सुनीता बनीं सावित्री, अपहृत जवान को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ा ले आई, जानें पूरी कहानी
पत्नी और बेटी के दर्द में सहभागी बनकर सामने आए ग्रामीणों के दबाव के चलते नक्सलियों को आखिरकार जनअदालत में पुलिस के जवान संतोष कट्टम को रिहा करना पड़ा।
गणेश मिश्रा, बीजापुर। जिस प्रकार सावित्री यमराज के मुंह से अपने पति को खींच कर ले आई थी, ठीक उसी प्रकार इस पत्नी भी अपने पति को मौत के मुंह से खींच लाई। उसकी आंखों पर पट्टी बंधे सात दिन बीत चुके थे। इसके चलते चेहरा हल्का सूज गया था। दोनों हाथ पीछे से बंधे हुए थे। इसी हालत में जंगल-पहाड़ी का ना जाने कितने किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय कर चुके थे। पैरों में जगह-जगह जख्म हो गए थे। चेहरे पर एक अनहोनी का खौफ हमेशा रहता था कि ना जाने किस पल मौत निगल ले। लेकिन, पत्नी और बेटी के दर्द में सहभागी बनकर सामने आए ग्रामीणों के दबाव के चलते नक्सलियों को आखिरकार जनअदालत में पुलिस के जवान संतोष कट्टम को रिहा करना पड़ा।
वार्षिक मेला से अपहरण कर ले गए थे नक्सली
सुकमा जिले के जगरगुंडा निवासी संतोष की पदस्थापना पुलिस विभाग में इलेक्ट्रीशियन के तौर पर छत्तीसगढ़ के भोपालपटनम में है। वह छुट्टी लेकर बीजापुर आया था, तभी कोरोना वायरस के प्रसार के कारण लगे लॉकडाउन में फंस गया। इस बीच चार मई को गोरना में आयोजित वार्षिक मेला देखने के लिए गया था। मंदिर में दर्शन के बाद दोस्त का इंतजार कर रहा था कि तभी ग्रामीण वेशभूषा में मौजूद नक्सलियों को उस पर शक हो गया। टीशर्ट और आइकार्ड से उसकी शिनाख्त पुलिस के रूप में होते ही नक्सलियों ने उसे अगवा कर लिया। खबर गांव तक पहुंचते ही कोहराम मच गया।
परिजनों से मिलते ही छलक आई आंखें
पत्नी सुनीता पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। पंद्रह वर्षीय बेटी भावना के आंसू थम नहीं रहे थे। पूर्व में अपहृत जवानों की जनअदालतों में हुई नृशंस हत्याओं को याद कर सुनीता और परेशान थी। नक्सली संतोष को कहां ले गए, इसका पता लगाने के लिए वह चार दिन तक जंगलों की खाक छानती रही। खबर दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नईदुनिया तक पहुंची तो सुनीता से मुलाकात की और बताया कि अंदरूनी गांवों के ग्रामीणों से संपर्क करने से रास्ता खुल सकता है। सुनीता प्रयास में जुट गई।
जनअदालत में जनदबाव के बाद नक्सली नेताओं को छोड़ने का लेना पड़ा फैसला
इसी बीच भीतर (जंगल) से सूचना आई कि नक्सली सोमवार को जनअदालत लगाने वाले हैं। इसमें संतोष की पत्नी, उसकी बेटी और करीब डेढ़ हजार ग्रामीणों को बुलाया गया। यहां संतोष के समर्थन में ग्रामीण खुलकर सामने आए। उन्होंने बताया कि संतोष ने जनता पर कभी भी अत्याचार नहीं किया। इससे नक्सली नेताओं पर दबाव बन गया, क्योंकि अंतत: उनके लिए भी ग्रामीणों का साथ जरूरी है। आखिरकार उन्हें संतोष को रिहा करने का निर्णय लेना पड़ा। लेकिन, इस दौरान नक्सलियों ने यह चेतावनी जरूर दी कि वह अब पुलिस की नौकरी छोड़कर गांव में खेती करे।
ऊपर वाले ने पत्नी और बेटी की सुन ली
संतोष ने बताया कि उसे नक्सली कहां-कहां ले गए, वह नहीं जानता। कभी किसी गांव में नहीं ठहराया गया। जंगल में ही सोना पड़ता था। खाने में चिड़िया का मांस और सूखी मछली देते थे। नक्सली लीडर पूछताछ करते समय भी आंखों की पट्टी नहीं हटाते थे। डबडबाई आंखों से संतोष ने कहा कि आज वह परिवार के साथ है, यही बहुत है। ऊपर वाले ने पत्नी और बिटिया की गुहार सुन ली।