World AIDS Day 2019 : धीरे-धीरे इंसान की जिंदगी के दिन कम करता है एड्स
World AIDS Day 2019 आज विश्व एड्स दिवस है। अभी भी इस बीमारी को लेकर अधिक जागरूकता नहीं है इस वजह से इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाए जाने की जरूरत है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। एड्स एक ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे इंसान को अंदर से खोखला कर देती है, इसलिए ऐसे मरीजों को दुत्कारें नहीं बल्कि प्यार दें। एचआइवी यानि ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस से संक्रमण के बाद की स्थिति एड्स है। एचआइवी संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में आठ से दस साल या कभी-कभी इससे भी अधिक वक्त लग सकता है।
इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का उपहास उड़ाने की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा संक्रमित सुई, खून और अजन्मे बच्चे को उसके मां से भी हो सकता है। आज विश्व ए़ड्स दिवस है। हर साल विश्व भर में इसे मनाया जाता है। इस दौरान तरह-तरह की गतिविधियों और अन्य माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है जिससे वो इस बीमारी की चपेट में न आएं।
छूने, साथ खाने जैसी चीजों से नहीं फैलता एड्स
एचआइवी-एड्स ऐसी बीमारी नहीं है जो छूने, साथ खाने जैसे सहज मानवीय भावनाओं से फैल जाए। छूने और साथ खाने से प्यार फैलता है एड्स नहीं। कुछ समय पहले तक लोगों के मन में यही बात आती थी कि यदि किसी को एड्स है तो उसके पास बैठना नहीं है, उसको छूना नहीं है, उसके साथ खाना-पानी भी नहीं है, कुछ मिलाकर उससे अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था।
अब कुछ सालों की जागरूकता के बाद लोगों के मन में ये बातें खत्म हो सकी हैं। अगर आप भी किसी एचआइवी एड्स पीड़ित के साथ ऐसा भेदभावपूर्ण व्यवहार होते देखें तो एक पल को ठहरें और सोचें अगर आपका कोई बेहद करीब ऐसी बीमारी से ग्रसित होता तो आप क्या करते।
बीमारी से ज्यादा भेदभाव कर रहा परेशान
ऐसा नहीं है कि एड्स से बचाव संभव नहीं है। इससे बचाव संभव है लेकिन एक बार किसी व्यक्ति को यह रोग लग गया तो देर-सबेर उसकी मौत निश्चित है। एड्स की बीमारी धीरे-धीरे इंसान को मौत के आगोश में ले जाती है लेकिन सामाजिक भेदभाव पीड़ित को तिल-तिल मरने पर मजबूर कर देता है। इसकी सजा पीड़ित के परिवार को भी भुगतनी पड़ती है। इससे बुरा और क्या हो सकता है कि एड्स संक्रामक बीमारी नहीं है आज भी अस्पतालों, दफ्तरों और स्कूलों से इस बीमारी से ग्रसित मरीज को निकाल बाहर कर दिया जाता है।
एड्स और टीबी
क्योंकि एड्स मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। इसलिए मरीज को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। साधारण सर्दी-जुकाम भी मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। दुनियाभर में एड्स की वजह से होने वाली मौतों में टीबी का बड़ा हाथ है। जिन लोगों में एचआइवी संक्रमण हो, उनमें टीबी की आशंका 30 गुना अधिक होती है।
एड्स के लक्षण
एचआइवी के लक्षण बेहद सामान्य से हैं, जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं। एड्स में लगातार तेज बुखार, हमेशा थकान व नींद आना, भूख में कमी, रात में सोते समय पसीना आना, दस्त लगना व वजन में कमी होना इसके प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। इस संक्रमण की स्थिति में त्वचा पर चक्कते भी पड़ सकते हैं तथा ग्रंथियों में सूजन आ सकती है। किसी व्यक्ति को अगर खुद के एचआइवी संक्रमित होने का शक हो और ऐसे लक्षण भी दिखें तो उसे एचआइवी संक्रमण की जांच जरूर करा लेनी चाहिए।
एड्स से पीड़ित देश
जानकारी के अनुसार एड्स से पीड़ित दस लाख से अधिक किशोर सिर्फ छह देशों में रह रहे हैं और भारत का नाम उनमें से एक है। शेष पांच देश दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक और तंजानिया हैं। सबसे दुखद स्थिति महिलाओं के लिए होती है। उन्हें इसकी जद में आने के बाद सामाजिक त्रासदी और घर से निष्कासन का दंश भी झेलना पड़ता है।
एक अनुमान के मुताबिक, 1981 से 2007 में बीच करीब 25 लाख लोगों की मौत एचआइवी संक्रमण की वजह से हुई। 2016 में एड्स से करीब 10 लाख लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा 2005 में हुई मौत के से लगभग आधा है। साल 2016 में एचआइवी ग्रस्त 3.67 करोड़ लोगों में से 1.95 करोड़ इसका उपचार ले रहे हैं।
1980 के बाद आई जागरूकता
इस बीमारी की भयावहता का अंदाजा इन मौतों से लगाया जा सकता है। एड्स के बारे में लोग 1980 से पहले जानते तक नहीं थे। भारत में पहला मामला 1996 में दर्ज किया गया था लेकिन सिर्फ दो दशकों में इसके मरीजों की संख्या 2.1 करोड़ को पार कर चुकी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केवल 2011 से 2014 के बीच ही डेढ़ लाख लोगों ने इसके कारण मौत को गले लगाया। भारत में एचआइवी संक्रमण के लगभग 80,000 नए मामले हर साल दर्ज किए जाते हैं। वर्ष 2005 में एचआइवी संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 1,50,000 थी।
सरकारों को नजरिया बदलने की जरूरत
आज के समय जरूरत इस बात की है कि सरकारें इस दिशा में अपना नजरिया बदलें ताकि एड्स जैसी महामारी से मुकम्मल तरीके से मोर्चा लिया जा सके। ज्यादातर मामलों मे एचआईवी संक्रमण होने पर उन्हें घर छोड़ने को कह दिया जाता है। पत्नियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने एचआईवी पॉजिटिव पति का साथ निभाएं लेकिन पति कम ही मामलों में वफादार साबित होते हैं। इस तरह की समस्याओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत है। क्योंकि यह सुखद संदेश है कि लोगों में जागरूकता और प्रयास से संक्रमित मामलों में कमी आ रही है।
पहली बार 1987 में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न ने कल्पना
दुनिया में एड्स आज भी किसी महामारी से कम नहीं है। पहली बार 1987 में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न ने इस दिवस की कल्पना की थी। लोगों को इस महामारी से बचाने और जागरूक करने के लिए 1 दिसंबर को मनाया जाता है। एड्स स्वयं में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति बीमारियों से लड़ने की प्राकृतिक ताकत खो बैठता है। उस दशा में उसके शरीर में सर्दी-जुकाम जैसा संक्रमण भी आसानी से हो जाता है।