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कचरे को ‘सोना’ बनाती हैं महिलाएं, देशभर में अपनाया गया मॉडल

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की महिलाओं का शुरू किया गया डोरटू-डोर कचरा संग्रहण का प्रयोग आज न केवल 450 महिलाओं को स्थायी रोजगार दे रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 09:29 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 09:29 AM (IST)
कचरे को ‘सोना’ बनाती हैं महिलाएं, देशभर में अपनाया गया मॉडल
कचरे को ‘सोना’ बनाती हैं महिलाएं, देशभर में अपनाया गया मॉडल

असीम सेनगुप्ता, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में महिलाओं का समूह बनाकर शुरू किया गया डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण का प्रयोग देश के लिए रोल मॉडल बन गया। महिलाओं के समूह ने कचरे को सोना बनाना सिखाया और संग्रहित कचरे से कबाड़ अलग कर लाखों की कमाई भी कर रही हैं। इससे करीब 450 महिलाओं को स्थाई रोजगार भी मिला हुआ है। वर्तमान में स्वच्छता के इस मॉडल को सर्वश्रेष्ठ बता पूरे देश में अपनाया गया है और महानगरों के साथ ही देशभर के निकायों से अधिकारी यहां का स्वच्छता मॉडल देखने पहुंच रहे हैं। इस मॉडल ने अंबिकापुर को डंपिंग यार्ड फ्री शहर बना दिया है।

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छतीसगढ़ के अंबिकापुर नगर निगम में सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत पहला एसएलआरएम सेंटर अप्रैल 2015 में आरंभ किया गया था। 48 वार्डों के शहर में 15 अगस्त, 2016 से स्वच्छ अंबिकापुर मिशन सहकारी समिति द्वारा हर घर से कचरा उठाया जा रहा है। साथ ही कचरे की छंटाई कर कबाड़ को अलग किया जा रहा है औ अपशिष्ट से खाद भी बनाई जा रही है। इस सेवा के लिए प्रतिमाह 50 रुपये का यूजर चार्ज लिया जा रहा है।

तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सैन की पहल पर शुरू हुई इस व्यवस्था के लिए शासन से 18 से 19 लाख रुपये लेना पड़ता था, लेकिन अब समिति लगभग पूरी तरह स्व वित्त पोषित हो गई है। वर्तमान में शहर में लगभग दो दर्जन एसएलआरएम सेंटर, 105 मैन्यूअल रिक्शा, 37 बैट्री चलित रिक्शा संचालित हैं। प्रतिदिन दो टन कम्पोस्ट खाद बनाने का प्लांट विकसित हो चुका है। इस व्यवस्था ने शहर में डंपिंग यार्ड फ्री शहर बना दिया। वर्षों पुराने डंपिंग यार्ड को स्वच्छता चेतना केंद्र (पार्क) के रूप में विकसित किया गया है,जहां कचरे की दुर्गंध की जगह फूलों की खुशबू फैली है।

तीन वर्ष में दोगुना हुआ मानदेय

स्वच्छ अंबिकापुर मिशन सहकारी समिति से जुड़ीं महिलाओं का मानदेय भी लगातार बढ़ा एवं तीन वर्षों में दोगुना हो गया है। शहर के 27200 मकानों, 3200 संस्थाओं से यूजर चार्ज के साथ प्रतिमाह 15 से 16 लाख तथा उपयोगी कचरों, कम्पोस्ट खाद की बिक्री से पांच से छह लाख की आय अर्जित हो रही है, इससे महिलाओं को छह हजार प्रतिमाह का मानदेय मिल रहा है।

शहर को दी नई पहचान

एसएलआरएम व्यवस्था ने शहर को नई पहचान दी। वर्ष 2015 व 2016 में लगातार स्वच्छ भारत मिशन के तहत भी अवॉर्ड मिला। वर्ष 2016 में ही वी. रामाराव स्वच्छता पुरस्कार, वर्ष 2017 में दो लाख की आबादी वाले शहरों की स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर देश में नंबर-1 रहा। बेस्ट स्वयं सहायता समूह के राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूनाइटेड नेशन का थ्री-आर पुरस्कार, वर्ष 2018 में इनोवेशन एंड बेस्ट प्रेक्टिसेज में भी स्वच्छ सर्वेक्षण का पहला पुरस्कार मिला है। 


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