आखिर किस वजह से झारखंड में जनता ने सीएम को हराकर एक निर्दलीय को बनाया विजयी
झारखंड विधानसभा चुनाव में सीएम को हराकर लोगों ने उनकी जगह एक निर्दलीय को जिता दिया। इसकी वजह जानना बेहद जरूरी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। झारखंड के जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से अपनी हार के कारणों की पड़ताल करते समय रघुवर दास के समक्ष कार्यकर्ताओं की जो भावनाएं प्रकट हुईं, उसका निष्कर्ष किसी भी मुख्यमंत्री के लिए आत्मसात करना निहायत जरूरी है। सार यह कि जनमन की थाह लेते रहिए, वरना सियासी जमीन खिसक जाएगी। जनता पांच बार से विधायक निर्वाचित होते आ रहे और मुख्यमंत्री के रूप में स्थायी सरकार का नेतृत्व करने वाले रघुवर दास की जगह यदि किसी निर्दलीय प्रत्याशी को अपना प्रतिनिधि चुनती है तो इसके निहितार्थ गहरे हैं।
एक तो यह कि सत्ता संचालन में स्वयं को इस तरह लीन करने से बचना चाहिए कि आम जनता से सीधा संपर्क ही खत्म हो जाए। कार्यकर्ताओं से संवादहीनता चुनाव के वक्त भारी पड़ती है। रघुवर दास के विधानसभा क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यहां की जनता ने मुख्यमंत्री के बदले निर्दलीय को चुन लिया। आखिर ऐसा निर्णय जनता ने क्यों लिया? जो भी कारण हो, सरकार, जिसके मुखिया रघुवर दास थे, के बारे में ऐसी धारणा बनती गई कि यह आम लोगों की जगह खास वर्ग को तवज्जो दे रही है।
ऐसी स्थिति तब बनती है, जब कार्यकर्ताओं और आम जनता से संवाद में कमी आ जाए। संदेश यह कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को जनता के साथ सरल संपर्क बनाए रखना आवश्यक है। साथ ही, किसी भी ऐसे समूह को बनने से रोकना जरूरी है, जो आमलोगों से संवाद एवं संपर्क में अवरोध बनें। जनता किसी प्रतिनिधि को केवल इसलिए नहीं चुनती है कि वह उसके लिए काम करेगा, बल्कि वह उनका आदर्श भी होता है। इसलिए जनप्रतिनिधि का जब जनता से संपर्क टूटता है, तो वह नया आइकन गढ़ लेती है। नया आदर्श चुन लेती है। शायद इसी कारण जमशेदपुर पूर्वी की जनता ने अपने वीआइपी क्षेत्र के दर्जे और अपने जनप्रतिनिधि के मुख्यमंत्री रहने की परवाह किए बिना उस व्यक्ति का चुनकर सदन में भेजा, जो उसकी पहुंच में है। जमशेदपुर पूर्वी विस क्षेत्र से संदेश स्पष्ट है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है, उसे जनप्रतिनिधि अनदेखा नहीं कर सकते।
सवाल यह है कि इस चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के लिए आगे की राह क्या हो सकती है? नि:संदेह इससे उसका मनोबल को कुछ समय के लिए कमजोर हुआ है, लेकिन नतीजों में उसके लिए कुछ सबक भी छुपे हैं। जिन तात्कालिक कारकों जैसेसहयोगी दलों से गठबंधन न हो पाना अथवा पार्टी के अंदर की बगावत ने पार्टी की संभावनाओं पर सबसे ज्यादा असर डाला, उसे सकारात्मक कदम उठाकर आसानी से दुरुस्त करे।
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