आरक्षण की लड़ाई जारी रखें महिलाएं
अफ्रीकी संसदों की महिला पीठासीन अधिकारियों का कहना है कि भारतीय महिलाओं को संसद में आरक्षण के लिए लड़ाई जारी रखनी चाहिए, क्योंकि महिलाओं की अधिक भागीदारी से ऐसी नीतियां बन सकेंगी, जिनसे देश का सामाजिक ताना-बाना बदल सकता है। स्वाजीलैंड की सीनेट की अध्यक्ष जिलाने टी ज्वाने ने कहा कि मुझे पता
नई दिल्ली। अफ्रीकी संसदों की महिला पीठासीन अधिकारियों का कहना है कि भारतीय महिलाओं को संसद में आरक्षण के लिए लड़ाई जारी रखनी चाहिए, क्योंकि महिलाओं की अधिक भागीदारी से ऐसी नीतियां बन सकेंगी, जिनसे देश का सामाजिक ताना-बाना बदल सकता है।
स्वाजीलैंड की सीनेट की अध्यक्ष जिलाने टी ज्वाने ने कहा कि मुझे पता है कि महिला आरक्षण विधेयक भारतीय संसद में लंबित है और (महिलाओं को) मेरी सिर्फ यह सलाह है कि जबतक यह विधेयक पारित न हो जाए, शांत न बैठे। ज्वाने, अफ्रीका की पांच महिला पीठासीन अधिकारियों के साथ राजधानी में इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन द्वारा आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लेने यहां आई हुई थीं। इस अंतरराष्ट्रीय संगठन में 162 देश शामिल है।
महिलाओं के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटे आरक्षित करने के लिए संसद में पेश होने के 14 साल बाद यह विधेयक 2010 में राज्यसभा में तो अंतत: पारित हो गया। लेकिन लोकसभा में यह अभी भी लंबित है। ज्वाने ने कहा कि फिलहाल संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नगण्य है, लेकिन हमने 30 प्रतिशत का एक बेंचमार्क रखा है और इसके लिए वाकई में संघर्ष करना है। हम अपने बच्चों को इस तरह का अवसर देना चाहते है, जहां संसद में पुरुषों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व समान हो।
अन्य अफ्रीकी देशों की पीठासीन अधिकारियों ने भी इस बात पर जोर दिया कि संसद और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण यह तय कराने के लिए महत्वपूर्ण है कि नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी हो। तंजानिया नेशनल एसेंबली की पीठासीन अधिकारी एन्ना मकिंदा ने भी कहा कि भारत सहित अन्य देशों को उन देशों से सीख लेनी चाहिए, जहां महिला आरक्षण लागू है।
मकिंदा ने कहा कि संसद में आरक्षण से हमारे देश में एक सामाजिक बदलाव आया है। अन्य देश और भारत इससे सीख सकते है। मकिंदा ने कहा कि तंजानियाई संसद में महिलाओं के लिए 36 प्रतिशत आरक्षण है और कई महिलाएं राजनीति से जुड़ने के लिए आगे आ रही है। जिंबावबे की सीनेट की अध्यक्ष एडना मेजोंगवे के अनुसार, वैश्रि्वक स्तर पर बहुत कम महिलाएं संसद में है। उन्होंने कहा कि वैश्रि्वक स्तर पर मात्र 20 प्रतिशत महिलाएं संसद में है। जबकि वहां कम से कम एक-तिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए। महिलाएं स्वाभाविक रूप से राष्ट्र निर्माता है और यदि संसद में अधिक महिलाएं होंगी तो उसका बेहतर परिणाम होगा।
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