा रोपड़ को बढ़ावा दें और वनों का टिकाऊ प्रबंधन करें तो पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार ला सकते हैं। इसके साथ ही हमें जलावन या अन्य जरूरतों में लकड़ी पर निर्भरता को भी कम करना होगा।
परिवहन
वायु प्रदूषण का एक प्रमुख करण बड़ी संख्या में वाहनों का इस्तेमाल भी है। देश की राजधानी दिल्ली में वाहन जनित प्रदूषण की गंभीर समस्या है। यदि हम परिवहन में पूलिंग या सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करें तो पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक असर को कम कर सकते हैं। इससे परिवहन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों में भी कमी आएगी।
अपशिष्ट
किसी भी वस्तु को फेंकने का सीधा सा मतलब है कि उस पदार्थ के दोबारा इस्तेमाल का मौका गवां देना और लैंडफिल से मीथेन नामक पर्यावरण के लिए खतरनाक गैस के उत्पादन को बढ़ावा देना। उपयुक्त पदार्थों के रिसाइकिल और खाद्य अपशिष्ट से कंपोस्ट खाद बनाकर हम न केवल लैंडफिल के असर को कम करते हैं वरन नए उत्पादों के निर्माण से प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को भी कम कर सकते हैं।
मत्स्य उद्योग
समुद्र हमारे भोजन और स्वच्छ हवा की जरूरतों को पूरा करने में सर्वाधिक योगदान देते हैं। सागरों से सबसे ज्यादा आक्सीजन उत्सर्जित होती है लेकिन मानव जनित कचरे (प्लास्टिक) के कारण इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। सागरों से अंधाधुंध मछली के शिकार ने भी भविष्य के खाद्य भंडार के लिए खतरा पैदा किया है। इसके लिए हमें मछली पकड़ने के टिकाऊ और पारंपरिक तरीकों को बढ़ावा देना होगा।
जल
भूजल के अंधाधुंध दोहन ने मानव सभ्यता के सामने बड़ा संकट खड़ा किया है। महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात समेत देश के अधिकांश राज्यों में जलसंकट अब एक आपदा के तौर पर सामने आया है। बड़ी संख्या में आबादी का पलायन हो रहा है। ऐसे में यदि हम जल का इस्तेमाल में कमी लाएं तो हमारे एक छोटे से कदम से इस अनमोल संसाधन का संरक्षण हो सकता है। ब्रश करते वक्त, खाना खाने के बाद या वॉश बेसिन-सिंक का नल बिना काम के खुला मत छोड़ें।
कृषि
आज भी खेती के काम में सबसे ज्यादा भूजल का इस्तेमाल देश में हो रहा है। यदि हम टपक सिंचाई जैसी तकनीकों को इस्तेमाल करें तो आने वाली पीढि़यों के लिए यह एक बड़ा योगदान होगा। इसके साथ ही यदि हम खेती में कीटनाशकों की जगह कार्बनिक खाद का इस्तेमाल करें तो हम धरती को बंजर होने से बचा सकेंगे।
नवीकृत ऊर्जा हम नवीकृत ऊर्जा से जुड़े उत्पादों के इस्तेमाल के साथ साथ, इससे जुड़े कारोबार में भी निवेश कर सकते हैं। इस छोटे से कदम से हम धरती को भविष्य के बड़े संकटों से बचा पाएंगे। हम पढ़ने की टेबल खिड़की के सामने रखें ताकि दिन में नेचुरल लाइट का इस्तेमाल कर पाएं। हम जब भी कमरे से बाहर जाएं तो पंखा और लाइटों को बंद कर दें ताकि बिजली बर्बाद न हो।
नो प्लास्टिक
प्लास्टिक का इस्तेमाल सेहत को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ पर्यावरण को भी गंदा करता है। प्लास्टिक के कचरे ने समुद्री पारिस्थितिकी को गहरा आघात पहुंचाया है। प्लास्टिक के कचरे के कारण बारिश का पानी धरती के भीतर नहीं जा रहा है, इससे भी भूजल स्तर प्रभावित हुआ है। ऐसे में हम एक छोटी पहल कर सकते हैं। जब भी हम बाजार जाएं अपने साथ कपड़े की एक थैली जरूर जाएं। प्लास्टिक बैग को लेने से मना करें।
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