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Moonlighting Trend: आखिर क्यों 'मूनलाइटिंग' के चलन पर छिड़ा है विवाद

अपनी नौकरी के अलावा किसी अन्य कामकाज से धन कमाने के इस चलन को मूनलाइटिंग यानी दोहरी नौकरी की संज्ञा दी गई है और इसे दिग्गज आइटी कंपनियों जैसे कि इन्फोसिस विप्रो और आइबीएम ने अनैतिक ठहराया है। हालांकि हर कोई मूनलाइटिंग का विरोधी नहीं है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Sep 2022 02:35 PM (IST)Updated: Wed, 21 Sep 2022 02:35 PM (IST)
Moonlighting Trend: आखिर क्यों 'मूनलाइटिंग' के चलन पर छिड़ा है विवाद
दावा है कि कोरोना वायरस के तीखे प्रसार के दौर में अपने शीर्ष पर जा पहुंची मूनलाइटिंग। प्रतीकात्मक

अभिषेक कुमार सिंह। कोविड काल के प्रतिबंधों के कारण घर से कामकाज (वर्क फ्राम होम) को हर देश की सरकारों और अधिकांश कंपनियों ने अहमियत दी। दुनिया ने देखा कि मोबाइल-कंप्यूटर और इंटरनेट की बदौलत ठहरी हुई दुनिया में भी ढेर सारे कार्य घर बैठे चुटकियों में संपन्न होते रहे। इसके लिए खास तौर से सूचना प्रौद्योगिकी यानी आइटी कंपनियों की सराहना की गई। देश-विदेश की तमाम जानी-मानी आइटी कंपनियों में कामकाज का वर्क फ्राम होम माडल अब भी जारी है।

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माना जा रहा है कि इस दौरान कई कर्मचारी कंपनी से मिलने वाले अपने नियमित वेतन से बाहर भी कुछ अतिरिक्त आय कमा रहे हैं, ताकि बढ़ती महंगाई और नौकरी की अस्थिरता आदि मामलों में कुछ राहत अर्जित की जा सके। अपनी नौकरी के अलावा किसी अन्य कामकाज से धन कमाने के इस ट्रेंड यानी चलन को अंग्रेजी में मूनलाइटिंग की संज्ञा दी गई है। हालांकि इसे दिग्गज आइटी कंपनियों जैसे कि इन्फोसिस, विप्रो और आइबीएम ने अनैतिक ठहराया है। वैसे हर कोई मूनलाइटिंग का विरोधी नहीं है। एप-आधारित फूड सर्विस देने वाली कंपनी स्विगी और एक अन्य कंपनी क्रेड ने इस पर कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई है। यानी अगर उनके कर्मचारी आफिस में तय कामकाज के घंटे के मुताबिक नौकरी करने के बाद बाहर कोई अन्य काम करते हैं तो इसे ये कंपनियां नाजायज नहीं मानतीं। साफ है कि दुनिया मूनलाइटिंग के विषय को लेकर बंट गई है। खास तौर से प्रबंधन के स्तर पर कंपनियों को लग रहा है कि ऐसा करके कर्मचारी उन्हें धोखा दे रहे हैं। वे कंपनी के प्रति वफादार नहीं हैं, पर क्या सच में ऐसा है?

क्या है मूनलाइटिंग : वैसे तो किसी दफ्तर या निजी कंपनी में कर्मचारियों की नियुक्ति के वक्त ही निर्धारित कर दिया जाता है कि उनकी नौकरी कितने घंटे की होगी? और उनके कामकाज की शर्तें क्या होंगी? कर्मचारियों से अपेक्षा की जाती है कि कामकाज के लिए तय घंटों और नौकरी की शर्तों एवं नियमों के मामले में वे कोई अनुशासनहीनता नहीं दर्शाएंगे और नैतिकता के दायरों से बाहर नहीं जाएंगे। यानी वे दफ्तर आने के बाद तय घंटों के लिए दिए गए काम को पूरे समर्पण से निपटाएंगे।

ड्यूटी खत्म होने के बाद कर्मचारी अपने बचे हुए समय और सप्ताहांत में क्या करते हैं, प्रायः इसे लेकर कंपनियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। ऐसे में ड्यूटी खत्म होने के बाद दुनिया भर में कर्मचारी अपनी दक्षता (स्किल) और क्षमता के मुताबिक कोई अन्य काम भी करते हैं, ताकि वे कुछ अतिरिक्त आय अर्जित कर सकें। इस पूरे ट्रेंड को मूनलाइटिंग का नाम दिया गया है। कोविड काल से पहले भी यह चलन बरकरार रहा है, लेकिन कोरोना वायरस के तीखे प्रसार के दौर में जब ज्यादातर कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम का मौका मिला, दावा है कि उस दौर में मूनलाइटिंग अपने शीर्ष पर जा पहुंची।

ऐसा होने का कारण यह है कि दफ्तर आने-जाने में लगने वाले समय और श्रम की बचत ने कर्मचारियों को कुछ और काम करने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन समय और श्रम की बचत ही मूनलाइटिंग की अकेली वजह नहीं है। कई बार कर्मचारियों को जब उनके संस्थान में मन-मुताबिक काम और जिम्मेदारी नहीं मिलती तो वे अपने स्किल का इस्तेमाल करने के लिए कोई वाजिब जगह तलाशते हैं। इसके लिए जब उन्हें वेतन से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है तो स्थिति सोने पर सुहागे वाली हो जाती है। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लें कि बैंक में मैनेजर या कैशियर हास्य-विनोद करने में पारंगत है।

ऐसे कर्मचारी के लिए बैंक में स्टैंडअप कामेडी करने के लिए न तो कोई प्रोत्साहन मिलेगा और न ही अतिरिक्त आय। ऐसे में यदि वह किसी फन-क्लब में जाकर या यूट्यूब पर अपना कामेडी चैनल बनाकर लोगों को हंसाता है तो इससे वह अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल करते हुए आय भी अर्जित कर सकता है। कई बार ऐसे कर्मचारी अंततः अपने मन के मुताबिक चुने हुए पेशे में चले जाते हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब कोई बैंकर प्रख्यात लेखक बन गया या आइटी इंजीनियर फिल्म निर्माता बनकर अपने मनोनुकूल क्षेत्र में चला गया।

निश्चय ही इसकी शुरुआत कई बार मूनलाइटिंग से होती है, जिसे लेकर इधर सबसे पहले आइटी कंपनियों ने आपत्ति दर्ज कराई है। इस संबंध में जहां आइटी कंपनी इन्फोसिस ने मूनलाइटिंग को दोहरी नौकरी (टू टाइमिंग) कहते हुए आलोचना की है, वहीं विप्रो के प्रबंधन ने इसे साफ तौर पर धोखाधड़ी ठहराया है। सवाल है कि आखिर इसे लेकर इधर ही चर्चा क्यों हो रही है? कंपनियों के विरोध का कारण : असल में कोविड काल में ज्यादा चलन में आई वर्क फ्राम होम अवधारणा ने कंपनियों के प्रबंधकों के मन में यह शंका पैदा कर दी कि कहीं उनके कर्मचारी कामकाज के बाद और ड्यूटी के दौरान ही दूसरे काम तो नहीं पकड़ लिए हैं।

ऐसा खासकर उन क्षेत्रों में ज्यादा हुआ, जहां आपूर्ति के मुकाबले मांग ज्यादा है। चूंकि कोविड काल में प्रत्येक कंपनी को आइटी पेशेवरों की जरूरत थी, लेकिन उतनी संख्या में कर्मचारी उपलब्ध नहीं थे। ऐसे में आइटी पेशेवरों के लिए कामकाज के अतिरिक्त अवसर पैदा हुए। साथ ही दफ्तर में अधिकारियों और प्रबंधकों की निगरानी में रहने वाले कर्मचारी अब अपने घरों से काम निपटा रहे थे। वहां उनकी निगरानी संभव नहीं थी, जिससे कर्मचारियों के लिए भी दूसरा कोई काम करना आसान हो गया। हालांकि जरूरी नहीं कि इसके लिए वे अपनी नियोक्ता कंपनी से कोई धोखाधड़ी ही कर रहे हों। दफ्तर की ड्यूटी के बाद बचने वाले समय-श्रम के साथ मनचाहे काम को करने के लिए मिली आजादी इसकी बड़ी वजह हो सकती है। किंतु कई आइटी कंपनियों के प्रबंधन ने इस चलन को नाजायज ही ठहराया है।

दरअसल आज ज्यादातर आइटी कंपनियां कुशल श्रम से वंचित हैं, जिससे उनके प्रबंधक दबाव महसूस कर रहे हैं। इसके अलावा कोविड काल में विदेश से मिलने वाली परियोजनाओं में या तो कमी आई है या फिर उनका मूल्य घटा दिया गया है। इससे आइटी कंपनियों की आय में गिरावट हुई है। हाल में कई आइटी कंपनियों ने अपने यहां कर्मचारियों की छंटनी तक की है। हालांिक जरूरी नहीं कि सभी कंपनियां मूनलाइटिंग को एक खराब चलन मानती हों। एकेडमी आफ मैनेजमेंट जर्नल में पिछले साल प्रकाशित एक अमेरिकी रिपोर्ट में दावा किया गया कि साइड-जाब से कई कर्मचारी खुद को ज्यादातर ताकतवर और क्षमतावान महसूस करते हैं, जिसका सकारात्मक असर उनकी मूल नौकरी पर होता है। वहां वे ज्यादा लगन से काम करने लगते हैं, पर कर्मचारी नौकरी से बाहर कोई साइड-जाब या साइड बिजनेस क्यों तलाशते हैं, इसके कई अन्य कारण हैं?

मूनलाइटिंग के कारण : अधिकांश आइटी कंपनियों के दफ्तर बेंगलुरु, हैदराबाद या गुरुग्राम जैसे शहरों में हैं। वहां रहन-सहन काफी महंगा है। इस महंगाई से तालमेल बिठाने के लिए बहुतेरे कर्मचारी मूनलाइटिंग में हाथ आजमाते हैं, ताकि रोजमर्रा के खर्चे निकाले जा सकें। इसके अलावा इसी तरह कई कंपनियों में काम का दबाव इतना ज्यादा है कि कर्मचारी 40 साल की उम्र से पहले अपना कोई बिजनेस (मसलन स्टार्टअप) तैयार करके नौकरी छोड़ देना चाहते हैं। स्टार्टअप बनाने के लिए बड़ी पूंजी चाहिए, जो उन्हें नौकरी से बाहर दूसरे काम के लिए प्रेरित करती है। याद होगा कि वर्ष 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना करने वाले सचिन बंसल और बिन्नी बंसल आइटी कंपनियों में ही काम करते थे। वहां काम करते हुए मूनलाइटिंग ने ही उन्हें फ्लिपकार्ट जैसी स्टार्टअप कंपनी खड़ी करने का अवसर मुहैया कराया। यानी खुद का बास बनने की ललक भी कर्मचारियों को मूनलाइटिंग के लिए प्रेरित करती है।

आम तौर पर किसी भी नौकरी (निजी या सरकारी) में एक कर्मचारी को एक औसत रहन-सहन और रोजमर्रा के खर्च के लिए कोई दूसरा काम करने की जरूरत नहीं होती है। किसी भी नौकरी में कर्मचारियों से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे अपने समय, योग्यता और प्रतिभा का इस्तेमाल मूल नौकरी यानी नियोक्ता के हित में ही करेंगे।

अब तो कई कंपनियां ठेके पर रखे जाने वाले अपने कर्मचारियों के अनुबंध (जाब कांट्रैक्ट) में यह साफ तौर पर लिखती हैं कि कर्मचारी अपना बौद्धिक योगदान भी कंपनी के हित में करेगा, बाहर नहीं। हालांकि अनुबंध में हितों के टकराव, गोपनीयता और काम के घंटों के दौरान कोई बाहरी कार्य नहीं लेने की शर्त के साथ कुछ कंपनियां इसकी छूट देती हैं कि उनके कर्मचारी चाहें तो बचे समय का इस्तेमाल मूनलाइटिंग के संदर्भ में कर सकते हैं। शर्त यही है कि इसका असर उनकी मूल या नियमित नौकरी पर नहीं पड़ना चाहिए। भारत के फैक्ट्रीज एक्ट में एक साथ दो नौकरी करने पर रोक है।

यही कारण है कि जब कोई कर्मचारी दो या ज्यादा नौकरी करते पकड़ा जाता है तो उसे मूल नौकरी गंवानी पड़ती है, लेकिन श्रम की इसी दुनिया में एक चीज है फ्रीलांसिग-जो मूनलाइटिंग का आधार है और अर्से से कायम है। आठ से दस घंटे की नौकरी के बाद बचे समय में या सप्ताहांत में अगर कोई व्यक्ति नियमित नौकरी के बाहर बिना कोई नियम तोड़े अपनी मर्जी का कोई अन्य काम करता है तो इस प्रकार वह अतिरिक्त आय अर्जित करने से ज्यादा अपनी प्रतिभा का वाजिब इस्तेमाल कर रहा होता है।

जरूरी नहीं है कि फ्रीलांसिग के तहत कोई आइटी इंजीनियर किसी आइटी प्रोजेक्ट पर ही ऐसे काम करे, हो सकता है कि वह कोई लेख लिखे या फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम करे। एक्सेल शीट तैयार करना, वेबसाइट बनाना, डबिंग करना, मार्केटिंग एवं कंसल्टेंट के रूप में कोई बाहरी प्रोजेक्ट लेना सिर्फ एक कर्मचारी के लिए ही आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है, बल्कि कंपनियां भी ऐसे असंख्य काम आउटसोर्स करती हैं। हैरानी है कि जो आइटी कंपनियां मूनलाइटिंग का आज विरोध कर रही हैं, वे विदेश से आउटसोर्स किए गए कामकाज के बल पर ही फूली-फली हैं।

[संस्था आइएफएस ग्लोबल से संबद्ध]


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