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जानिए- क्यों नजरबंद किए गए पांच माअोवादी विचारक, क्या है इन पर आरोप

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नजरबंद पांच माअोवादी विचारकों की रिहाई से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 11:45 AM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 12:05 PM (IST)
जानिए- क्यों नजरबंद किए गए पांच माअोवादी विचारक, क्या है इन पर आरोप
जानिए- क्यों नजरबंद किए गए पांच माअोवादी विचारक, क्या है इन पर आरोप

नई दिल्ली (जेएनएन)। महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नजरबंद पांच माअोवादी विचारकों की रिहाई से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। अदालत ने पांचों वामपंथी विचार और मानवाधिकार कार्यकर्ता वरवर राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की नजरबंदी अगले चार हफ्ते के लिए बढ़ा दी है। ये सभी पिछले 29 अगस्त से अपने घरों में नज़रबंद हैं। जस्टिस खानविलकर ने अपने और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की ओर से पढ़े गए फैसले में पांचों माअोवादी विचारकों की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने और विशेष जांच दल गठित करने से इनकार किया। जानिए- कौन है ये माअोवादी विचारक...

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आइआइटी कानपुर से पास आउट हैं सुधा भारद्वाज

सुधा भारद्वाज गणित से एमएससी हैं। कानपुर से आइआइटी क्लीयर करने वाली सुधा बीते 30 वर्षों से ट्रेड यूनियनों और श्रमिकों के लिए काम करती रही हैं। वह भिलाई के श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ जनमुक्ति मोर्चा में भी सक्रिय रहीं हैं। सुधा की मां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर थीं लेकिन उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी और भारत चली आईं। दो वर्ष पूर्व तक सुधा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहती थीं, लेकिन वर्तमान में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर कार्यरत हैं। वह पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की राष्ट्रीय सचिव हैं। वर्ष 2007 से बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वकालत कर रही हैं और छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की एक सदस्य के रूप में मनोनीत हैं। इसके अलावा कई मानवाधिकार रक्षकों के पक्ष में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी पैरवी करती रही हैं। हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कोंडासावली गांव (सुकमा, छत्तीसगढ़) में एक मामले की जांच में उनकी सहायता मांगी थी।

इनको भी किया गया गिरफ्तार

वरवर राव

तेलंगाना के वरवर राव 1957 से कविताओं के माध्यम से समाज के कमजोर तबकों में ऊर्जा का संचार करने वाले वामपंथी विचारक और वीरासम (रिवोल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन) के संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें सबसे पहले 1973 में मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उन्हें 1975 से लेकर 1986 तक कई मामलों में गिरफ्तार किया गया। 1986 के रामनगर षड्यंत्र मामले में गिरफ्तार होने के 17 साल बाद उन्हें 2003 में इस मामले में रिहाई मिली। 19 अगस्त 2005 को आंध्र प्रदेश सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत उन्हें फिर से गिरफ्तार करके हैदराबाद स्थित चंचलगुडा जेल भेजा गया। बाद में 31 मार्च 2006 को सार्वजनिक सुरक्षा कानून के खत्म होने सहित राव को अन्य सभी मामलों में जमानत मिल गई।

गौतम नवलखा

दक्षिण दिल्ली के नेहरू विहार निवासी गौतम नवलखा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दों पर काम किया है। वर्तमान में नवलखा अंग्रेजी पत्रिका इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) में सलाहकार संपादक के तौर पर भी काम कर रहे हैं। नवलखा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े हैं। उन्होंने इंटरनेशनल पीपल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक भी तौर पर काम किया है। वह कश्मीर मुद्दे पर जनमत संग्रह का समर्थन कर चर्चा में रहे हैं और इसी वजह से मई 2011 में श्रीनगर एयरपोर्ट पर उन्हें रोक लिया गया था और प्रवेश से इनकार कर दिया गया था। कश्मीर की तरह ही छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी सेना की कार्रवाई शुरू होने पर गौतम नवलखा माओवांदी आंदोलनों पर भी नजर रखने लगे थे।

अरुण फरेरा

मुंबई स्थित सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओ) की संचार और प्रचार इकाई के प्रमुख है। उन्हें वर्ष 2014 में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। इसी दौरान ‘कलर्स ऑफ केज : ए प्रीजन मेमोर्स’ नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें उनके पांच साल तक जेल में रहने का विवरण है।

वेरनन गोंजाल्विस

मुंबई विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट और रूपारेल और एचआर कॉलेज के पूर्व प्रवक्ता रहे हैं वेरनन गोंजाल्विस। उन पर नक्सलियों से जुड़े होने का आरोप है। उन पर 20 आरोप थे, लेकिन जेल में छह साल गुजारने के बाद सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।

माओवादियों के दो पत्रों के कारण ही हुई पुलिस कार्रवाई

कई राज्यों में छापे के दौरान पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी इसलिए संभव हो पाई क्योंकि माओवादियों के दो गोपनीय पत्र पुलिस के हाथ पहले ही लग गए थे। इन पत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हत्या की योजना का जिक्र था। इन पत्रों के जरिये ही मंगलवार को पकड़े गए वामपंथियों के माओवादियों के साथ रिश्ते उजागर हुए।

अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों के जो दो पत्र पुलिस के हाथ लगे थे, वे दरअसल शीर्ष नक्सली नेताओं को भेजे गए थे। इनमें से 2016 के एक पत्र के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह की हत्या करने को लेकर शीर्ष नक्सलियों के बीच चर्चा हुई थी। जबकि 2017 के दूसरे पत्र में राजीव गांधी हत्याकांड की तर्ज पर ही मोदी को मारने की योजना का जिक्र था। इसमें कहा गया था कि राजीव गांधी की जिस तरह से हत्या की गई थी, उसी तरह से मोदी की भी उनके किसी रोड शो के दौरान हत्या कर दी जाएगी।

इस पत्र में राजग सरकार को खत्म करने के बारे में कुछ शीर्ष माओवादी कॉमरेडों के ठोस सुझावों का भी जिक्र किया गया था। इसी पत्र में अमेरिकन एम-4 राइफल और गोला-बारूद खरीदने के लिए करोड़ों रुपये जुटाने के तौर-तरीकों की भी चर्चा की गई थी। अधिकारियों के मुताबिक, माओवादियों द्वारा आपस में भेजा गया दूसरा पत्र किसी कामरेड प्रकाश को संबोधित था। इस पत्र को दिल्ली स्थित वामपंथी कार्यकर्ता रोना विल्सन के आवास से 6 जून को बरामद किया गया था। एक अधिकारी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी, शाह और राजनाथ की हत्या की योजना वाले पत्रों को दरअसल अप्रैल में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में चलाए गए एक नक्सल विरोधी अभियान के दौरान ही बरामद किया गया था। उक्त अभियान में 39 माओवादी मारे गए थे।  


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