अधिकार मिले पर उन्नति अधूरी, आधी दुनिया का पूरा सच
महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए कई कानून और फैसले आए। लेकिन उनका महिलाओं को पूरा लाभ नहीं मिल पाया है। महिलाओं की मौजूदा स्थिति यही बयां करती है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। डेढ़ सौ साल पहले 26 जुलाई 1859 को केरल में महिलाओं को वक्ष ढकने का ऐतिहासिक हक मिला था। डेढ़ सौ साल में भारतीय नारी को बराबरी पर लाने के लिए तीन दर्जन से ज्यादा कानूनों और अनगिनत अदालती फैसलों की सौगात मिली। लेकिन यह सवाल बाकी है कि क्या महिलाओं ने बराबरी का मुकाम पा लिया है?
असम में छोटी बच्ची की विधायक मां का पत्र लिख कर सदन के पास फीडिंग रूम की मांग करना और मंदिर और मजारों में प्रवेश का हक पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना बताता है कि कसर बाकी है। वर्ल्ड बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती ही कि आगे बढ़ने के लिए भारतीय महिलाओं को ही सहारे की जरूरत नहीं है, बल्कि देश को भी प्रगति करने के लिए उनकी साझेदारी की दरकार है।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि मां से करियर और बच्चे में चुनाव करने को नहीं कहा जा सकता, लेकिन वास्तविकता अभी भी यही है, ज्यादातर महिलाएं इसी चयन में फंस कर प्रगति को विराम लगा देती हैं। कामगार महिलाओं में भारत की स्थिति दुनिया में सबसे खराब है। 131 देशों की सूची में भारत 120वें स्थान पर है। कानूनी अधिकारों के बावजूद सामाजिक बंधन, घरेलू जिम्मेदारियां और पुरुष प्रधान सोच महिलाओं की प्रगति में आज भी बाधा बनी हैं। वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चे पालना स्त्री पुरुष की साझी जिम्मेदारी हो। कृषि क्षेत्र मे कम हुए काम की जगह वैकल्पिक काम की व्यवस्था नहीं है। सुरक्षा बहुत बड़ा कारण है।
सरकार ने इसका संज्ञान लिया और मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम लाई जिसमें मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से बढ़ा कर 26 सप्ताह की गई है। साथ ही आफिस परिसर में क्त्रेच सुविधा के प्रावधान हैं। उम्मीद है कि इससे मां बनना नौकरी छोड़ने का कारण नहीं बनेगा। हालांकि स्थित बदलने में अभी समय लगेगा।
हाल में महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए कई कानून और फैसले आए। महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन शोषण से बचाने के लिए दो दशक पहले कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किये थे, सरकार ने अब उसे कानून बनाया है। सरकार ने प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं का पैनल बनाया है जो इस कानून के तहत बनी आंतरिक शिकायत समितियों को प्रशिक्षण देता है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों की समितियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। राज्य चाहें तो वे भी पैनल की मदद ले सकते हैं।
दहेज प्रताड़ना के खिलाफ कानून बहुत पहले से है, लेकिन दुरुपयोग की इतनी शिकायतें आयीं कि सु्प्रीम कोर्ट ने जुलाई में दिशा निर्देश जारी किये, जिसमें कहा कि दहेज प्रताड़ना की शिकायतों की जांच के लिए हर जिले में परिवार कल्याण समिति बनेगी और समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपी की गिरफ्तारी न हो। अब कोर्ट में नई अर्जी आयी है, जिसमें कहा गया है कि आदेश से कानून कमजोर हो गया है। इस पर कोर्ट ने सरकार से स्थिति का आकलन करने को कहा है।
तलाक में बराबरी के लिए सरकार को बनाना होगा कानून
कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को एक बार में तीन तलाक से मुक्ति मिली है, लेकिन एकतरफा और मनमाने तलाक से नहीं। अभी भी मुसलमानों में तलाक का महती हक पुरुषों के ही पास है। महिलाओं को इसमें में बराबरी का हक दिलाने के लिए सरकार को कानून बनाना होगा। कोर्ट ने पर्सनल ला के कारण तलाक के पूरे मसले को नहीं छेड़ा, लेकिन सरकार इस बारे में कानून बना सकती है। दो जजों ने अपने फैसले में सरकार से कानून बनाने को कहा है ऐसे में सरकार के पास कोर्ट के निदेश का सहारा भी है।
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